लखनऊ : यूपी की राजनीति से करीब-करीब गायब हो चुके वामदल एक बार फिर विधानसभा चुनाव के जरिए अपना वजूद बचाने की कोशिश में हैं। यूपी विधानसभा में कभी तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में शिरकत करने वाली लेफ्ट पार्टियां पिछले चार विधानसभा चुनावों में अपना खाता भी नहीं खोल पाईं। स्थिति यह है कि लेफ्ट पार्टियां विधानसभा चुनावों में सौ सीटों पर भी प्रत्याशी उतारने की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी 2022 के विधानसभा चुनावों में चार वामपंथी दलों ने 56 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है।
घटती गई जमीन
1957 से 2002 के बीच हुए यूपी के 13 विधानसभा चुनावों में लेफ्ट पार्टियों के प्रत्याशी लगातार जीतते रहे। 1977 के चुनाव के बाद गठित सातवीं विधानसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(सीपीआई ) अपने नौ विधायकों के साथ सदन में तीसरे नंबर की पार्टी थी। सातवीं विधानसभा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(सीपीएम) का भी एक विधायक था। वाराणसी भले ही आज दूसरे दलों का गढ़ हो, लेकिन एक जमाने में यहां कामरेड उदल की तूती बोलती थी। वाराणसी की कोलसला सीट पर उदल सीपीआई के टिकट पर विधानसभा के 11 चुनाव लड़े और नौ चुनावों में जीत दर्ज की।
Akhilesh Yadav Hardoi: हर चरण में जनता के बीच मुकाबला, कौन कितने अधिक वोटों से BJP को हराएगा…अखिलेश का जोरदार हमला
1996 में भाजपा के अजय राय से चुनाव हारने के बाद उदल चुनाव नहीं लड़े। इसी तरह मित्रसेन यादव मिल्कीपुर सीट से दो बार सीपीआई के टिकट पर विधायक और एक बार सांसद रहे। लेकिन धीरे-धीरे लेफ्ट पार्टियों का ग्राफ गिरता गया। 2002 के विधानसभा चुनावों में लेफ्ट पार्टियों के महज दो विधायक ही सदन में जीत कर पहुंचे थे। उसके बाद से सदन वामदली विधायकों से रिक्त हो गया।
पिछले दो चुनावों की स्थिति
यूपी में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने 51 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, लेकिन एक भी प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं कर पाया। जिन सीटों पर सीपीआई ने प्रत्याशी उतारे, वहां उन्हें महज 1.06 प्रतिशत वोट मिला था। इसके साथ ही दूसरे बड़े वामदल सीपीएम ने 403 विधानसभा सीटों में 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन किसी को जीत नहीं मिली। इन 17 सीटों पर सीपीएम उम्मीदवारों का वोट प्रतिशत 2.13 रहा था। 2017 के विधानसभा चुनाव में वामदलो की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। सीपीआई ने 68 प्रत्याशी उतारे। सभी हारे और पार्टी को 0.97 फीसदी वोट मिला। इसी तरह सीपीएम ने 26 प्रत्याशी उतारे और उसे 0.62 फीसदी वोट मिला। कोई भी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाया।
जातिगत राजनीति से हुआ नुकसान
वाम नेता मानते हैं कि जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया है। अब वे अपनी खोई जमीन पाने की कवायद में जुटे हैं। वे मानते हैं कि यूपी में छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां बंद होने से यहां ट्रेड यूनियन आंदोलन कमजोर पड़ा। नतीजतन, वाम राजनीति अपना प्रभाव खोती गई। भाकपा नेता अशोक मिश्र कहते हैं कि यूपी की राजनीति जैसे-जैसे धर्म और जाति पर केंद्रित होती गई, वामदल यहां की राजनीति में कमजोर पड़ते गए। वामदल आज भी रोजी-रोटी, रोजगार, सस्ती शिक्षा और दवाई के जैसे मुख्य मुद्दों पर चुनाव लड़ते हैं और इन्हीं मुद्दों पर आंदोलन करते हैं।
चार वामदलों ने उतारे 56 प्रत्याशी
सीपीआई नेता डॉ़ गिरीश के मुताबिक, 2022 के विधानसभा चुनाव में चार वामदल प्रत्याशी उतार रहे हैं। एक-दो सीटें ऐसी हैं, जहां वामदलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। बाकी जिन सीटों पर जो भी वामदल का प्रत्याशी मैदान में है, उसे दूसरे वामदलों के संगठन मदद कर रहे हैं। कहा कि जिन सीटों पर हमारे (वामदलों के) प्रत्याशी नहीं हैं। वहां सभी वामदल भाजपा को हराने वाले प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं। वामदलों का लक्ष्य भाजपा का सत्ता से बाहर करना है।
प्रतीकात्मक तस्वीर
More Stories
आठवीं की रीटेल ने फाँसी दी, भाई घर पहुँचा तो सेन पर लटकी मिली
छत्तीसगढ़ में भाजपा संगठन चुनाव की रूपरेखा तय, अगले महीने चुने जाएंगे जिला स्तर पर पदाधिकारी
UP By-Election Results 2024: सीएम योगी का फिर चला जादू, बीजेपी ने मारी बाज़ी, सपा दो पर सिमटी