लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) के मैदान में इस बार बाहुबलियों का जोर नहीं दिख रहा है। यूपी में बदली राजनैतिक हवा ने बाहुबलियों के कस-बल को भी ढीला कर दिया है। इस बार यूपी के बाहुबली राजनीति में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए खुद की जगह अपनों को आगे कर रहे हैं। खासतौर से अपनी राजनैतिक विरासत बेटों और परिवारवालों के नाम कर रहे हैं। बदली स्थिति को लेकर चर्चा भी तेज हो गई है। पहले बाहुबलियों के चुनावी मैदान में उतरने और उनके जीत कर विधानसभा तक का सफर तय करने के मामले लगातार सामने आते रहे हैं।
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मुख्तार ने अब्बास को सौंपी राजनैतिक विरासत
मऊ सदर से पिछले 25 वर्षों से चुनाव जीतते आ रहे माफिया विधायक मुख्तार अंसारी ने अपनी सीट इस बार बेटे अब्बास अंसारी को सौंप दी है। अब्बास सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल, योगी सरकार द्वारा पिछले पांच साल के दौरान की गई ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद बड़े दल मुख्तार के ऊपर हाथ रखने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि मुख्तार का साथ देने का मतलब बीजेपी को बैठे-बैठाए एक मुद्दा हाथ देना है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव से ही मुख्तार के पार्टी में शामिल होने के खिलाफ थे। उन्होंने मुख्तार के भाई सिगबतउल्ला को तो पार्टी में शामिल कर लिया, लेकिन मुख्तार से दूरी बनाए रहे। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने सहयोगी दल सुभासपा द्वारा मुख्तार को टिकट दिए जाने का विरोध किया। इसके बाद मुख्तार की सीट से उनके बेटे अब्बास को प्रत्याशी बनाया गया।
डीपी यादव ने भी बेटे को सौंपी अपनी सीट
वेस्ट यूपी के बाहुबली डीपी यादव ने बदायूं की सहसवान सीट अपने बेटे कुणाल को सौंप दी है। डीपी सहसवान से विधायक रह चुके हैं। इस बार उन्होंने पत्नी उर्मिलेश और बेटे कुणाल के साथ नामांकन भरा था। बाद में डीपी और उर्मिलेश ने नाम वापस ले लिया। कुणाल पिता की बनाई पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल से चुनाव लड़ रहा है। वर्ष 2012 में डीपी ने बीएसपी छोड़कर सपा में शामिल होने की कोशिश की थी, लेकिन अखिलेश यादव के विरोध के चलते बात नहीं बनी थी।
दो बार की हार और बेटों को सौंप दी कमान
एक समय बाहुबलियों में सबसे बड़ा नाम रहे गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी ने वर्ष 2007 और वर्ष 2012 में लगातार मिली हार के बाद अपनी राजनैतिक विरासत बेटे विनय तिवारी को सौंप दी थी। हरिशंकर तिवारी गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से चुनाव लड़ा करते थे। वर्ष 1985 से वह लगातार यहां से जीतते रहे, लेकिन 2007 में राजेश त्रिपाठी ने उन्हें मात दे दी। राजेश बीएसपी के टिकट पर दो बार यहां से विधायक बने, लेकिन 2017 में विनय शंकर ने राजेश को हराकर यह सीट जीत ली। विनय बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार वह सपा के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे कुशल तिवारी दो बार संत कबीर नगर से सांसद रहे हैं।
सबसे कम उम्र का विधायक बनाया बेटे को
पूर्वांचल के एक और बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह ने अपने बेटे प्रतीक भूषण सिंह को यूपी विधानसभा का सबसे कम उम्र का विधायक बनवाया। गोंडा, बलरामपुर समेत पूर्वांचल की कई सीटों में खासा प्रभाव रखने वाले बृजभूषण गोंडा, कैसरगंज व बलरामपुर से छह बार सांसद रहे हैं। वर्तमान में वह भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। 2017 में उनके बेटे प्रतीक बीजेपी के टिकट पर गोंडा सदर सीट से चुनाव लड़े और जीते। खास बात है कि बीजेपी ने वर्ष 1993 के बाद इस सीट पर जीत हासिल की थी। इस बार भी प्रतीक यहीं से बीजेपी के प्रत्याशी हैं।
पत्नी को आगे किया, फिर पीछे हटे अतीक
प्रयागराज के बाहुबली विधायक अतीक अहमद गुजरात जेल में बंद हैं। खुद चुनाव न लड़कर वह इस बार पत्नी शाइस्ता को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपने की तैयारी में थे। असद्दुीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से उनकी पत्नी का टिकट फाइनल भी हो गया, लेकिन आखिरी वक्त में शाइस्ता को चुनाव न लड़ाने का फैसला लिया गया। यह पहली बार है, जब अतीक का परिवार राजनैतिक द्वंद्व से गायब है। अतीक के दोनों बेटे फरार हैं और भाई अशरफ भी जेल में है। इसलिए सियासी दबाव को देखते हुए अतीक ने खुद या परिवार के किसी सदस्य को चुनाव न लड़ाने का फैसला लिया है।
पिता ने ठोकी ताल, बेटे का टिकट कटा
जहां बाहुबली अपनी राजनैतिक विरासत बेटों को सौंप रहे हैं, वहीं आजमगढ़ के फूलपुर पवई में उल्टा ही हुआ। आजमगढ़ के बाहुबली रमाकांत यादव के बेटे अरुणकांत यादव वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में फूलपुर पवई से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे। इस बार सपा ने इस सीट से उनके पिता रमाकांत यादव को प्रत्याशी बना दिया। ऐसे में बीजेपी ने अरुणकांत यादव का टिकट काट दिया है।
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