आध्या मासूम है। कक्षा छह में पढ़ती है। उसका जन्मदिन 12 दिसंबर को है। इससे पहले ही उसके सिर से माता-पिता का साया उठ गया। बहन का साथ भी छूट गया। घर पर उसे बुआ-चाची, दादी और ताई नजर आ रहे हैं, लेकिन पापा-मम्मी अब किसे कहे, यह समझ नहीं पा रही है। इनवर्टर और बैटरी कारोबारी योगेश मिश्रा की बहन सीमा मिश्रा ने बताया कि आध्या का जन्म 12 दिसंबर 2012 को हुआ था। उसके जन्म के बाद ही मां प्रतीची की तबीयत खराब हो गई थी। इस पर आध्या अपनी दादी के पास रहती थी। उनके पास ही सोती थी। उनसे भी काफी घुली मिली थी। उसकी मम्मी की तबीयत अक्सर खराब रहती थी। इस कारण भी वो बुआ, चाची और ताई के पास चली जाती थी। मां-पिता और बहन की मौत के बाद वह गुमसुम तो है, लेकिन उसे अभी पूरी तरह से अहसास नहीं है। योगेश, प्रतीची और काव्या के शवों को शनिवार सुबह मारुति एन्क्लेव स्थित घर पर लाया गया। शवों के पहुंचते ही करुण क्रंदन गूंज उठा। आखिरी बार आध्या को मां-पिता और बहन के चेहरे दिखाए गए।
बुआ सीमा और ताई पूनम मिश्रा ने बताया कि बेटी को बताया कि अब तीनों कभी नहीं आएंगे। इस पर वो गुमसुम हो गई। मगर, रोई नहीं। वह कुछ बोल नहीं रही थी। बाद में शवों को कछला घाट पर ले जाया गया। दोपहर में आध्या को जब दादी सरोज के रोने की आवाज आई तो वो दौड़ पड़ी। उसने दादी के आंसू अपने हाथों से पोंछे। उन्हें चुप कर दिया। बाद में वह अपनी बहन काव्या के खिलौने से खेलने लगी। काव्या टेडी से खेलती रहती थी। इसलिए वो बहन को याद करते हुए टेडी वियर से खेल रही थी।
परिवार के लोगों को आध्या की चिंता सताए जा रही है। वह इस बात से परेशान है कि मां-बाप की याद आई तो आध्या को कैसे संभालेंगे। अभी उसे मां-बाप और बहन के खोने का कोई अहसास नहीं है। मगर, कुछ समय बाद उसे याद आई तो क्या करेगी। बुआ सीमा मिश्रा ने बताया कि आध्या को वो अपने पास दिल्ली में रखेंगी। मां सरोज को भी ले जाएंगी। वह भी भाई योगेश की मौत से परेशान है। आध्या दादी के पास ही सोती है। इसलिए दोनों को साथ ही रखेंगे। आध्या को मां-बाप की कमी नहीं होने देंगे। उसे अपने बच्चों से बढ़कर प्यार देंगे।
योगेश के पूर्व कर्मचारी हरिकिशन का कहना है कि योगेश मिश्रा का व्यापार तीन साल पहले तक काफी अच्छा चलता था। यूपी ही नहीं उत्तराखंड से भी उनके पास ऑर्डर आते थे। वह समय पर आफिस आते और जाते थे। उन्होंने सारा काम कर्मचारियों पर छोड़ रखा था। व्यापार में कमी आने पर उन्होंने कर्मचारी कम कर दिए। मगर, व्यापार बंद नहीं किया। उन्हें फाइनेंस की कोई समस्या नहीं थी। वह व्यापार कम होने पर भी किसी तरह का तनाव नहीं ले रहे थे। उन्होंने आत्मघाती कदम उठाने से पहले भी किसी को अहसास नहीं होने दिया। आखिरी बार अपने कर्मचारी मनोज पाठक को समय पर आने के लिए मैसेज किया।
पड़ोसी महिलाओं का कहना था कि प्रतीची अक्सर घर के बाहर बच्चों के साथ टहलने आती थीं। प्रतीची और उनके पति के बीच किसी तरह की परेशानी थी, इस बारे में किसी को पता नहीं था। बच्चे भी घर के बाहर आकर खेलते रहते थे। घर से कभी किसी ने आवाज तक नहीं सुनी।
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