लखनऊ
राजनीति में जो भी होता है अप्रत्याशित होता है। यही राजनीति का सबसे बड़ा गुण भी है। कोई अप्रत्याशित तरीके से कभी जीत जाता है, तो कोई पूरी तैयारी होने और पूरी मेहनत करने के बावजूद सत्ता तक नहीं पहुंच पाता। राजनीति का सारा मजा इसी अनिश्चितता में है। यहां यह भी नहीं पता होता कि कौन हमारा दुश्मन है, कौन दोस्त है…कब कौन ‘जूनियर’ एक झटके में ‘सीनियर’ बन जाए कोई भरोसा नहीं। उत्तराखंड और गुजरात के उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां एक सामान्य विधायक (पुष्कर सिंह धामी और भूपेंद्र पटेल) को राज्य की सत्ता सौंप दी गई। इसलिए ऐसे अनिश्चितता भरे समय में जब तक ताजपोशी न हो जाए, हर विधायक और मंत्री खुद के सत्ता के शीर्ष पर होने का सपना देखने को स्वतंत्र है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Up Chunav News) की घोषणा से पहले भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल रही है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या (Keshav Prasad Maurya) को लेकर यह तक कहा जा रहा है कि वह मार्च 2022 में मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार हो सकते हैं। हालांकि खुद केशव प्रसाद मौर्या कई मौकों पर इसको लेकर सफाई देते नजर आए हैं। उन्होंने ऐसे सवालों पर दो टूक कहा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी, मगर उनसे आखिरी बार जब मीडिया ने सवाल पूछा था कि 2022 का चुनाव किसके चेहरे पर लड़ेंगे तो उनका जवाब था- कमल के।
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कहां से आई केशव प्रसाद मौर्या की दावेदारी?
केशव प्रसाद मौर्या की मुख्यमंत्री पद को लेकर दावेदारी नई नहीं है। 2017 के चुनाव परिणाम आने के बाद भी उन्हें रेस में सबसे आगे माना जा रहा था। मगर अचानक गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ की एंट्री हुई और उनके नाम पर मुहर लग गई। केशव प्रसाद को उपमुख्यमंत्री बनाने को डैमेज कंट्रोल के तौर पर देखा गया। केशव प्रसाद मौर्य 2017 में सीएम पद की रेस में पिछड़ने के बाद हार मानने को तैयार नहीं हैं। अभी तक उनका एक भी बयान ऐसा नहीं आया है, जिसमें उन्होंने यह कहा हो कि योगी ही 2022 में भी सीएम होंगे।
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अपने बयानों से सियासी बिसात बिछा रहे केशव मौर्या
केशव प्रसाद मौर्या 2022 के चुनाव की तैयारियों में लग गए हैं। ‘अब मथुरा की बारी है’ जैसा बयान देकर भले उनकी चौतरफा आलोचना हुई हो, मगर उन्होंने अपनी ओर चलाए तीरों को विपक्ष की तरफ ही मोड़ दिया। उन्होंने सवाल किया कि क्या अखिलेश नहीं चाहते हैं कि मथुरा में कृष्णजन्मभूमि पर भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर हो? इसके अलावा लुंगी और जालीदार गोल टोपी वाले उनके बयान से भी यह संकेत मिलता है कि वह अपनी छवि ‘फायर ब्रांड हिंदू नेता’ की गढ़कर पार्टी के अंदर अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहते हैं।
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केशव ने की योगी के ‘विरोधी’ से मुलाकात
गोरखपुर सदर से चार बार के बीजेपी विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल कई बार अपनी ही सरकार और पार्टी पर निशाना साधते नजर आए। एक इंजीनियर का ट्रांसफर कराने के लिए वह लखनऊ तक चले आए। योगी के विश्वासपात्र और गोरखपुर से सांसद रवि किशन के विरोध के बावजूद इंजीनियर केके सिंह का ट्रांसफर कराने के बाद उन्होंने केशव प्रसाद मौर्या का धन्यवाद किया। सरकार के खिलाफ बयानबाजी को लेकर उन्हें बीजेपी ने कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। पिछले हफ्ते इन्हीं राधामोहन दास अग्रवाल के घर जाकर केशव प्रसाद मौर्या ने मुलाकात की और भोजन भी किया। इस मुलाकात को योगी के लिए एक नई चुनौती की तरह देखा गया। हालांकि केशव प्रसाद मौर्या और विधायक राधा मोहन की तरफ से इसको लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई।
CM योगी से ‘आगे’ निकलने की कोशिश में केशव?
