सैयद मशकूर, सहारनपुर
पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का अपना अलग ही सियासी मिजाज़ है। कभी बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माने जाने वाले सहारनपुर में फिलहाल इस दल का एक भी विधायक नहीं है। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यहां पर 4 सीट हासिल हुई थी और समाजवादी पार्टी को 1 सीट मिली थी, जबकि पूरे उत्तर प्रदेश की 6 में से 2 सीट कांग्रेस ने सहारनपुर से ही जीती थी। सभी को चौंकाते हुए 2019 में भारतीय जनता पार्टी के राघव लखन पाल को हराकर बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजलुर्रहमान सांसद बने थे। इससे पहले 1991 की राम लहर में भी पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जनता दल के काज़ी रशीद मसूद यहां से एमपी बने थे, जबकि 2014 में हुए उप चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को हराकर बीजेपी के राजीव गुम्बर ने शहर विधानसभा सीट जीती थी। 2017 विधानसभा चुनाव में लहर के बावजूद बीजेपी को यहां पर हार मिली थी और समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग ने जीत का परचम लहराया था। इसीलिए कहा जाता है कि यहां चुनावी लहर नहीं नेता का चेहरा चलता है।
अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम ने सरसावा कस्बे को कहा था गेटवे ऑफ यमुना
सहारनपुर का इतिहास सदियों पुराना है। यह जिला गंगा-यमुना दोआब का इलाका है और गंगा-जमुनी तहज़ीब यहां की विशेष पहचान रही है। मां शाकुम्बरी देवी जैसे धार्मिक स्थल और दारुल उलूम जैसे इस्लामिक शिक्षा के केंद्र के कारण पूरी दुनिया में सहारनपुर को जाना जाता है। सहारनपुर जिले की सीमाएं हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से मिलती है। पंजाब की ओर से यूपी का सहारनपुर प्रवेश द्वार है। अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम ने यहां के सरसावा कस्बे को गेटवे ऑफ यमुना कहा था। उत्तर भारत में केंद्रीय स्थिति और गंगा-यमुना के मध्य स्थित होने के कारण सहारनपुर भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से सदैव महत्वपूर्ण रहा है। यहां पर हाथ से लकड़ी पर नक्काशी का काम पूरी दुनिया में मशहूर है। सहारनपुर में सिन्धु कालीन साइट हुलास, सरसावा का टीला, रायपुर की मस्जिद, देवबन्द का बाला सुन्दरी मंदिर, बादशाही बाग स्थित शाहजहां द्वारा बनवाई गई शिकारगाह, मुगलकालीन कंपनी गार्डन, लखनौती का किला सहित तमाम महत्वपूर्ण स्थान हैं।
बड़ी संख्या में यहां दलित-मुस्लिम मतदाता हैं
उत्तर प्रदेश की विधानसभा नंबर-1 बेहट भी सहारनपुर लोकसभा सीट में आती है। इसलिए भी यहां का राजनीतिक महत्व बढ़ जाता है। दलित और मुस्लिम बड़ी संख्या में होने के कारण यहां पर अलग ही राजनीतिक समीकरण है। कभी सहारनपुर बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माना जाता था। 2007 विधानसभा चुनाव में खड़ा सीट से मायावती चुनाव लड़कर जीती थीं। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने सहारनपुर की 7 में से 5 विधानसभा सीटें जीती थीं। इसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में एसपी की लहर के बावजूद उसे केवल देवबंद की सीट हासिल हुई थी। अपनी पकड़ क़ायम रखते हुए 3 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी विजयी रही थी। एक पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
2017 में बीएसपी का हो गया था सूपड़ा साफ
दलित मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में होने के बावजूद 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी का यहां पर सूपड़ा साफ हो गया था। बीएसपी को जिले की सातों विधानसभा में से एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। वहीं, शहर की सीट पर समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग चुनाव जीते थे। इसके अलावा बेहट से कांग्रेस के नरेश सैनी और देहात सीट से भी कांग्रेस मसूद अख्तर विजय हुए थे। बीजेपी ने यहां की देवबंद, रामपुर मनिहारान, गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी।
