एटा की जलेसर विधानसभा सीट हमेशा से सुरक्षित सीट घोषित रही है। इसके बावजूद इस पर कभी हाथी की सवारी सुरक्षित नहीं रही। यहां सात चुनाव लड़ चुकी बसपा एक भी बार नहीं जीती है। पार्टी लगभग हर बार प्रत्याशी बदलती रही, लेकिन जीत दर्ज नहीं कर सकी। यहां तक कि 2007 की बसपा की लहर में भी बसपा प्रत्याशी मामूली अंतर से मात खा गए।
1989 और 1991 के विधानस चुनावों में बसपा ने एक ही प्रत्याशी महेंद्रपाल पर भरोसा जताया। लेकिन उनका जनाधार बढ़ने के बजाय और कम हो गया। दूसरी बार में उन्हें महज 5.70 फीसदी वोट मिले। इस शर्मनाक स्थिति को देखते हुए पार्टी ने अगले चुनाव में प्रत्याशी बदल दिया। 1996 में महीपाल सिंह ने करीब 27 फीसदी मत प्राप्त कर जनाधार तो बढ़ाकर दिखा दिया, लेकिन जीत की देहरी से काफी दूर रह गए और भाजपा ने बाजी मारी।
बसपा लहर में नहीं जीत सकी यह सीट
इसके बाद पार्टी लगातार प्रत्याशी बदलती रही। 2007 में बसपा की लहर चल रही थी। यहां से रणवीर सिंह कश्यप चुनाव लड़ रहे थे। यही वो समय था जब पार्टी को यहां सबसे अधिक करीब 35 फीसदी वोट हासिल हुए थे। हालांकि वह भाजपा प्रत्याशी कुवेर सिंह के मुकाबले महज 72 मतों से हार गए। 2012 में पार्टी के वरिष्ठ और काफी अनुभवी नेता के रूप में ओमप्रकाश दलित को मौका दिया गया। हालांकि वह भी कोई जादू नहीं दिखा सके।
इस बार नए और युवा चेहरे को टिकट
बसपा के लिए प्रयोगशाला बन चुकी जलेसर सीट पर पार्टी ने इस बार आकाश सिंह के रूप में बिल्कुल ही नए चेहरे को टिकट थमाया है। आगरा के रहने वाले परिवार के आकाश दिल्ली में वकालत करते हैं। राजनीति का कोई विशेष तजुर्बा उनके पास नहीं है।
जलेसर सीट पर बसपा प्रत्याशियों की स्थिति
वर्ष प्रत्याशी स्थान वोट प्रतिशत
1989 महेंद्रपाल तीसरा 17.77
1991 महेंद्रपाल पांचवा 5.70
1996 महीपाल सिंह तीसरा 27.43
2002 रघुवीर सिंह तीसरा 26.87
2007 रणवीर सिंह दूसरा 34.98
2012 ओमप्रकाश दलित दूसरा 21.91
2017 मोहन सिंह तीसरा 19.52
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