सार
आगरा के पर्यटन उद्योग की झोली लगातार तीसरे साल भी खाली रही। जूता निर्यातकों के लिए जरूर चमड़े के आयात शुल्क में छूट के फैसले से थोड़ी रियायत मिली है।
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ताजनगरी के चार लाख लोगों की रोजी रोटी फुटवियर उद्योग से जुड़ी है तो चार लाख लोगों की पर्यटन से। मंगलवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बजट पेश किया तो टीवी, मोबाइल पर बजट देखने वाले इन दोनों ही उद्योगों के लोगों को मायूसी हाथ लगी। जूता निर्यातकों के लिए जरूर चमड़े के आयात शुल्क में छूट के फैसले ने जूते को हल्का चमकाने का मौका दे दिया, जबकि पर्यटन उद्योग की झोली तो लगातार तीसरे साल भी खाली रही। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में लगातार तीसरा बजट है, जब पर्यटन और खासकर आगरा, ताज ट्रिपेजियम जोन के जिलों के लिए कोई प्रावधान नजर नहीं आया।
ठीक दो साल से कोरोना संक्रमण के कारण स्मारकों की बंदी और विदेशी उड़ानों के बंद होने से सन्नाटा झेल रहे पर्यटन उद्योग को बजट से बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन न सौगातें मिलीं, न रियायतें। बजट में पर्यटन की उपेक्षा पर आगरा के पर्यटन उद्यमी बेहद निराश हैं। पूरे देश की जीडीपी में 10 फीसदी योगदान देने वाले पर्यटन उद्योग को दरकिनार करने का कदम उद्यमियों को समझ नहीं आया। पर्यटन उद्यमियों ने बजट को निराशाजनक करार दिया है।
तीन साल से थमाया जा रहा झुनझुना
टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के उपाध्यक्ष राजीव सक्सेना ने कहा कि तीन साल से पर्यटन को झुनझुना थमाया जा रहा है। जो पर्यटन सबसे ज्यादा कोरोना की मार झेल रहा है, उसी के लिए दो साल से कोई एक कदम भी नहीं उठाया। लोन योजना को पर्यटन के लिए बता रहे हैं, पर फायदा तब मिलेगा, तब बैंकिंग नियम सरल हों। कोरोना से सबकी सिबिल बिगड़ गई है।
होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश चौहा ने कहा कि जिस उद्योग से सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा ले रहे थे, कोरोना में जब उस पर गाज मिरी तो वित्तमंत्री दो साल से कुछ बोल ही नहीं रहीं। पर्यटन के लिए इससे बुरा बजट हो ही नहीं सकता। अपनी व्यथा किसे कहें और कौन समझे। ऐसी निराशा कभी किसी बजट को देखकर नहीं हुई।
‘लगता है वित्त मंत्री पर्यटन शब्द नहीं जानती’
होटल ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश वाधवा ने कहा कि लगता है कि वित्त मंत्री को पर्यटन शब्द आता ही नहीं, तभी उनके बजट में से आगरा, पर्यटन दोनों गायब हैं। जो पर्यटन उद्यमी कोरोना संक्रमण में अपनी आजीविका चला पा रहे थे, अगले साल तक उनकी संख्या आधी से भी कम रह जाएगी।
कन्फेडरेशन ऑफ टूरिज्म एसोसिएशंस के राजीव तिवारी ने कहा कि होटल, ट्रांसपोर्ट, हस्तशिल्प, ट्रेवल एजेंट। कोई तो ऐसा सेक्टर हो, जिसे कुछ दिया हो, पर पर्यटन उद्योग को पुर्नजीवित करने के लिए कुछ नहीं दिया गया। बेहद निराशजनक बजट है।
जूता निर्यातकों को मिली रियायत
देश में 100 में से 65 लोग आगरा का बना हुआ जूता पहनते हैं, लेकिन इतने बड़े उद्योग के लिए बजट में कोई बड़ा कदम छोड़िए, छोटे कदम भी नहीं उठाए गए। पांच राज्यों के चुनाव के कारण फुटवियर उद्योग सौगातें मिलने की उम्मीद लगाए हुए था, लेकिन बजट में रियायतें मिलीं भी तो केवल निर्यातकों को। शहर में 8 हजार से ज्यादा घरेलू जूता इकाइयां हैं, जबकि केवल 185 इकाइयां निर्यात की हैं। ऐसे में बजट को लेकर आगरा के घरेलू फुटवियर निर्माता निराश हैं।
