क्या आप जानते हैं कि होली में जिन रंगों और गुलाल से आप खेलते हैं वो कैसे तैयार होते हैं? उसे तैयार करने में किन-किन चीजों का यूज होता है? अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे। हाथरस के रंग इंडस्ट्री का मुआयना किया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
हाथरस में कितनी बड़ी है रंगों की इंडस्ट्री?
रंगों की फैक्ट्री चलाने वाले गोयल बताते हैं कि हाथरस में रंग और गुलाल बनाने का बड़े पैमाने पर काम होता है। यहीं से पूरी दुनिया में रंगों और गुलाल की सप्लाई होती है। खास बात ये है कि अब गुलाल और रंग केवल होली के समय नहीं खेलते जाते हैं, बल्कि सालभर अलग-अलग तरह के त्योहारों में इसका प्रयोग होता है। हालांकि, कोरोना के चलते पिछले दो सालों में रंगों के कारोबार में 50% की गिरावट आई है। लोगों ने रंगों और गुलाल को खेलना कम कर दिया है। ये अच्छी बात भी है, क्योंकि सुरक्षा जरूरी है। अब कोरोना का नया वैरिएंट आया है। शायद इसका भी प्रभाव हमारे कारोबार पर पड़े। फिर भी हमें उम्मीद है कि इस बार होली में पहले के मुकाबले कुछ सामान्य स्थिति होगी।
कैसे तैयार करते हैं रंग और गुलाल?
गोयल बताते हैं कि आजकल हर्बल रंग और गुलाल बनाए जाते हैं। इससे किसी को कोई दिक्कत नहीं होती है। लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से ये काफी अच्छा होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें खाद्य पदार्थ ही मिलाए जाते हैं। रंग और गुलाल दोनों ही अरारोट से बनाया जाता है। अरारोट मक्के से बनाया जाता है। अरारोट में रंग मिलाते हैं और फिर उसे मिक्सिंग करते हैं। मिक्स करने के बाद उसकी ग्राइंडिंग होती है और अंत में सूखने के लिए डाल देते हैं। बाद में खुशबू के लिए अलग-अलग तरह के परफ्यूम डालते जाते हैं और फिर पैक करके उसे मार्केट में सप्लाई कर दिया जाता है।
मजदूरों ने क्या कहा?
रंग फैक्ट्री में काम करने वाले राजकुमार बताते हैं कि वह पिछले दो साल से रंग बना रहे हैं। बताते हैं कि हर रोज 300 रुपये मिल जाता है।
ओमप्रकाश ने बताया कि 15 महीने से गुलाल बनाने का काम कर रहे हैं। रोजगार ठीक चल रहा है।
ठाकुर दास बताते हैं कि उन्हें इस काम के लिए हर रोज 300-350 रुपये मिलते हैं। पिछले 10 साल से इस इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं।
वीरेंद्र बताते हैं कि उन्हें 280 रुपये मिलते हैं। इससे पहले भी मजदूरी करते थे।
क्या आप जानते हैं कि होली में जिन रंगों और गुलाल से आप खेलते हैं वो कैसे तैयार होते हैं? उसे तैयार करने में किन-किन चीजों का यूज होता है? अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे। हाथरस के रंग इंडस्ट्री का मुआयना किया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
रंगों की फैक्ट्री चलाने वाले गोयल बताते हैं कि हाथरस में रंग और गुलाल बनाने का बड़े पैमाने पर काम होता है। यहीं से पूरी दुनिया में रंगों और गुलाल की सप्लाई होती है। खास बात ये है कि अब गुलाल और रंग केवल होली के समय नहीं खेलते जाते हैं, बल्कि सालभर अलग-अलग तरह के त्योहारों में इसका प्रयोग होता है। हालांकि, कोरोना के चलते पिछले दो सालों में रंगों के कारोबार में 50% की गिरावट आई है। लोगों ने रंगों और गुलाल को खेलना कम कर दिया है। ये अच्छी बात भी है, क्योंकि सुरक्षा जरूरी है। अब कोरोना का नया वैरिएंट आया है। शायद इसका भी प्रभाव हमारे कारोबार पर पड़े। फिर भी हमें उम्मीद है कि इस बार होली में पहले के मुकाबले कुछ सामान्य स्थिति होगी।
गोयल बताते हैं कि आजकल हर्बल रंग और गुलाल बनाए जाते हैं। इससे किसी को कोई दिक्कत नहीं होती है। लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से ये काफी अच्छा होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें खाद्य पदार्थ ही मिलाए जाते हैं। रंग और गुलाल दोनों ही अरारोट से बनाया जाता है। अरारोट मक्के से बनाया जाता है। अरारोट में रंग मिलाते हैं और फिर उसे मिक्सिंग करते हैं। मिक्स करने के बाद उसकी ग्राइंडिंग होती है और अंत में सूखने के लिए डाल देते हैं। बाद में खुशबू के लिए अलग-अलग तरह के परफ्यूम डालते जाते हैं और फिर पैक करके उसे मार्केट में सप्लाई कर दिया जाता है।
रंग फैक्ट्री में काम करने वाले राजकुमार बताते हैं कि वह पिछले दो साल से रंग बना रहे हैं। बताते हैं कि हर रोज 300 रुपये मिल जाता है।
ओमप्रकाश ने बताया कि 15 महीने से गुलाल बनाने का काम कर रहे हैं। रोजगार ठीक चल रहा है।
ठाकुर दास बताते हैं कि उन्हें इस काम के लिए हर रोज 300-350 रुपये मिलते हैं। पिछले 10 साल से इस इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं।
वीरेंद्र बताते हैं कि उन्हें 280 रुपये मिलते हैं। इससे पहले भी मजदूरी करते थे।
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