इसके अलावा सीडीएस जनरल बिपिन रावत के क्रैश हुए हेलिकॉप्टर में मौजूद आगरा के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान का भी हादसे में देहांत हो गया था। केशव प्रसाद मौर्या ने पिछले हफ्ते गुरुवार को ही शहीद के घर जाकर उनके पिता सुरेंद्र सिंह चौहान को सांत्वना दी, केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि प्रदेश सरकार इस दुखद घड़ी में उनके परिवार के साथ खड़ी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले दिन शुक्रवार को विंग कमांडर के घर पहुंच पाए और परिवार को आर्थिक मदद की घोषणा की। ऐसे में सवाल उठे कि क्या केशव प्रसाद मौर्या को मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के बारे में जानकारी नहीं थी? अगर जानकारी थी तो वह उनके साथ या उनके बाद क्यों नहीं आए? मुख्यमंत्री से आगे निकलने की इस जल्दी ने कयासों को नए सिरे से जन्म दे दिया।
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‘बीजेपी में दबी हुई हैं लोकतांत्रिक आवाजें, केशव उन्हीं आवाजों का प्रतीक’
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं, ‘योगी पर सर्वसहमति 2017 में ही नहीं थी। मगर अनुशासित संगठन होने के नाते पार्टी के भीतर लोगों ने इस फैसले को भी माना। बीजेपी में जो एकल नेतृत्व चल रहा है, उसमें मोदी ही इस समय सबकुछ हैं। ऐसी स्थिति में पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक आवाजें दब जाती हैं। पार्टी में विरोध की आवाजें हैं, मगर उभर नहीं रही हैं। अगर वक्त रहते बीजेपी ने इनको तवज्जो नहीं दी तो इसका बड़ा नुकसान हो सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘उत्तर प्रदेश में 54 पर्सेंट बैकवर्ड हैं। इस बैकवर्ड को कल्याण सिंह के बाद एक प्रबल नेतृत्व नहीं मिल सका। ऐसे में कल्याण सिंह के बाद खाली हुए निर्वात को भरा जा सके, हर पिछड़ा नेता इसी की कोशिश में है। केशव प्रसाद मौर्या भी इसी पार्टी के भीतर घुटन वाली नाराजगी के प्रतीक हैं, चुनाव में इसका नुकसान भी हो सकता है।’
‘योगी को CM का चेहरा घोषित करने का हो सकता है नुकसान’
एनके सिंह ने आगे कहा, ‘बंगाल चुनाव के बाद वैसे भी मोदी की सर्वमान्यता पर प्रश्नचिह्न भी लगा है। लिहाजा पार्टी को यह सोचना पड़ेगा कि वह योगी के नेतृत्व को ही सामने रखकर चुनाव में आगे बढ़ेगी या जनता को असमंजस में रखेगी…असमंजस में रखने का लाभ होगा कि जनता और पार्टी के नेताओं के सामने सारे विकल्प खुले रहेंगे, इससे समाजवादी पार्टी के उभार की काट भी मिल जाएगी। लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव में उतरने से बीजेपी को नुकसान संभव है, पहले भी बीजेपी को मुख्यमंत्री का चेहरा डिक्लेयर न करने का लाभ ही मिला है। वैसे भी पार्टी बंगाल चुनाव के परिणामों और कृषि कानूनों की वापसी जैसे बड़े झटकों से नहीं उबर पाई है, ऐसे में वह कोई रिस्क लेने की कैपिसिटी में नहीं दिख रही है।’
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प्रधानमंत्री ने केशव प्रसाद से की थी मुलाकात
पिछले हफ्ते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली बुलाकर मुलाकात की। उसे स्थितियों को सामान्य बनाने की कोशिश के रूप में ही देखा गया। उपमुख्यमंत्री ने मुलाकात की इन तस्वीरों को अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया। ये तस्वीरें सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोगों ने तरह-तरह की बातें बनानी शुरू कर दीं। कुछ लोगों ने पूछा कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी खुश क्यों नहीं दिख रहे हैं। दरअसल, इन तीनों ही तस्वीरों में प्रधानमंत्री मोदी बहुत गंभीर दिख रहे हैं। उनके चेहरे पर जरा सी भी हंसी या मुस्कुराहट नहीं है। अलबत्ता वह थोड़े गुस्से में जरूर दिख रहे हैं। आमतौर पर प्रधानमंत्री लोगों से बड़ा हंसते-मुस्कुराते मिलते हैं। मगर प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद भी केशव प्रसाद मौर्या की ‘फ्रंटफुट पर बैटिंग’ ने इस कयास पर तो विराम लगा ही दिया कि केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उन्हें ‘डिफेंसिव’ खेलने की हिदायत मिली है।
केशव प्रसाद मौर्या को नजरअंदाज करना क्यों मुश्किल?
सामान्य तौर पर देखेंगे तो लगेगा कि केशव प्रसाद मौर्या एक सामान्य उपमुख्यमंत्री ही तो हैं…मगर उनकी राजनीतिक हैसियत सिर्फ एक उपमुख्यमंत्री होने तक सीमित नहीं है। उनकी अहमियत इसलिए ज्यादा है कि वह उस अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं, जो कि यूपी की पॉलिटिक्स में बहुत निर्णायक माना जाता है। पूर्वांचल में इन वोटरों का प्रभुत्व है। यही फैक्टर है कि 2017 में भी उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। मगर एक ‘ठाकुर’ के मुख्यमंत्री बनने के बाद संतुलन बिठाने के लिए ही दिनेश शर्मा (ब्राह्मण) और केशव प्रसाद मौर्या (अति पिछड़ा) को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
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