घाघरा, राप्ती और छोटी गंडक नदियों के किनारे बसे देवरिया जिले का अपना अलग इतिहास है। यहां प्रसिद्ध देवरहा बाबा का आश्रम है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं। इसके अलावा यहां का देवरही मन्दिर, हनुमान मंदिर, दुगेश्वरनाथ मंदिर भी काफी चर्चित है। इससे इतर राजनीति के केंद्र में भी देवरिया का खास स्थान है।
देवरिया में सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें छह पर भारतीय जनता पार्टी, जबकि एक पर समाजवादी पार्टी (सपा) का कब्जा है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यहां का सियासी माहौल गर्म होने लगा है। सवाल उठने लगे हैं कि योगी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में यहां कितना विकास हुआ? क्या आम लोग सरकार के कामकाज से खुश हैं? युवा महिलाएं और आम जनता मौजूदा सरकार के बारे में क्या सोचती है? राजनीतिक दलों के नेताओं का क्या मानना है? वह किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए ‘ चुनावी रथ ‘सत्ता का संग्राम’ शुक्रवार को देवरिया में होगा।
आप भी ‘ इस मंच से जुड़ सकते हैं। इसके जरिए आप अपने क्षेत्र, शहर, राज्य और देश के हर मुद्दों को उठा पाएंगे। आप बता पाएंगे कि आने वाले चुनाव में नेताओं और राजनीतिक दलों से आपको क्या उम्मीदें हैं? किन मसलों को लेकर आप मतदान करेंगे और नेताओं से आप क्या चाहते हैं?
अब तक 25 जिलों में हो चुका है कार्यक्रम
अब तक पश्चिमी यूपी, ब्रज और अवध के 25 जिलों में ‘सत्ता का संग्राम’ आयोजित हो चुका है। 11 नवंबर को गाजियाबाद से चला रथ मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा,
बरेली, बदायूं, पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा, हाथरस, अलीगढ़ होते हुए एक दिसंबर को बुलंदशहर पहुंचा था।
इन जिलों में महिलाओं, युवाओं, कामगारों, नेताओं, व्यापारियों समेत हर वर्ग के लोगों को अपने मन की बात बोलने का मौका दिया गया। लोगों ने खुलकर अपनी समस्याओं और उम्मीदों के बारे में बताया। दूसरे चरण का आगाज सात दिसंबर को यूपी की राजधानी लखनऊ से हुआ। इसके बाद ये चुनावी रथ अयोध्या और गोरखपुर पहुंचा। अब अगला पड़ाव देवरिया है।
चुनावी रथ ‘सत्ता का संग्राम’ के तहत हर वर्ग के मतदाताओं तक पहुंचेगा। चाय पर चर्चा के साथ-साथ महिलाओं और युवाओं से संवाद होगा। राजनीतिक हस्तियों से सीधे सवाल पूछे जाएंगे। आपको एक मंच दे रहा है, जहां आप बातों को रख सकेंगे, ताकि जब राजनीतिक हस्तियां चुनावी रैलियां करने आएं तो उन्हें आपसे जुड़े जमीनी मुद्दे भी याद रहें।
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