हर दिन नए तीरों की टंकार। हर दिन नई हुंकार। पल-पल समीकरणों में बनती-बिगड़ती सरकार। कभी ये पलड़ा भारी, तो कभी वो…। ऐसा रोमांच देखा है कहीं! यूपी के सियासी समीकरणों में कब एक-एक मिलकर ग्यारह हो जाए, पता नहीं। यहां कब कोई जोड़ घटाने में बदल जाए, पता नहीं…। समीकरणों की ये अंक गणित निराली है। कौन समर्थक विरोध कर रहा है और कौन विरोधी समर्थन कर तीसरे को फायदा पहुंचा रहा है, यह गुणा-भाग यहीं देखने को मिलता है।
यूपी की सियासत का अंदाज ही निराला है। मिजाज ही निराला है। विधानसभा चुनाव बेहद रोचक पड़ाव पर पहुंच चुका है। पर, ये रोमांच नतीजों पर ही जाकर नहीं ठहर जाएगा। यहां के नतीजे बहुत कुछ बदलाव लाएंगे। नए गुल खिलाएंगे। नतीजे कैसे नई इबारत लिखेंगे, नए समीकरण बनाएंगे, बता रहे हैं महेंद्र तिवारी…
विधानसभा चुनाव के परिणामों का एमएलसी से राष्ट्रपति चुनाव तक दिखेगा असर
18 वीं विधानसभा के चुनाव बहुत अहम हैं। नतीजे आते ही इनका असर दिखना शुरू हो जाएगा। विधान परिषद में मनोनयन से खाली होने वाली सीटों से लेकर विधायकों से चुनी जाने वाली सीटों पर नतीजे सीधे असर डालेंगे। परिषद में स्थानीय निकाय कोटे की सीटों के चुनाव भी सत्ता के समीकरणों से सीधे प्रभावित होते हैं।
इनके चुनाव विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद होने हैं। 13 सीटें विधानसभा कोटे की भी इसी साल खाली हो रही हैं। जो भी पार्टी सत्ता में आएगी, विधानसभा में अपनी ताकत के हिसाब से बड़ी संख्या में लोगों को परिषद में समायोजित कर सकेगी। यही नहीं, राज्यसभा की रिक्त हो रही सीटों के साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर भी इन नतीजों की अहम भूमिका होगी। देश के शीर्ष पदों के लिए चुनाव इसी वर्ष होने हैं।
विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे। इससे पहले 7 मार्च को ही विधान परिषद की स्थानीय निकाय क्षेत्र के 35 सदस्यों के कार्यकाल समाप्त हो जाएंगे। पिछला स्थानीय निकाय चुनाव सपा शासनकाल में हुआ था। ज्यादातर सीटों पर सपा का कब्जा है। इसका असर ये रहा कि सत्ता से बाहर होने के बावजूद योगी के पूरे शासनकाल में परिषद में सपा का दबदबा रहा। सरकार कई कानून अपनी इच्छा के हिसाब से पारित नहीं करा पाई।
जिन सदस्यों के कार्यकाल 7 मार्च को समाप्त हो रहे हैं, उनमें 30 सपा के, दो बसपा के, एक भाजपा का व दो निर्दलीय सदस्य हैं। इनमें कई नए सियासी समीकरणों का अनुमान लगाते हुए दल बदल चुके हैं। भाजपा सरकार परिषद की इन 35 सीटों का चुनाव विधानसभा चुनाव से पहले कराना चाहती थी। पर, तेजी से बदली परिस्थितियों में ऐसा नहीं हो सका। अब नई सरकार के सत्ता संभालते ही ये चुनाव होंगे।
इस चुनाव में ग्रामीण पंचायतों के प्रतिनिधि व शहरी स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि मतदान करते हैं। लगातार देखा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव नतीजों का सबसे पहले असर पंचायतों पर पड़ता है। सत्ता बदलते ही जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत सदस्यों से लेकर ग्राम प्रधानों तक की आस्था बदलने लगती है। प्रमुख व प्रधानों के खिलाफ अविश्वास प्रस्तावों का सिलसिला शुरू हो जाता है। ऐसे में जो भी दल सत्ता में आएगा, इन 35 सीटों के चुनाव में उसका भाव बढ़ जाएगा।
