इंदिरापुरम: यूक्रेन की तरनोपिल स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी (Tarnopil State Medical University) में एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई करने गए इंदिरापुरम (Indirapuram) के अंकेश गुप्ता जैसे-तैसे रोमानिया बॉर्डर (Romania Boarder) तक पहुंच गए हैं। वह यहां शेल्टर में रह रहे हैं। उनका कहना है कि यहां बच्चे (Indian Students In Ukraine) ज्यादा हैं और फ्लाइट्स कम हैं। जिन बच्चों का लिस्ट में नाम आ रहा है, उन्हें फ्लाइट मिलती जा रही है। उम्मीद है कि उनका भी एक-दो दिन में लिस्ट में नाम जाए। अंकेश के यूक्रेन से यहां तक पहुंचने की कहानी कम दर्दनाक नहीं। उन्होंने बताया कि बॉर्डर क्रॉस करना आसान नहीं था। ठंड बहुत थी। खुले में रहना पड़ा, जिसके कारण उन्हें हाइपोथर्मिया हो गया था। उनकी यूनिवर्सिटी के कई बच्चे बेहोश भी हुए।
इंदिरापुरम की प्रीति गुप्ता ने बताया कि उनके 3 बेटे हैं। अंकेश उनके बड़े बेटे हैं। प्रीति का परिवार मूलतः अलीगढ़ का है, लेकिन पति का ट्रासंफर दिल्ली होने के कारण एकसाथ रहने के लिए 3 साल पहले इंदिरापुरम में शिफ्ट हो गए। उन्होंने अपने बड़े बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए दिसंबर 2020 में तरनोपिल भेजा था। लेकिन अब जब वहां के हालात खराब हुए तो वह 25 फरवरी को बस से यूक्रेन के बॉर्डर पर रात ढाई बजे पहुंचा। उस समय वहां माइनस 5 डिग्री तापमान था। वहां उसे लाइन में लगाया गया। तकरीबन 5-6 घंटे लगातार लाइन में खड़ा रहा। जैसे ही बेटा काउंटर पर पहुंचता था तरनोपिल का नाम देखते ही वापस भेज दिया जाता, क्योंकि उनकी यूनिवर्सिटी से कोई भी एजेंट नहीं था।
प्रीति गुप्ता ने बताया कि यह सिलसिला दो दिन चला। दो रात और 3 दिन तक बेटा खुले में भयानक ठंड में बाहर रहा। दूसरे दिन रात में उसकी तबियत खराब हो गई थी। शरीर का संतुलन बिगड़ गया था। यह सुन मेरे घर का माहौल गमगीन हो गया। बेटे की चिंता में पूरा परिवार रात भर जागा। हर पल बैचेनी थी। एक दिन मोबाइल कनेक्शन भी खत्म हो गया तो दिमाग में नकारात्मक विचार आने लगे।
उन्होंने कहा कि एक दिन बेटे का फोन आया। वह बोला- मम्मी मैं थक चुका हूं, अब वापस यूनिवर्सिटी जा रहा हूं, जो होना होगा, होगा। हम सभी लाचर महसूस कर रहे हैं। लेकिन फिर उसे जब वहां शेल्टर मिला तो कुछ जान में जान आई। अब सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन जब तक मेरा बेटा वापस नहीं आ जाता चैन नहीं मिलेगा। सभी की भूख-प्यास और नींद उड़ी हुई है।
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