सार
रूस की तरफ से भी भारतीयों को सुरक्षित निकालने में मदद का आश्वासन दिए जाने का यूक्रेन के सैनिक फायदा उठा रहे हैं। तिरंगे की ताकत का अहसास होते ही यूक्रेन के सैनिक खुद को बचाने के लिए भारतीय छात्र- छात्राओं को अपनी ढाल बना रहे हैं।
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युद्धग्रस्त यूक्रेन से घर लौटे दिव्यांशु अपनों के बीच आकर खुद को सुरक्षित जरूर महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनके जेहन में त्रासदी भरे दिन और तबाही का मंजर पल-पल दंश की तरह चुभ रहे हैं। यूक्रेन के हालात बयां करते हुए छात्र ने बताया कि रूसी सैनिकों की गोलाबारी लगातार जारी थी।
कब क्या हो जाए, पता नहीं था। बस पर राष्ट्रीय ध्वज चस्पा होने के कारण रूसी सैनिकों ने उन्हें खुद सुरक्षित रास्ते से आगे बढ़ाया। उन्होंने सरकार से अन्य साथी छात्र-छात्राओं को भी सकुशल भारत लाने की अपील की है।
शहर के मोहल्ला तिलक नगर निवासी दिव्यांशु शेखर पुत्र हरीश नरायण त्रिपाठी यूक्रेन के ओजोर्ड शहर में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं। बताते हैं कि रूस के हमले के पहले दिन कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन दूसरे ही दिन से वहां के हालात लगातार बदतर होने लगे। 27 फरवरी की सुबह नौ बजे ओजोर्ड नेशनल यूनिवर्सिटी के सभी छात्र-छात्राओं को सुरक्षित जगह पर एकत्रित किया गया।
250 छात्र-छात्राओं को 50-50 की संख्या में बस से यूक्रेन बार्डर पार कराकर हंगरी पहुंचाया गया। यहां भारतीय दूतावास की बस खड़ी मिली। सभी को बुडापोस्ट शहर पहुंचाया गया। यहीं से फ्लाइट से उन्हें दिल्ली रवाना किया गया।
हंगरी तक के सफर में सभी बेहद डरे हुए थे। हर पल यही लग रहा था कि कहीं कोई बम उन लोगों के पास गिरकर फट न जाए। इस दौरान कई जगह चेकिंग भी हुई। बस में सवार सभी ने अपने को भारतीय बताया तो रूसी सैनिकों ने खुद आगे का रास्ता बताया।
छात्राओं को ढाल बना रहे यूक्रेन के सैनिक
रूस की तरफ से भी भारतीयों को सुरक्षित निकालने में मदद का आश्वासन दिए जाने का यूक्रेन के सैनिक फायदा उठा रहे हैं। तिरंगे की ताकत का अहसास होते ही यूक्रेन के सैनिक खुद को बचाने के लिए भारतीय छात्र- छात्राओं को अपनी ढाल बना रहे हैं। यूक्रेन के सैनिक छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार करने से भी नहीं चूक रहे हैं। छात्राएं बुरी तरह डरी हैं। दिव्यांशु ने सरकार से छात्राओं को सुरक्षित वापस लाने की अपील की है।
बुरे वक्त में भी भारतीय छात्र नहीं भूले फर्ज निभाना
दिव्यांशु बताते हैं कि उनकी यूनिवर्सिटी में 10 पाकिस्तानी छात्र-छात्राएं भी हैं। पड़ोसी देश के होने व साथ में पढ़ने वाले पाकिस्तानी दोस्तों की मदद करना उनका नैतिक दायित्व था। अपना फर्ज निभाते हुए उन्हें अपने ग्रुप में साथ लेकर यूक्रेन से बाहर निकालकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया, जहां से वह अपने वतन को चले गए।
सात दिन से नहीं आई नींद…
दिव्यांशु रविवार भोर लगभग तीन बजे घर लौटे हैं। हफ्तेभर से नींद उड़ी हुई है। घर जरूर आ गया हूं, लेकिन अभी भी वहां मौजूद भारतीय के अलावा अन्य देशों के रहने वाले अपने दोस्तों की चिंता है।
माता-पिता की आंखों में छलके खुशी के आंसू
पिता हरीश नारायण त्रिपाठी, मां आरती व छोटा भाई उत्कर्ष शेखर पिछले सात दिनों से लगातार दिव्यांशु का हाल ले रहे थे। सभी की आंखों से नींद कोसों दूर थी। दिव्यांशु जैसे ही घर पहुंचा तो सभी की आंखें खुशी से छलक आईं।
विस्तार
युद्धग्रस्त यूक्रेन से घर लौटे दिव्यांशु अपनों के बीच आकर खुद को सुरक्षित जरूर महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनके जेहन में त्रासदी भरे दिन और तबाही का मंजर पल-पल दंश की तरह चुभ रहे हैं। यूक्रेन के हालात बयां करते हुए छात्र ने बताया कि रूसी सैनिकों की गोलाबारी लगातार जारी थी।
कब क्या हो जाए, पता नहीं था। बस पर राष्ट्रीय ध्वज चस्पा होने के कारण रूसी सैनिकों ने उन्हें खुद सुरक्षित रास्ते से आगे बढ़ाया। उन्होंने सरकार से अन्य साथी छात्र-छात्राओं को भी सकुशल भारत लाने की अपील की है।
शहर के मोहल्ला तिलक नगर निवासी दिव्यांशु शेखर पुत्र हरीश नरायण त्रिपाठी यूक्रेन के ओजोर्ड शहर में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं। बताते हैं कि रूस के हमले के पहले दिन कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन दूसरे ही दिन से वहां के हालात लगातार बदतर होने लगे। 27 फरवरी की सुबह नौ बजे ओजोर्ड नेशनल यूनिवर्सिटी के सभी छात्र-छात्राओं को सुरक्षित जगह पर एकत्रित किया गया।
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