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न्याय की जीत: आगरा की शिवाली ने ठोस पैरवी कर तीन लोगों को फांसी से बचाया, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

बुलंदशहर के थाना नरौरा क्षेत्र में ईंट भट्ठा संचालक मौसम खां सहित छह लोगों की हत्या के आरोप में उनके बेटे मोमीन खां, भतीजे जयकम खां और साजिद सुप्रीम कोर्ट से बरी होने पर शनिवार को आगरा केंद्रीय कारागार से रिहा हो गए। ये तीनों आठ साल जेल में बंद थे। जेल से बाहर आने के बाद उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने इसे न्याय की जीत बताया। सामूहिक हत्याकांड में निचली अदालत ने जयकम खां, साजिद और मोमीन को फांसी की सजा सुनाई थी। इस सजा के विरुद्ध उनकी पैरवी सुप्रीम कोर्ट में आगरा की वकील शिवाली चौधरी ने की। इस केस में पुलिस की कमियों को उजागर किया गया। यही वजह रही कि तीनों को फांसी की सजा से बरी कर दिया गया। उनको रिहाई मिल गई। उन्हें न्याय दिलाने में शिवाली ने अहम भूमिका निभाई।

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शमसाबाद रोड स्थित कावेरी विहार निवासी जय सिंह की बेटी शिवाली चौधरी ने आगरा के सेंट एंथनीज स्कूल से वर्ष 2004 में 12वीं पास की थी। इसके बाद वकालत की पढ़ाई की। वर्ष 2010 में इंग्लैंड से एलएलएम किया। वहां के जर्मन प्रोफेसर डर्क वैन जाइल स्मिट के निर्देशन में डेथ पेनॉल्टी पर थीसिस लिखी थी।

अधिवक्ता शिवाली चौधरी

शिवाली ने बताया कि प्रोजेक्ट 39 ए प्रोजेक्ट एनजीओ डेथ प्रिजनर के लिए काम करता है। इसमें कई अधिवक्ता हैं। यह लोग केस को सुप्रीम कोर्ट लेकर आए थे। वरिष्ठ अधिवक्ता डीएस नायडू (पूर्व जज) और महिला वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामाकृष्ण ने केस में पैरवी की। जयकम और साजिद का केस शिवाली ने खुद तैयार किया। नित्या रामाकृष्ण ने मोमीन का केस तैयार किया।

जेल से रिहा हुए जयकम खान, साजिद और मोमिन

पुलिस की उजागर कीं कमियां

पुलिस जयकम, साजिद और मोमीन को मौका ए वारदात पर लेकर पहुंची थी। प्रॉपर्टी के लिए हत्या करने की बात कबूलने का दावा किया और इनकी निशानदेही पर छुरियां बरामद दिखाईं। मगर, बरामदगी में स्वतंत्र गवाह नहीं था। अभियोजन ने लिखा कि तीनों हत्या करके घर के पीछे से भाग गए। मोमीन ने घर पर जाकर कपड़े बदले। मोमीन ने बेड के नीचे कपड़े छिपा दिए। फिर साफ कपड़े पहनकर बस स्टैंड पर पहुंचे, वहीं से पकड़े गए। यही कमी थी, हत्या करके भागे तो कपड़े बदलने का समय कैसे मिल गया, फिर बस स्टैंड पर क्यों जाएंगे।

जेल से रिहा हुए तीनों लोग

पुलिस ने विवेचना में लिखा कि जब आरोपियों को बरामदगी के लिए लाए तो गांव के लोग आ गए। उन्हें कपड़ों से पहचान लिया। मगर, पुलिस ने गांव के किसी व्यक्ति को गवाह नहीं बनाया। मौसम खां के बेटे अलीशेर ने केस किया। उसने अपने भाई मोमीन पर ही हत्या का आरोप लगाया। अलीशेर और उसके जीजा चश्मदीद बने और छिपकर हत्या होते देखना बताया। पुलिस ने तीन नक्शा नजरी पेश किए। इसमें दोनों के छिपने की जगह अलग-अलग थी।

अधिवक्ता शिवाली चौधरी

पुलिस ने चाकू बरामद किए थे। फील्ड यूनिट ने फिंगर प्रिंट लिए थे। मगर, चाकू की एफएसएल की रिपोर्ट कोर्ट में पेश नहीं की। फिंगर प्रिंट लेने वाले कर्मचारी को गवाह बनाया गया। उसने बयान में कहा कि सबसे पहले मोमीन ने फिर जयकम ने चाकू बरामद कराया। इसके बाद फील्ड यूनिट चली गई। दो लाइन में लिखा था कि बाद में साजिद ने बरामद कराया। अगर, टीम चली गई तो फिंगर प्रिंट कैसे आ गए। यह कमियां दिखाई गईं।