विधान परिषद में मनोनीत क्षेत्र की छह सीटें भी इसी वर्ष खाली हो रही हैं। इनमें तीन का कार्यकाल 28 अप्रैल को, जबकि तीन अन्य का 26 मई को खत्म हो रहा है। इन सभी सीटों पर मनोनयन सपा शासनकाल में हुआ था और सपा से ही जुड़े लोग मनोनीत किए गए थे। जो भी दल सत्ता में आएगा, उसके पास इन छह सीटों पर मनोनयन का अधिकार होगा।
विधानसभा कोटे की 13 सीटों पर भी इसी साल चुनाव
विधान परिषद में विधानसभा कोटे की 13 सीटें 6 जुलाई को खाली हो रही हैं। इनमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। विधानसभा चुनाव में जिस दल को जितनी अधिक सीटें मिलेंगी, वह यहां भी उतनी अधिक सीटें जीत पाएगा।
6 जुलाई को इनका कार्यकाल होगा खत्मः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप, दीपक सिंह और भूपेंद्र सिंह।
11 राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 4 जुलाई को होगा खत्म
प्रदेश के 11 राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 4 जुलाई को पूरा हो रहा है। इनमें सतीश चंद्र मिश्र व अशोक सिद्धार्थ बसपा के, शिव प्रताप शुक्ला, सैयद जफर इस्लाम, सुरेंद्र सिंह नागर, जय प्रकाश निषाद व संजय सेठ भाजपा के, विश्वंभर प्रसाद निषाद, रेवती रमण सिंह व सुखराम सिंह यादव सपा के और कांग्रेस के कपिल सिब्बल शामिल हैं। इनका चुनाव विधानसभा के निर्वाचित सदस्य करेंगे। जिस पार्टी के जितने अधिक विधायक जीतेंगे, उनके उतने अधिक सदस्य राज्यसभा में पहुंच सकेंगे।
जुलाई में राष्ट्रपति का कार्यकाल हो रहा पूरा, चुनाव में यूपी के विधायकों की अहम भूमिका
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पांच वर्ष का कार्यकाल जुलाई में पूरा हो रहा है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद इस चुनाव की गहमागहमी बढ़ जाएगी। राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल करता है। इसमें संसद के दोनों सदनों, राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।
सांसदों के वोट का मूल्य निश्चित होता है, लेकिन विधायकों के वोट का मूल्य अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है। देश में सर्वाधिक आबादी वाला राज्य होने की वजह से यूपी के विधायकों के वोट का मूल्य सर्वाधिक होता है। यूपी के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 होता है। सर्वाधिक विधायक होने की वजह से भी यूपी के विधायकों की भूमिका सबसे अहम होती है। मौजूदा समीकरणों की बात करें तो पिछले 5 वर्षों में भाजपा ने कई राज्यों की सत्ता गंवाई है या पहले की अपेक्षा कम विधायकों के साथ सत्ता में है।
मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, बिहार और हरियाणा की स्थितियों से इसे समझा जा सकता है। महाराष्ट्र व राजस्थान में कांग्रेस या उसके समर्थित दल की सरकार सत्तारूढ़ हो चुकी है। मध्यप्रदेश में काफी जोड़-तोड़ व हरियाणा और बिहार में गठबंधन की सरकार है। पश्चिम बंगाल में जरूर कुछ विधायक बढ़े हैं। इससे 2017 के राष्ट्रपति चुनाव की तरह एकतरफा जीत के समीकरण नहीं रह गए हैं। इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से राष्ट्रपति चुनाव के सियासी समीकरण भी साफ होंगे। यदि इन राज्यों में भाजपा कमजोर हुई तो सहयोगी दलों से राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव या दूसरे लाभ के पदों को लेकर मोल-तोल बढ़ जाएगी।
