इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुशीनगर के कसया इलाके में सादे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर कराए जाने के मामले में के एंड टी केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधक निदेशक के साथ दो अन्य लोगों के खिलाफ निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है।
इसके साथ ही मजिस्ट्रेट की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि वाद के विचारण के दौरान न्यायिक मजिस्ट्रेट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने भूपेंद्र सिंह व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में याची के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और न्याय के लिए जरूरी है कि उक्त कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए। याची के खिलाफ दीपचंद सिंह ने तुर्कपट्टी थाने में आईपीसी की धारा 506 और 386 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई थी। लेबर ट्रिब्यूनल लुधियाना में वाद दायर कर मुआवजा देने की मांग की थी।
याची पर आरोप था कि वह दो लोगों के साथ प्रतिवादी के घर गया और उसकी पत्नी की कनपटी पर बंदूक लगाकर उससे सादे पेज पर हस्ताक्षर करवा लिए। मामले में सुनवाई करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट ने प्रतिवादी की याचिका को खारिज कर दिया था।
प्रतिवादी ने इसके लिए खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील दायर की तो सत्र न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को फिर से सुनवाई का आदेश दिया। याची ने सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ यहां अपील दायर कर थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुशीनगर के कसया इलाके में सादे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर कराए जाने के मामले में के एंड टी केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंधक निदेशक के साथ दो अन्य लोगों के खिलाफ निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है।
इसके साथ ही मजिस्ट्रेट की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि वाद के विचारण के दौरान न्यायिक मजिस्ट्रेट ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने भूपेंद्र सिंह व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में याची के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और न्याय के लिए जरूरी है कि उक्त कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए। याची के खिलाफ दीपचंद सिंह ने तुर्कपट्टी थाने में आईपीसी की धारा 506 और 386 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई थी। लेबर ट्रिब्यूनल लुधियाना में वाद दायर कर मुआवजा देने की मांग की थी।
याची पर आरोप था कि वह दो लोगों के साथ प्रतिवादी के घर गया और उसकी पत्नी की कनपटी पर बंदूक लगाकर उससे सादे पेज पर हस्ताक्षर करवा लिए। मामले में सुनवाई करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट ने प्रतिवादी की याचिका को खारिज कर दिया था।
प्रतिवादी ने इसके लिए खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील दायर की तो सत्र न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को फिर से सुनवाई का आदेश दिया। याची ने सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ यहां अपील दायर कर थी।
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