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काजी रशीद मसूद और चौधरी यशपाल के बीच रहा है सियासी टकराव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी दिग्गज और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं 9 बार लोकसभा व राज्यसभा सांसद रहे काज़ी रशीद मसूद को सहारनपुर का सबसे बड़ा लीडर माना जाता रहा है। शुरू से ही उनका मुकाबला गुर्जर समाज के सिरमौर पूर्व मंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे स्व. चौधरी यशपाल के साथ रहा। चौधरी यशपाल और काजी रशीद मसूद सहारनपुर की सियासत हमेशा धुरी बने रहे। दोनों नेताओं के निधन के बाद अब उनके परिवार के लोग राजनीति में हैं। पूर्व विधायक इमरान मसूद, काज़ी रशीद मसूद के भतीजे हैं, जबकि एसपी के जिलाध्यक्ष चौधरी रुद्रसेन पूर्व मंत्री चौधरी यशपाल के बड़े बेटे हैं।
बीजेपी की स्थिति
सहारनपुर की सात में से देवबंद, गंगोह,नकुड़ और रामपुर मनिहारान सीट पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा है। 2014 के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के राजीव गुंबर ने समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग को हराया था। 2017 विधानसभा चुनाव में संजय गर्ग ने राजीव गुम्बर से अपनी हार का बदला ले लिया था। नकुड़ विधानसभा सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने वाले डॉक्टर धर्म सिंह सैनी योगी सरकार में आयुष राज्य मंत्री हैं। 2022 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी यहां पर अपने सभी उम्मीदवार को मजबूती से उतारने की तैयारी में है।
कांग्रेस का हाल
वेस्ट यूपी की सियासी दिग्गज पूर्व केंद्रीय मंत्री और 9 बार लोकसभा में राज्यसभा सांसद रहे काजी रशीद मसूद के भतीजे पूर्व विधायक इमरान मसूद उनकी विरासत संभाल रहे हैं। इमरान मसूद इन दिनों कांग्रेस पार्टी में हैं। अक्सर उनके समाजवादी पार्टी में जाने की भी चर्चाएं होती रहती है। इसके बावजूद यहां पर इमरान मसूद का मजबूत जनाधार है। 2012 और 2017 विधानसभा चुनाव में इमरान मसूद लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर नकुड़ विधानसभा सीट का चुनाव नज़दीक मुकाबले में हार चुके हैं। इसके अलावा सहारनपुर उत्तर प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला है, जहां पर कांग्रेस के दो विधायक हैं। बेहट विधानसभा सीट से नरेश सैनी और देहात विधानसभा क्षेत्र से मसूद अख्तर कांग्रेस के विधायक हैं।
ये है समाजवादी पार्टी का हाल
फिलहाल सदर सीट से समाजवादी पार्टी के संजय गर्ग विधायक हैं। संजय गर्ग को अखिलेश यादव ने एसपी व्यापार सभा का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया हुआ है और वह पूर्व में मंत्री भी रह चुके हैं। 2012 विधानसभा चुनाव में केवल राजेंद्र राणा सहारनपुर की देवबंद विधानसभा सीट से एकमात्र सपाई थे, जो विधायक बने थे। अखिलेश यादव ने उन्हें राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया था। राजेंद्र राणा का निधन होने के बाद उपचुनाव हुआ था और उनकी पत्नी कांग्रेस के माविया अली से चुनाव हार गई थीं।
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बीएसपी का स्कोर है ज़ीरो, अन्य दलों की स्थिति भी नहीं है खास
कभी सहारनपुर बहुजन समाज पार्टी का गढ़ माना जाता था। 2007 और 2012 विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने यहां पर शानदार जीत हासिल की थी। 2017 विधानसभा चुनाव में बसपा का यहां पर सूपड़ा साफ हो गया था और उसके सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए थे। सहारनपुर के शब्बीरपुर में हुई जातीय हिंसा के बाद देश व दुनिया मे चर्चा में आए चंद्रशेखर आजाद की आज़ाद समाज पार्टी अभी शुरुआती दौर में है। राष्ट्रीय लोकदल का भी यहां मज़बूत जनाधार नहीं है। यही हाल अन्य दलों का भी है।
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