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कहानी पूर्वांचल के बाहुबलियों की: किसी ने जेल से चुनावी ताल ठोकी, किसी ने बेटे-भतीजे को सौंपी राजनीतिक विरासत

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने आखिरी पड़ाव में पहुंच गया है। आज आखिरी चरण में पूर्वांचल के नौ जिलों की 54 सीटों पर मतदान चल रहा है। इस चरण में कई सीटें ऐसी हैं जहां दशकों से बाहुबलियों का दबदबा रहा है। आज हम आपको ऐसे ही बाहुबलियों की कहानी बताने जा रहे हैं।
पूर्वांचल में रमाकांत और उमाकांत यादव के नाम का दबदबा आज भी कायम है। दोनों भाई बाहुबली से सांसद तक का सफर पूरा कर चुके हैं। इनसे जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है। बात 2007 की है। उमाकांत मछलीशहर के सांसद हुआ करते थे। एक बार उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मिलने के लिए बुलाया। मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकलते ही पुलिस ने उमाकांत को जमीन कब्जे के एक मामले में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। इस घटना के बाद मायावती की छवि माफियाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर हुई।

इसी के बाद रमाकांत ने बसपा से सारे नाते तोड़ लिए। 2014 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत भाजपा प्रत्याशी थे। अमित शाह उनके लिए प्रचार करने आए थे। मंच से अमित शाह ने आजमगढ़ को आतंकिस्तान कह दिया। तब मायावती ने पलटवार करते हुए पूर्व सांसद और भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव को ही आतंकवादी कह दिया था। रमाकांत पर इस वक्त नौ अलग-अलग धाराओं में तीन केस चल रहे हैं। इस बार रमाकांत आजमगढ़ की फूलपुर पवई सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। अब तक इस सीट से रमाकांत के बेटे अरुणकांत भाजपा से विधायक थे। अरुणकांत का टिकट इस बार भाजपा ने काट दिया है।
भदोही जिले में बाहुबली विधायक विजय मिश्रा का दबदबा रहा है। विजय मिश्रा तीन बार समाजवादी पार्टी और एक बार निषाद पार्टी से विधायक रह चुके हैं। पांचवी बार उन्होंने प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के टिकट पर भदोही जिले की ज्ञानपुर सीट से नामांकन किया है। विजय मिश्रा इन दिनों आगरा की केंद्रीय जेल में बंद हैं। विजय पर कुल 24 आपराधिक मामले दर्ज हैं।

भदोही के धनापुर में रहने वाले विजय मिश्रा ने 1980 के आसपास एक पेट्रोल पंप शुरू किया। इसी दौरान उनका परिचय कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी से हुआ। उनके कहने पर ही चुनाव लड़े और पहली बार 1990 में ब्लॉक प्रमुख बने। इसी दौरान वे मुलायम सिंह के संपर्क में आए, इसके बाद उनका राजनीति करियर आगे बढ़ता गया और छवि पूर्वांचल के बाहुबली नेता के रूप में बनती गई।

2002 में चुनाव के दौरान ज्ञानपुर सीट की कुछ बूथों पर दोबारा मतदान चल रहा था। तब समाजवादी पार्टी से विजय मिश्र उम्मीदवार थे, जबकि भाजपा ने तत्कालीन विधायक गोरखनाथ पांडेय को मैदान में उतारा था। मतदान के दिन एक बूथ पर दोनों के गुटों में झड़प हो गई। अचानक गोलियां चलने लगीं और इसमें गोरखनाथ पांडेय के भाई रामेश्वर पांडेय की मौके पर ही मौत हो गई। इसका आरोप विजय मिश्र पर लगा।

