Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

dadua news: ददुआ के एनकाउंटर के कुछ घंटों बाद ही मायावती सरकार का जश्न कैसे मातम में बदल गया, पूरी कहानी

बांदा: चित्रकूट के पाठा के बेताज बादशाह कहे जाने वाले दस्यु सरगना शिवकुमार उर्फ ददुआ जब तक जिंदा रहा, तब तक बंदूक की नोक पर वोटों की खेती करता रहा। उसके आशीर्वाद से कई नेता विधायक और सांसद बनते रहे। वह बहुजन समाज पार्टी पर भी मेहरबान रहा, जिसके कारण यह नारा वर्षों तक हर चुनाव में बुलंद होता रहा, ‘वोट पड़ेंगे हाथी पर, नहीं गोली लगेगी छाती पर’। इसी नारे का असर था कि कई बार बसपा के सांसद और विधायक जीते हैं। ऐसा क्या हुआ जिससे बसपा सरकार ही उसकी दुश्मन बनी और उसका खात्मा करा दिया, लेकिन बसपा की यह खुशी कुछ घंटे बाद मातम में बदल गई।

पर्दे के पीछे से खेला खेल
बुंदेलखंड के बीहड़ों में बादशाहत कायम करने के बाद डकैतों ने राजनीति में भी पर्दे के पीछे से अपना खेल खेला। डकैतों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए खुद नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए इनकी शरण ली। डकैतों ने अपने समर्थक नेताओं के लिए बीहड़ से फरमान जारी किया। फरमान न मानना जानलेवा खतरा मोल लेना था। चाहे पूर्व सांसद स्व. श्यामाचरण गुप्ता हों या रामसजीवन, सभी पर आरोप है कि ददुआ ने इन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाया था। 2005 में ददुआ का बेटा वीर सिंह पटेल चित्रकूट जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुआ। वीर सिंह चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक निर्वाचित हुए थे। ददुआ का भाई बाल कुमार पटेल मिर्जापुर से सपा सांसद और बाल कुमार का लड़का राम सिंह प्रतापगढ़ के पट्टी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए थे। ददुआ के चाचा शिव संपत चित्रकूट के मऊ थाना क्षेत्र के तहत आने वाले एक गांव में साल 1990 से 2000 तक लगातार प्रधान रहे थे।

ददुआ कभी नेता नहीं रहा, सांसद विधायक बनाए
ददुआ के खौफ का आलम यह था कि बुंदेलखंड में चुनाव कोई भी उसके समर्थन के बिना नहीं जीत सकता था। ददुआ के इसी खौफ का फायदा यूपी के राजनीतिक दलों ने भी उठाया। ददुआ ने बंदूक की दम पर जहां कभी बसपा की सरकार बनवाई तो कभी बसपा से नाराज चल रहे ददुआ का सपा ने फायदा उठाया। हालांकि, ददुआ कभी खादी पहन नेता नहीं बन पाया, लेकिन उसकी बदौलत कई प्रधान से लेकर सांसद विधायक बनते रहे।

सपा से हाथ मिलाना घातक रहा
बुंदेलखंड में यूपी और एमपी क्षेत्र में तीन दशक तक ददुआ का एकछत्र राज चलता रहा। ददुआ ऑपरेशन के नाम पर सरकार ने कई करोड़ रुपये फूंके, लेकिन उसकी परछाई तक नहीं पा सकी। क्षेत्र से सांसद विधायक बनाने में माहिर ददुआ की हनक लखनऊ तक पहुंच गई थी। ददुआ के आशीर्वाद से ही सजातीय और गैर सजातीय सांसद विधायक बनते रहे। इसी बीच परिवारीजनों ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया। यह सब बसपा सरकार के नेताओं को रास नहीं आया और उन्होंने ददुआ का खात्मा करने का संकल्प लिया। उसी के तहत ददुआ की घेराबंदी हुई और खात्मा भी हुआ।

सरकार की मंशा पर ददुआ मारा गया
बसपा नेताओं की खुन्नस के चलते आखिरकार एसटीएफ ने मानिकपुर थाना क्षेत्र के आल्हा गांव के पास झलमल के जंगल में 22 जुलाई 2007 को एनकाउंटर में ददुआ को मार गिराया। ददुआ की मौत पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मुठभेड़ में शामिल एसटीएफ की टीम को 10 लाख नकद इनाम देने की घोषणा की थी, लेकिन मायावती की खुशी कुछ ही पलों तक सीमित रही, क्योंकि मुठभेड़ के बाद वापस लौट रही एसटीएफ की टीम पर डाकू ठोकिया ने हमला करके 6 जवानों की सामूहिक हत्या कर दी और एक मुखबिर को भी मार डाला, जबकि 7 जवानों को घायल कर दिया था। इस घटना ने सरकार को हिलाकर रख दिया था। यह घटना बांदा के फतेहगंज थाना क्षेत्र बघोलन गांव में हुई थी। हालांकि, घटना के 1 साल बाद 4 अगस्त 2008 को यूपी एसटीएफ की उसी टीम ने ठोकिया को उसी के गांव में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था।

15 साल बाद भी ददुआ लोगों के दिलों में जिंदा
जनपद फतेहपुर के नरसिंहपुर कबरहा पुरवा में ददुआ का मंदिर बना हुआ, जिसमें ददुआ की पत्नी सहित मूर्ति लगी है। जहां आज भी लोग जाते हैं। चित्रकूट के एक समाजसेवी बताते हैं कि अगर ददुआ के प्रति लोगों के अंदर नफरत होती तो 2022 के विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ती। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने मानिकपुर से उनके पुत्र वीर सिंह को प्रत्याशी बनाया था। 2 साल पहले हुए उपचुनाव में सपा के निर्भय सिंह पटेल को 56000 वोट मिले थे, जबकि वीर सिंह को इस चुनाव में 72000 मत मिले और मात्र एक हजार मतों से उनकी हार हुई। इससे स्पष्ट है कि आज भी लोगों के दिलों में ददुआ राज करता है।

कौन था डाकू ददुआ
ददुआ का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के देवकली गांव में राम पटेल सिंह के घर में हुआ था। ददुआ का असली नाम शिवकुमार पटेल था। उसने 22 साल की उम्र में अपने ही गांव के 9 लोगों की हत्या कर दी और गांव से फरार हो गया था। चित्रकूट-बांदा क्षेत्र का एक ऐसा नाम है, जिसे लगभग हर कोई जानता है। पाठा जंगलों में ददुआ नाम खौफ और आतंक का पर्याय था। हालांकि, ददुआ को लेकर कभी भी लोग एकमत नहीं रहे। लोगों का कहना है कि वह गरीबों के लिए मसीहा था। वहीं, व्यापारियों और धनी लोग इस बात से सहमत नहीं रह हैं।