उपराष्ट्रपति चुनाव में भी दिखेगा असर
विधानसभा चुनावों के बाद अगस्त में मौजूदा उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल पूरा हो रहा है। उप राष्ट्रपति का चुनाव राज्यसभा व लोकसभा के सदस्य मिलकर करते हैं। बताया जा रहा है कि राज्य सभा की 73 सीटों पर द्विवार्षिक चुनाव जुलाई तक कराए जाएंगे। यह 245 सदस्यों वाली राज्यसभा की करीब एक तिहाई सीटों के बराबर है। इनमें कुछ सदस्य अप्रैल, कुछ जून व कुछ जुलाई में रिटायर हो रहे हैं। यूपी के 11 सदस्य जुलाई में रिटायर होंगे। इन राज्यसभा सदस्यों का चुनाव नए विधायक ही करेंगे जो उपराष्ट्रपति चुनाव के मतदाता होंगे।
नगर निकाय चुनाव भी इसी साल होंगे
वर्ष 2017 में अक्तूबर से दिसंबर के बीच त्रिस्तरीय नगर निकायों के चुनाव भी हुए थे। इन निकायों का कार्यकाल इसी साल पूरा हो रहा है और वर्ष के उत्तरार्द्ध में चुनाव संभावित हैं। भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में बड़ी संख्या में नई नगर पंचायतों गठन या सीमा विस्तार किया है। इन चुनावों में सत्तासीन पार्टी का भरपूर असर रहता है। जो भी पार्टी विधानसभा चुनाव जीतेगी, सकारात्मक ऊर्जा के साथ निकायों के चुनाव में मैदान में जाएगी। निकाय चुनावों में शहरी क्षेत्रों में भाजपा व ग्रामीण क्षेत्रों में सपा का दबदबा रहता आया है।
हर दिन नए तीरों की टंकार। हर दिन नई हुंकार। पल-पल समीकरणों में बनती-बिगड़ती सरकार। कभी ये पलड़ा भारी, तो कभी वो…। ऐसा रोमांच देखा है कहीं! यूपी के सियासी समीकरणों में कब एक-एक मिलकर ग्यारह हो जाए, पता नहीं। यहां कब कोई जोड़ घटाने में बदल जाए, पता नहीं…। समीकरणों की ये अंक गणित निराली है। कौन समर्थक विरोध कर रहा है और कौन विरोधी समर्थन कर तीसरे को फायदा पहुंचा रहा है, यह गुणा-भाग यहीं देखने को मिलता है।
यूपी की सियासत का अंदाज ही निराला है। मिजाज ही निराला है। विधानसभा चुनाव बेहद रोचक पड़ाव पर पहुंच चुका है। पर, ये रोमांच नतीजों पर ही जाकर नहीं ठहर जाएगा। यहां के नतीजे बहुत कुछ बदलाव लाएंगे। नए गुल खिलाएंगे। नतीजे कैसे नई इबारत लिखेंगे, नए समीकरण बनाएंगे, बता रहे हैं महेंद्र तिवारी…
18 वीं विधानसभा के चुनाव बहुत अहम हैं। नतीजे आते ही इनका असर दिखना शुरू हो जाएगा। विधान परिषद में मनोनयन से खाली होने वाली सीटों से लेकर विधायकों से चुनी जाने वाली सीटों पर नतीजे सीधे असर डालेंगे। परिषद में स्थानीय निकाय कोटे की सीटों के चुनाव भी सत्ता के समीकरणों से सीधे प्रभावित होते हैं।
इनके चुनाव विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद होने हैं। 13 सीटें विधानसभा कोटे की भी इसी साल खाली हो रही हैं। जो भी पार्टी सत्ता में आएगी, विधानसभा में अपनी ताकत के हिसाब से बड़ी संख्या में लोगों को परिषद में समायोजित कर सकेगी। यही नहीं, राज्यसभा की रिक्त हो रही सीटों के साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर भी इन नतीजों की अहम भूमिका होगी। देश के शीर्ष पदों के लिए चुनाव इसी वर्ष होने हैं।
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