जुलाई 2010 में बसपा सरकार के मंत्री नंद गोपाल नंदी पर प्रयागराज में हुए हमले में विजय मिश्रा का नाम आया। इस हमले में एक सुरक्षाकर्मी और पत्रकार विजय प्रताप सिंह सहित दो लोग मारे गए। विजय फरार हो गये। 2011 में दिल्ली स्थित हौज खास में लंबी दाढ़ी और लंबे बालों में साधु वेश में समर्पण किया। जेल में ही रहकर 2012 में वह सपा के टिकट पर ज्ञानपुर से विधानसभा का चुनाव लड़े और फिर विजयी हुए। 2017 में निषाद पार्टी से वह चुनाव लड़े और जीत हासिल की।
पूर्वांचल के बाहुबलियों में मुख्तार अंसारी का नाम टॉप पर है। मुख्तार अंसारी इस वक्त जेल में हैं।  मुख्तार की जगह उनके बेटे अब्बास अंसारी चुनाव मैदान में हैं। मुख्तार के भतीजे सुहेब उर्फ मन्नु अंसारी भी मोहम्मदाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। मन्नु के खिलाफ बाहुबली विधायक रहे कृष्णानंद राय की पत्नी और मौजूदा विधायक अलका राय भाजपा से प्रत्याशी हैं। कृष्णानंद राय की हत्या से भी मुख्तार अंसारी का नाम जुड़ा हुआ है।

मुख्तार पर 16 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। बात 2002 की है। 1985 से गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट अंसारी परिवार के पास ही रही, लेकिन 17 साल बाद यानी 2002 के चुनाव में उनसे बीजेपी के कृष्णानंद राय ने छीन ली। लेकिन वे विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके, तीन साल बाद यानी 2005 में उनकी हत्या कर दी गई। राय एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। उनकी गाड़ी में सात लोग बैठे थे। हमलावरों ने उनकी गाड़ी रोककर एके-47 से तकरीबन 500 गोलियां चलाई। सभी सातों लोग मारे गए। इस हत्या में मुख्तार अंसारी का नाम आया।

मुख्तार अंसारी बेहद नामी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी 1920 के दशक में कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मुख्तार के नाना भारतीय फौज में ब्रिगेडियर थे। मुख्तार के चाचा हामिद अंसारी भारत के उपराष्ट्रपति रहे। मुख्तार के भाई सिबगतुल्ला अंसारी और अफजाल अंसारी भी राजनीति में सक्रिय हैं। अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा सांसद हैं। मुख्तार के पिता कम्युनिष्ट नेता थे।
पूर्वांचल के बड़े बाहुबलियों में धनंजय सिंह की भी गिनती होती है। धनंजय जौनपुर के मल्हनी सीट से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। धनंजय के खिलाफ भाजपा ने कृष्ण प्रताप सिंह और सपा ने लकी यादव को मैदान में उतारा है। बसपा ने शैलेंद्र यादव और कांग्रेस ने पुष्पा शुक्ला को टिकट दिया है।

धनंजय सिंह का जन्म बंसपा गांव में 20 अक्टूबर 1972 को हुआ था। जौनपुर के टीडी कॉलेज से धनंजय ने छात्र राजनीति में कदम रखा। फिर लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंचे। यहां धनंजय का नाम आपराधिक गतिविधियों में आने लगा। हत्या, डकैती, रंगदारी, धमकी, वसूली जैसे आरोप धनंजय पर लगने लगे। धनंजय सिंह की मुलाकात इस दौरान बाहुबली छात्रनेता अभय सिंह से हुई। दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई। धनंजय अभय को महामंत्री पद के लिए चुनाव भी लड़वाना चाहते थे, लेकिन एक हत्या मामले में वे जेल गए। इसके बाद दोनों दोस्तों के बीच अनबन शुरू हो गई। इसके बाद जेल से ही धनंजय ने अभय के बदले दयाशंकर सिंह को समर्थन दे दिया। दयाशंकर इस समय भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं और बलिया से चुनाव लड़ रहे हैं।

जेल से छूटने के बाद धनंजय ने भी राजनीति में कदम रखा। 2002 में वे पहली बार निर्दलयी प्रत्याशी के रूप में रारी विधानसभा से चुनाव जीते। साल 2007 में जनता दल यूनाइटेड से फिर सपा के लाल बाहादुर यादव को हराकर विधानसभा पहुंचे। साल 2009 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर धनंजय सिंह लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे।