लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजे (UP Assembly Election Results) भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) के लिए तो खुशखबरी लाए, लेकिन सरकार के ओहदेदारों पर जनता की नाराजगी भारी पड़ी। दोध्रुवीय हो गए इस चुनाव में जिस कांटे की टक्कर की बात कही जा रही थी, उसका भेद जब गुरुवार को सामने आया तो मंत्री भी हारे, विधायकों ने भी अपनी सीट गंवाई। राजनीति में बड़ा रसूख रखने वाले कई नामों को जनता ने नकार दिया। इनमें डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya), कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा, मोती सिंह, राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश चंद्र द्विवेदी, उपेंद्र तिवारी, लाखन सिंह राजपूत, संगीता बलवंत, राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, आनंद स्वरूप शुक्ल, रणवेंद्र सिंह धुन्नी समेत कई के हिस्से जनता की ‘न’ आई। जनता ने चुनाव के ऐन पहले पाला बदलने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, आरएस कुशवाहा और धर्म सिंह सैनी को भी न कह दिया।
लोकल मुद्दों का दिखा है प्रभाव
चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि पार्टी की गोलबंदी के इतर लोकल मुद्दों पर भी जनता ने अपनी राय जाहिर की है। सरकार ने पुरजोर तरीके से बकाया गन्ना मूल्य भुगतान की बेहतरी की वकालत की, लेकिन गन्ना मंत्री को अपने ही क्षेत्र में गन्ना भुगतान की स्थिति और गन्ना मूल्य का माफिक इजाफा न होने की कीमत चुकानी पड़ी। सियासी जानकार जाटों और मुस्लिमों के साथ को भी सुरेश राणा की हार का एक कारण मानते हैं। डिप्टी सीएम केशव भी अपनी सीट सिराथू में लगी ओबीसी वोटरों की सेंध से पिछड़ गए। उन्हें सपा की पल्लवी पटेल के हाथों हार मिली।
ग्राम्य विकास मंत्री रहे राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह भी अपने खिलाफ उपजी नाराजगी से पार नहीं पा सके। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय को हराकर विधानसभा पहुंचे बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी से इस बार माता प्रसाद पांडेय ने हिसाब बराबर कर लिया। जातिगत वोटों के गठजोड़ ने माता प्रसाद की राह आसान बना दी। इसके अलावा सतीश द्विवेदी के लिए लोकल कनेक्ट का उतना बेहतर न रह जाना भी नुकसानदेह साबित हुआ।
हारने वालों में एक नाम खेलमंत्री उपेंद्र तिवारी का भी है। उन्हें अपने खिलाफ उपजी ऐंटी इन्कम्बैंसी से झटका मिला। चित्रकूट से चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, बेरिया से आनंद स्वरूप शुक्ला, फतेहपुर से रणवेंद्र सिंह धुन्नी भी उन मंत्रियों में रहे, जिन्हें लोकल स्तर उपजी हताशा की वजह से जनता ने नकार दिया।
राजनीति के कई ‘चाणक्य’ भी ढेर
इस बार का चुनावी पारा चढ़ा तो दंगा फिर हॉट टॉपिक बना और कैराना हॉट स्पॉट में तब्दील हो गया। सीएम योगी आदित्यनाथ खुद कैराना पहुंचे और पलायन को लेकर बयान जारी किए। 2017 में भी पलायन का मुद्दा यहां उठा था, जिसका असर बाकी जगहों की पोलिंग पर तो दिखा था, लेकिन कैराना में पलायन के आरोपित माने जाने वाले नाहिद हसन ने मृगांका सिंह को हराया था। इस बार भी चुनाव में मुद्दा उछला। नतीजे फिर वही 2017 वाले ही रहे।
मथुरा की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले श्याम सुंदर शर्मा को इस बार जनता ने नकार दिया और जिले की सारी सीटें भाजपा के खाते में गईं। बीते 20 साल से विधायक रहे शैलेंद्र यादव ललई को इस बार निषाद पार्टी के रमेश ने शिकस्त दी। संगीत सोम, गुड्डू जमाली, शादाब फातिमा, प्रदीप माथुर, राजकुमार यादव, एसपी सिंह बघेल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, अलका राय भी चुनाव हारने वाले बड़े नाम हैं।
महाराजी के आंसुओं ने ढहाया अमेठी के राजा का किला
अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति फिलहाल जेल में हैं। सपा ने उनकी पत्नी महाराजी देवी को टिकट दिया तो भाजपा ने अमेठी की दोनों रानियों के फेर में फंसने के बजाए राजा संजय सिंह को टिकट दिया। भावनाओें के ज्वार में डूबती-उतराती अमेठी की जनता ने आखिरकार संजय सिंह का ‘किला’ ढहा दिया और जीत लिख दी महाराजी के नाम। बेटी पल्लवी तो सिराथू से डिप्टी सीएम को हराकर विधायक बन गई, लेकिन मां कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ से चुनाव हार गईं।
इन्हें भी नसीब हुई पराजय
पिंडरा से कांग्रेस के अजय राय, बीकेटी से गोमती यादव, सरोजनीनगर से सपा के अभिषेक मिश्रा, अयोध्या से पवन पांडेय, किदवई नगर से अजय कपूर, दिग्गज समाजवादी रेवतीरमण सिंह के पुत्र विधायक रहे उज्जवल रमण सिंह अपनी सीट नहीं बचा पाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र राकेश को भी कुर्सी सीट से हार मिली है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा गईं अदिति सिंह तो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं, लेकिन राकेश सिंह हरचंदपुर से जबकि नरेश सैनी बेहट से हार गए। पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप को इस बार सीट बदलकर दावेदारी करना भारी पड़ा। वह दरियाबाद सीट से हार गए। पथरदेवा सीट से किस्मत आजमा रहे ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को भी कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही के हाथों हार मिली है।
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