मथुरा
ब्रज की संस्कृति और धरोहर को सहेजने में अहम भूमिका निभाने वाले अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रॉउस भी ब्रज की होली के कायल थे। उस समय विदेशी सैलानी बरसाना की अद्भुत लट्ठमार होली को देखने के लिए सात समंदर पार से आते थे। ब्रिटिश शासनकाल में मथुरा के कलेक्टर रहे ग्रॉउस ने बरसाना की होली का उल्लेख अपनी पुस्तक ‘मथुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमॉयर’ में किया है।
145 साल पहले होली के रंगों का लुत्फ उठाया था
145 साल पहले मथुरा के जिला कलेक्टर रहे एफएस ग्राउस ने खुद आकर बरसाना, नंदगांव और फालैन में होली पर होने वाले आयोजनों को देखा था। रंगीली गली की तंग गलियों में होने वाली और राधाकृष्ण के प्रेम का प्रतीक कही जाने वाली लट्ठमार होली काफी मशहूर है। बरसाना में होली के आयोजनों को देखने का वीआईपी स्थल कटारा हवेली था। 22 फरवरी 1877 को मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर रहे फ्रेडरिक सोल्मन ग्राउस ने भी कटारा हवेली में बैठकर होली का लुफ्त उठाया था। इस दौरान ग्राउस ने होली के अगले दिन नंदगांव की भी लट्ठमार होली देखी थी। 1871 से 1877 तक मथुरा के जिला कलेक्टर रहे फ्रेडरिक सोल्मन ग्राउस ब्रज की संस्कृति से खासे प्रभावित थे। उन्होंने यहां की संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिए बहुत काम किया। खुदाई के दौरान मथुरा में मथुरा मूर्तिकला की अमूल्य धरोहरों को सहेजने के उद्देश्य से उन्होंने मथुरा संग्रहालय की भी स्थापना की थी।
ब्रज दूल्हा मंदिर से होती है लट्ठमार होली की शुरुआत
बरसाना की भूमिया गली स्थित कटारा हवेली का निर्माण भरतपुर स्टेट के राजपुरोहित रूपराम कटारा ने करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व कराया था। इसी हवेली में ब्रज दूल्हा के नाम से भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर है, जो काफी प्राचीन है। रूपराम कटारा के वंशज गोकुलेश कटारा ने बताया कि धार्मिक मान्यता है कि द्वापर में जब नंदगांव से भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाना होली खेलने आए तो बरसाना की गोपियों ने उनके साथ लट्ठमार होली खेलने का मन बना लिया। गोपियों के हाथों में लाठियां देखकर ग्वाल-बाल डरकर भाग खड़े हुए और कृष्ण वहीं कहीं छिप गए। छिपे हुए कृष्ण को गोपियों ने ढूंढ़ निकाला और उनका कान खींचकर कहा कि दूल्हा तो यहां छिपा हुआ है। तब से कृष्ण का एक नाम ‘ब्रज दूल्हा’ भी पड़ गया।
यहां ठाकुर जी की सेवा करती हैं केवल महिलाएं
आज भी बरसाना में वही प्राचीन परंपरा चली आ रही है। लट्ठमार होली की शुरुआत ब्रज दूल्हा मंदिर से ही होती है। नंदगांव से होली खेलने आने वाले हुरियारे बरसाना पहुंचकर सबसे पहले ब्रज दूल्हा के रूप में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण से होली खेलने की आज्ञा लेते हैं और अपने साथ होली खेलने को आमंत्रित करते हैं। इसी मंदिर पर पहुंचकर अपने सिर पर पगड़ी बांधते हैं। इस मंदिर को लेकर एक महत्पूर्ण बात और है कि यहां ठाकुरजी की सेवा केवल महिलाएं ही करती हैं। वर्तमान में करीब 70 वर्षीय सावित्री देवी कर रही हैं। कटारा परिवार से ही ताल्लुक रखने वाली सावित्री देवी बतातीं हैं कि वो करीब 20 वर्ष से ब्रज दूल्हा की सेवा कर रही हैं। जब वे परिवार में आईं तो उनकी दादिया सास चंदा सेवा करती थी उसके बाद सास श्यामवती ने सेवा की और उनके बाद अब वे ठाकुरजी की सेवा कर रही हैं।
पहले होली देखने का वीवीआइपी स्थल था कटारा हवेली
बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए प्राचीन समय में वीवीआईपी स्थल कटारा हवेली ही थी। अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रॉउस ने भी इसी हवेली की छत पर बनी बालकनी की वीवीआइपी गैलरी में बैठकर ब्रज की होली के अद्भुत नजारे को देखा था, लेकिन समय के साथ हुए बदलाव के बाद हवेली से रंगीली गली का नजारा दिखना बंद हुआ तो रंगीली चौक पर ही वीआईपी स्थल बना दिया गया है। रंगीली चौक पर लोहे की बेंच बनाकर वीआईपी गैलरी में बैठकर पुलिस- प्रशासन के अधिकारी और वीवीआइपी होली के रंगीले माहौल का लुत्फ उठाते हैं।
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