सुधीर कुमार, ग्रेटर नोएडा
जरूरी नहीं कि नारों का शोर सब ठीक होने की तस्दीक करे। चुनाव की भीड़ में कुछ जुबान कई बार खामोश भी होती हैं। खामोशी के इसी ज्वालामुखी ने नेताजी की टेंशन बढ़ा दी है। कहीं अपना पत्ता सेट नहीं होने का आक्रोश है तो कहीं समाज की चिंता। कुछ सीटों पर बाहरी अतिक्रमण से भी पुराने नेता खफा हैं। तीन वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी से बीजेपी हिचकोले खा रही है। सपा के कुछ नेताओं ने तो बाहरी की एंट्री पर इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस की ग्रेटर नोएडा में हुई एक मीटिंग में खुलकर असंतोष दिखा था।
आक्रोश का यह ज्वालामुखी फटे नहीं, मुख्यालय में बैठे नेताओं को यह टेंशन परेशान कर रही है। भितरघात और गुटबाजी की वजह से पंचायत चुनाव जैसा जोश अभी नहीं दिख रहा। बीजेपी के तीनों गुटों के नेता अपने चहेते को टिकट दिलाने की जोर कई दिनों से लगा रहे थे। दादरी सीट से एक नेता अपने करीबी को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। लेकिन, जेवर सीट पर मामला गड़बड़ा गया।
दूसरी तरफ जेवर सीट पर दूसरा गुट अपने करीबी को टिकट दिला दिया, लेकिन दादरी सीट पर उनका जोर नहीं चला। तीसरे गुट के नेता जी ने खुद की दावेदारी पेश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब तीनों नेताओं और उनके समर्थकों के साथ भितरघात और गुटबाजी से प्रत्याशी भी डरे हैं। स्थिति यह है कि अब गुटों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने चुप्पी साध ली है। यह चुप्पी नेताओं को परेशान कर रही है। ऐसे में नाराज कार्यकर्ताओं को गुटों को चुनाव में एकजुट करने की मुहिम शुरू किए जाने की तैयारी आरंभ कर दी गई है।
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