एफमेक के अध्यक्ष पूरन डावर ने कहा कि निर्यात के लिए बिना आयात शुल्क के चमड़ा और वेटब्लू मंगाया जा सकता है। इससे जूता निर्यात में बड़ी छलांग लगाई जा सकती है। डीएफआईएस योजना फिर शुरू करने से उद्यमियों को लाभ मिलेगा। इंसेंटिव आधारित छूट का कदम अच्छा है।
‘जूता उत्पादकों के लिए कुछ भी नहीं’
जूता उत्पादक समिति के धर्मेंद्र सोनी ने कहा कि बजट में केवल निर्यातकों का ख्याल रखा गया। घरेलू जूता उत्पादकों के लिए कुछ भी नहीं है। घरेलू जूता निर्माताओं के लिए भी आयात शुल्क हटा दिया जाता तो अच्छा रहता। केवल अमीरों का बजट है, गरीब, मध्यम वर्ग इससे गायब हैं।
आगरा शू मैन्यूफैक्चरर्स एसो. के जितेंद्र त्रिलोकानी ने कहा कि कोरोना संक्रमण ने फुटवियर को जो नुकसान पहुंचाया, उसके लिए वित्तमंत्री से बूस्टर डोज की उम्मीद थी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह डोज केवल निर्यातकों को दी गई, जबकि बड़ी संख्या में घरेलू उत्पादकों की उपेक्षा की गई।
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गागन दास रामानी ने कहा कि जीएसटी के प्रावधान बदले, पर दरें नहीं बदली गईं। बजट में नीतिगत फैसला करना चाहिए था, पर फुटवियर के घरेलू उत्पादकों की झोली खाली रही। फुटवियर सस्ते होंगे, केवल यह कहकर गुमराह किया गया है।
आगरा में जूता कारोबार के आंकड़े
65 फीसदी जूते पर आगरा की हिस्सेदारी
27 फीसदी जूता निर्यात आगरा से
04 लाख लोग जूता उद्योग से जुड़े हुए
5000 करोड़ का जूता निर्यात हो रहा
10 हजार करोड़ का घरेलू कारोबार
10 फीसदी आयात शुल्क था चमड़े पर
विस्तार
ताजनगरी के चार लाख लोगों की रोजी रोटी फुटवियर उद्योग से जुड़ी है तो चार लाख लोगों की पर्यटन से। मंगलवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जब बजट पेश किया तो टीवी, मोबाइल पर बजट देखने वाले इन दोनों ही उद्योगों के लोगों को मायूसी हाथ लगी। जूता निर्यातकों के लिए जरूर चमड़े के आयात शुल्क में छूट के फैसले ने जूते को हल्का चमकाने का मौका दे दिया, जबकि पर्यटन उद्योग की झोली तो लगातार तीसरे साल भी खाली रही। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में लगातार तीसरा बजट है, जब पर्यटन और खासकर आगरा, ताज ट्रिपेजियम जोन के जिलों के लिए कोई प्रावधान नजर नहीं आया।
ठीक दो साल से कोरोना संक्रमण के कारण स्मारकों की बंदी और विदेशी उड़ानों के बंद होने से सन्नाटा झेल रहे पर्यटन उद्योग को बजट से बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन न सौगातें मिलीं, न रियायतें। बजट में पर्यटन की उपेक्षा पर आगरा के पर्यटन उद्यमी बेहद निराश हैं। पूरे देश की जीडीपी में 10 फीसदी योगदान देने वाले पर्यटन उद्योग को दरकिनार करने का कदम उद्यमियों को समझ नहीं आया। पर्यटन उद्यमियों ने बजट को निराशाजनक करार दिया है।
तीन साल से थमाया जा रहा झुनझुना
टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के उपाध्यक्ष राजीव सक्सेना ने कहा कि तीन साल से पर्यटन को झुनझुना थमाया जा रहा है। जो पर्यटन सबसे ज्यादा कोरोना की मार झेल रहा है, उसी के लिए दो साल से कोई एक कदम भी नहीं उठाया। लोन योजना को पर्यटन के लिए बता रहे हैं, पर फायदा तब मिलेगा, तब बैंकिंग नियम सरल हों। कोरोना से सबकी सिबिल बिगड़ गई है।
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