लखनऊ
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। एक तरफ तमाम पार्टियां गठबंधन से लेकर सियासी गुणा-गणित में लगी हुई हैं, वही दूसरी तरफ वोट की राजनीति को ध्यान में रखते हुए भी तरकश में तीर सजाए जा रहे हैं। इस चुनाव में सबसे ज्यादा साख बीजेपी की लगी हुई है। 2017 में उसकी प्रचंड जीत अब पुरानी बात हो चुकी है और पार्टी अब नए सिरे से संगठन से लेकर वोटबैंक को दुरुस्त रखने की जद्दोजहद में लगी हुई है। पार्टी के लिए सबसे अहम चुनौती ब्राह्मण मतदाता माने जा रहे हैं। दरअसल पिछले कुछ समय से लखनऊ के सत्ता के गलियारे में चर्चाएं तेज हैं कि ब्राह्मण मतदाता इस बार बीजेपी से ‘नाराज’ हैं और पार्टी को इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
इसी को लेकर बीजेपी हाईकमान की तरफ से रविवार को एक आकस्मिक मीटिंग दिल्ली में बुलाई गई। इसमें पार्टी के यूपी से प्रमुख ब्राह्मण नेताओं के साथ चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं ने शिरकत की। इनमें डॉ रीता बहुगुणा जोशी, दिनेश शर्मा, अनिल शर्मा, जितिन प्रसाद आदि मौजूद रहे. इस मीटिंग में ब्राह्मण समुदाय को लुभाने के लिए बीजेपी ने 4 सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी में ब्राह्मण समुदाय के बड़े नेता हैं. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला, भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री और तेज तर्रार नेता अभिजात मिश्रा, डॉ महेश शर्मा और सांसद राम भाई मोकारिया शामिल हैं। बता दें अभिजात मिश्रा ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए कई बड़े प्रदर्शनों में संगठन की अगुवाई की। शुरुआती रणनीति के तहत ये सभी क्षेत्रवार प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों का दौरा करेंगे और ब्राह्मणों तक पार्टी की बात पहुंचाएंगे। आगे की रणनीति के लिए दिल्ली में एक-दो दिन मीटिंगों का दौर चलेगा और प्लान तैयार किया जाएगा।
यूपी चुनाव में क्यों अहम माने जा रहे ब्राह्मण मतदाता
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में करीब 14 फीसदी तक ब्राह्मण वोटबैंक माना जाता है। सभी सियासी दलों की इस पर नजर रहती है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार दरअसल ब्राह्मणों का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए राहें आसान करता है, उसका अहम कारण ये है कि बाकी जातियों की तुलना में ब्राह्मण जाति ज्यादा मुखर मानी जाती है। इस बार भी अगर देखें तो समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी प्रबुद्ध सम्मेलन कर रही है, वहीं प्रियंका गांधी भी लगातार योगी सरकार पर ब्राह्मणों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाती रही हैं। अब कमेटी बनाकर और कार्यक्रम पेश कर बीजेपी की कोशिश है कि इस समुदाय में ये संदेश जाए कि उनकी भलाई के लिए पार्टी ने कोशिशें की हैं।
यूपी की सियासत में ब्राह्मणों के रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंडल आंदोलन से पहले प्रदेश में 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। हालांकि मंडल आंदोलन के बाद यूपी की सियासत पिछड़े, मुस्लिम और दलित पर केंद्रित हो गई। हालांकि प्रदेाश में किसी दल ने कभी ब्राह्मण को कभी वोट बैंक नहीं माना। लेकिन 2007 में मायावती ने पहली बार बहुमत की सरकार बनाई तो दलित-मुस्लिमों के साथ ब्राह्मण सोशल इंजीनियरिंग सामने आई। मायावती की इस जीत में ब्राह्मण वोट बैंक का विशेष योगदान माना गया और बीएसपी से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए।
एक एनकाउंटर के बाद सियासत ने करवट बदली
इसके बाद 2012 में अखिलेश मुख्यमंत्री बने तो 21 ब्राह्मण विधायक सपा के पास थे। लेकिन इसके बाद 2014 के बाद मोदी लहर में ब्राह्मण वोट बैंक बीजेपी के साथ हो गया और 2017 में इसका असर ये रहा है बीजेपी की प्रचंड जीत में 46 बीजेपी से विधायक हुए। फिर 2020 में कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर एक तबके ने योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू किया। यही नहीं कांग्रेस, सपा, बसपा से लेकर तमाम विपक्षी दलों ने बीजेपी पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
(File Photo)
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