सर्दी की शुरुआत के साथ भोजन की तलाश में पहुंची व्हिसलिंग टील चिड़ियों की सीटी से चंबल की वादियां गूंज उठी हैं। अंडमान, निकोबार, मालदीव से आईं व्हिसलिंग टील चिड़ियों ने चंबल नदी किनारे डेरा डाल लिया है। घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन देखने के लिए आने वाले पर्यटक इस चिड़िया की आवास सुनकर प्रभावित हो रहे हैं।
दिन में नदी किनारे की झाड़ियों में शांत रहने वाली व्हिसलिंग टील चिड़ियां चंबल में रात के समय भोजन की तलाश में निकलती है। मेढक आदि छोटे जीव और वनस्पतियां इनका भोजन है। शिकार के दौरान जलक्रीड़ा मंत्रमुग्ध कर देती है। इन चिड़ियों के सिर का ऊपरी हिस्सा गहरा भूरा, इसके गले के पास सफेद रंग, कंधे के पंख काले बदामी रंग के, चोंच नीले-भूरे रंग की होती है।
बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि बड़ी तादाद में व्हिसलिंग टील चिड़ियां चंबल की वादियों में पहुंची हैं। इनका प्रजनन जून से सितंबर तक होता है। इस दौरान मादा को आकर्षित करने के लिए नर पक्षी अपनी चोंच को पानी में नीचे-ऊपर करते हुए मादा के चारों ओर तैरता है।
ये पक्षी अपना घोंसला कम ऊंचाई पर पेड़ों के खोखले हिस्से या पेड़ की दो-तीन बड़ी शाखाओं के मुहाने पर तिनकों आदि से बनाते हैं। मादा पक्षी 7 से 12 अंडे देती है। 22 से 24 दिन में अंडों से चूजे बाहर निकलते हैं। घोंसले के निर्माण में मादा पक्षी अपने ही मुलायम पंखों को उखाड़ कर बिछाती है, ताकि अंडों व चूजों को मुलायम जगह मिल सके। नर मादा चूजों को पीठ पर बिठाकर भोजन तक ले जाते हैं।
इस बार चंबल की वादियों में हिमालय से विशेष मेहमान भी आ गया है। पेंटेड स्टार्क के झुंड चंबल के किनारे और शिकार करते देखे जा सकते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन देखने के लिए आने वाले पर्यटकों को हिमालय से आया यह मेहमान अधिक रिझा रहा है।
इस बार चंबल की वादियों में हिमालय से विशेष मेहमान भी आ गया है। पेंटेड स्टार्क के झुंड चंबल के किनारे और शिकार करते देखे जा सकते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन देखने के लिए आने वाले पर्यटकों को हिमालय से आया यह मेहमान अधिक रिझा रहा है।
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