सार
भ्रष्टाचार से राजस्व में कमी आई है। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार आर्थिक गतिविधियों को धीमा कर देता है और आर्थिक विकास को रोक देता है। हाल के दिनों में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है कि सत्ता का गलियारा भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से बेदाग रहे और संसाधनों और धन का उच्चत्तम उपयोग जनहित में हो सके।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी व्यवस्था में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि आजकल निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद के दुरुपयोग का दायरा और पैमाना बढ़ गया है और इसने देश को बुरी तरह प्रभावित किया है।
भ्रष्टाचार से राजस्व में कमी आई है। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार आर्थिक गतिविधियों को धीमा कर देता है और आर्थिक विकास को रोक देता है। हाल के दिनों में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है कि सत्ता का गलियारा भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से बेदाग रहे और संसाधनों और धन का उच्चत्तम उपयोग जनहित में हो सके।
भ्रष्टाचार में कई प्रगतिशील पहलुओं को नष्ट करने की क्षमता है और इसने राष्ट्र के दुर्जेय दुश्मन के रूप में काम किया है। यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने आयुर्वेद एवं यूनानी सेवाएं निदेशालय में वित्त वर्ष 1991 से 1993 के बीच हुए 17.27 करोड़ के गबन के मामले में दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से तय है कि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक राजस्व में धोखाधड़ी न हो और लोक सेवक भ्रष्टाचार में लिप्त न हों और यदि वे ऐसा करते हैं, तो भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष और उचित जांच की जाती है और जो दोषी हैं, रिकॉर्ड में लाया जाता है।
सतर्कता विभाग की ओर से कराई गई जांच
मामले में याची दुर्गा दत्त त्रिपाठी ने अपने खिलाफ हुई सतर्कता विभाग की ओर से किए गए जांच को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और आरोप पत्र केसाथ पूरी आपराधिक मुकदमें को रद्द करने की मांग की थी। याची पर आरोप है कि उसने अपने कार्यकाल केदौरान निदेशालय आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवाओं के लिए 1991 से 1993 के बीच 17.27 करोड़ रुपये का गबन किया।
मामले में सतर्कता विभाग की ओर से जांच कराई गई थी। जांच में पाया गया कि आवंटित बजट से अधिक का खर्चा दिया गया। मामले में लखनऊ के हुसैनगंज थाने में भ्रष्टाचार के आरोप एफआईआर दर्ज कराई गई और ट्रायल कोर्ट मामले में (उत्तर प्रदेश राज्य बनाम संजीव सक्सेना व अन्य) सुनवाई शुरू हो गई है तो सतर्कता विभाग ने 15 सितंबर को आरोप पत्र दाखिल किया गया।
ट्रायल कोर्ट याची को समन जारी किया है। याची के अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि जांच केदौरान बजट के गबन का मामला सामने आया है। 1997 में एफआईआर दर्ज की गई और 1998 में अभियोग शुरू हुआ। इस मामले में 20 साल से अधिक समय हो चुका है।
याची के अधिवक्ता ने अपने पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के केस का हवाला भी दिया। जवाब में सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि जांच में याची के खिलाफ स्पष्ट आरोप मिले हैं। वह गबन में शामिल रहा है। कोर्ट ने कहा कि देरी के आधार पर एफआईआर को रद्द करना सही नहीं होगा और उसने याची की याचिका को खारिज कर दिया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी व्यवस्था में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि आजकल निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद के दुरुपयोग का दायरा और पैमाना बढ़ गया है और इसने देश को बुरी तरह प्रभावित किया है।
भ्रष्टाचार से राजस्व में कमी आई है। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार आर्थिक गतिविधियों को धीमा कर देता है और आर्थिक विकास को रोक देता है। हाल के दिनों में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है कि सत्ता का गलियारा भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से बेदाग रहे और संसाधनों और धन का उच्चत्तम उपयोग जनहित में हो सके।
भ्रष्टाचार में कई प्रगतिशील पहलुओं को नष्ट करने की क्षमता है और इसने राष्ट्र के दुर्जेय दुश्मन के रूप में काम किया है। यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने आयुर्वेद एवं यूनानी सेवाएं निदेशालय में वित्त वर्ष 1991 से 1993 के बीच हुए 17.27 करोड़ के गबन के मामले में दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि यह अच्छी तरह से तय है कि लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक राजस्व में धोखाधड़ी न हो और लोक सेवक भ्रष्टाचार में लिप्त न हों और यदि वे ऐसा करते हैं, तो भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष और उचित जांच की जाती है और जो दोषी हैं, रिकॉर्ड में लाया जाता है।
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