अभिषेक कुमार झा, वाराणसी
धर्म और मोक्ष की नगरी में धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांड कराने के लिए देश विदेश के लोग गंगा किनारे सदियों से आते रहे हैं। इस कर्मकांड को गंगा किनारे रहने वाले पंडे पुरोहित ही हमेशा से कराते रहे हैं। घाट पर होने वाली दैनिक गंगा आरती भी ये पुरोहित वर्षों से समिति बनाकर व्यक्तिगत तौर पर कराते आ रहे हैं। घाट किनारे रहने वाले पंडे-पुरोहितों ने सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कराया है। जजमानों से मिलने वाली दान-दक्षिणा इन दैनिक धार्मिक गतिविधियों के साथ इन पुरोहितों की आय का मुख्य स्रोत है लेकिन घाट पर होने वाली गंगा आरती को संस्थागत स्वरूप देने का एक प्रशासनिक प्रयास का विरोध अब घाट के पुरोहित करने लगे हैं।
बीते दो महीनों से अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस नाम की संस्था के नेतृत्व में अस्सी घाट पर सांध्यकालीन आरती शुरू की गई, जिसका विरोध ये लोग बीते 60 दिनों से कर रहे है। नए अस्सी घाट के ठीक बगल में सन 2000 से लगातार स्थानीय पुरोहित बलराम मिश्रा सांध्य आरती करा रहे हैं। इसके लिए जय मां गंगा सेवा समिति बनाकर सांध्य आरती की जाती है। इस समिति से जुड़े सभी पुरोहित वर्षो से माँ गंगा के किनारे आने वाले श्रद्धालुओं का कर्मकांड और पूजा-पाठ कराकर अपने परिवार को पालते हैं।
सितम्बर महीने में जैसे ही योगी सरकार ने हर घाट पर सांध्य आरती कराने का निर्णय लिया, पूर्व अधिकारी समेत कई भाजपा के नेता और स्थानीय दबंगो ने नए अस्सी घाट पर शाम की आरती शुरू कर दी। आरती कराने के साथ अब घाट पर आने वाले पर्यटकों से श्रद्धा स्वरूप दिए जाने वाले दान पर भी संस्था से जुड़े दबंगो की नज़र पड़ गई है। घाट पर ही एक बड़ा सा दान पेटी रख दिया गया है। साथ ही विभाग के वेबसाइट पर भी मात्र सुबह-ए-बनारस संस्था का ही ज़िक्र है।
ऐसे में जो सालों से घाट पर आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं के दान पर अपना परिवार पाल रहे हैं उन पर अब लगातार संकट गहराता जा रहा है। इस बात की शिकायत उन्होंने पत्र लिख कर पीएम मोदी और सीएम योगी से भी की है। घाट के पुरोहित और पंडे रोजाना आरती के समय विरोध स्वरूप धरने पर बैठते हैं। बीते दो महीनों से हम लोगों का धरना चल रहा है लेकिन अभी तक किसी अधिकारी ने हमारी सुध नहीं ली है।
अस्सी घाट आने वाली पर्यटकों की भीड़ से कमाई पर है नज़र
वाराणसी में कुल चौरासी घाट हैं। इन सभी घाटों में अस्सी, शीतला, दशाश्वमेध घाट पर शाम की गंगा आरती और कर्मकांड के लिए सबसे ज्यादा पर्यटकों की आवाजाही होती है। सुबह-ए-बनारस संस्था की शुरुआत तत्कालीन संस्कृति विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी रत्नेश वर्मा ने जिला प्रशासन के निर्देश पर काशी के कुछ प्रबुद्ध लोगों के साथ शुरू किया था। रत्नेश वर्मा ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि अस्सी घाट पर 24 नवम्बर 2014 को सुबह-ए-बनारस की शुरुआत बनारस के परम्परा और संस्कृति को संवर्धित करने के लिए किया गया था।
पीपीपी मॉडल के तहत सुबह योग, संगीत और आरती की शुरुआत की गई थी। रिटायरमेंट के बाद भी वह इस संस्था से जुड़े हुए हैं। सितम्बर 2021 में राज्य की योगी सरकार ने सभी घाटों पर संध्या आरती कराने का निर्देश दिया। निर्देश के बाद नए अस्सी घाट पर शाम की आरती शुरू हुई लेकिन ये पीपीपी मॉडल के तहत संचालित होती है और अर्चकों समेत पूजा सामग्री का सभी खर्च बैंक समेत अलग अलग संस्थाओं से मिलता है ।
घाट पर आने वाले पर्यटकों या कर्मकांड कराने वालों से किसी भी तरह के दान की मांग नही की जाती है। हालांकि जब एनबीटी ने घाट पर जा कर रत्नेश वर्मा के दावों की पुष्टि की तो मामला एकदम उलट दिखा। नए अस्सी घाट पर एक बड़ा सा दान पात्र रखा हुआ था जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में सुबह-ए-बनारस लिखा हुआ था।
चुनावी साल में बन सकता है मुद्दा
काशी विश्वनाथ धाम के भव्य लोकार्पण को लेकर कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल के निशाने पर बीजेपी है। धर्म के व्यवसायीकरण और राजनीतिकरण के आरोप लगातार विपक्ष लगाता रहा है ऐसे में घाट पर दो महीनों से चल रहे इस धरने पर राजनीति होना स्वभाविक है।
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