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महात्मा गांधी के विचार प्रासंगिक होने के साथ-साथ प्रकाशपुंज के रूप में अदालतों को भी दिशा दिखाते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट हो या फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट, दोनों के ऐतिहासिक सफर में कई ऐसे पड़ाव आए, जहां इन अदालतों ने महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख किया। अदालतों ने राष्ट्रपिता के सम्मान की भी सदैव रक्षा की है।
विगत 1 नवंबर 2021 को उन्नति मैनेजमेंट कॉलेज और चार अन्य बनाम राकेश कुमार, निदेशक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों से कहा था कि जब भी वो संदेह से घिरे हों या किसी निर्णय को लेकर दुविधा में हो तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जंतर का इस्तेमाल करें।
जस्टिस अजय भनोट की एकलपीठ 15 मार्च, 2021 के न्यायालय के आदेश के उल्लंघन के कारण दायर अवमानना याचिका से निपट रही थी, जो सबसे निचले तबके के जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने से संबंधित थी। एकलपीठ ने महात्मा गांधी के जंतर का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे, तब यह कसौटी आजमाओ।
जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा ?
गांधी को अपशब्द नहीं कहे जा सकते
उच्चतम न्यायालय में वर्ष 2015 को एक मराठी कविता में गांधी के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किए जाने से संबंधित एक मामले की सुनवाई में कहा कि महात्मा गांधी को अपशब्द नहीं कह जा सकते हैं और न ही उनके चित्रण के दौरान अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने कहा था कि विचारों की आजादी और शब्दों की आजादी में काफी अंतर है। अगर महात्मा गांधी के बारे में अपशब्द लिखते हैं तो वो मुद्दा भी है और अपराध की श्रेणी में भी आता है। अगर आपने गांधीजी के बारे में अपशब्द लिखे तो वहां आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार खत्म हो जाता है। महात्मा गांधी पर मराठी कवि वसंत दत्तात्रेय गुर्जर द्वारा लिखित कविता 1994 में प्रकाशित करने के आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये बात कही थी।
प्रशांत भूषण ने गांधी के कथन को उद्धृत किया था
अपने खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चल रहे अवमानना मामले में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने वर्ष 2020 में उच्चतम न्यायालय में दिए बयान में महात्मा गांधी के एक कथन को उद्धृत किया था। दरअसल महात्मा गांधी ने एक सरकारी पत्र के प्रकाशन के दौरान उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना याचिका में माफी मांगने से इनकार कर दिया था। वर्ष 1919 में सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजे गए पत्र में कहा था, मैं सम्मानपूर्वक उस दंड को भुगतना चाहूंगा जो माननीय मुझे देने की कृपा कर सकते हैं।
महात्मा गांधी के विचार प्रासंगिक होने के साथ-साथ प्रकाशपुंज के रूप में अदालतों को भी दिशा दिखाते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट हो या फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट, दोनों के ऐतिहासिक सफर में कई ऐसे पड़ाव आए, जहां इन अदालतों ने महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख किया। अदालतों ने राष्ट्रपिता के सम्मान की भी सदैव रक्षा की है।
विगत 1 नवंबर 2021 को उन्नति मैनेजमेंट कॉलेज और चार अन्य बनाम राकेश कुमार, निदेशक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों से कहा था कि जब भी वो संदेह से घिरे हों या किसी निर्णय को लेकर दुविधा में हो तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जंतर का इस्तेमाल करें।
जस्टिस अजय भनोट की एकलपीठ 15 मार्च, 2021 के न्यायालय के आदेश के उल्लंघन के कारण दायर अवमानना याचिका से निपट रही थी, जो सबसे निचले तबके के जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने से संबंधित थी। एकलपीठ ने महात्मा गांधी के जंतर का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे, तब यह कसौटी आजमाओ।
जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा। क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा ?
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