सरकार ने शुक्रवार को तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया है। जिसको लेकर किसान नेताओं और राजनीतिक दलों ने खुशी जताई है। किसान भी इसे हक की जीत बता रहे हैं। किसान नेता इस फैसले को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं की जीत बता रहे हैं। किसान आंदोलन की इस जीत में राकेश टिकैत के आंसुओं का और लगातार चल रही महापंचायतों का सबसे बड़ा योगदान रहा। इन महापंचायतों में न सिर्फ किसानों का सैलाब उमड़ा, बल्कि बदलते सियासी समीकरणों की ओर भी ध्यान खींचा। आगे पढ़ें, आखिर कैसे आंदोलन को जीत के जश्न तक लेकर पहुंचे टिकैत के आंसू और किसान महापंचायतें: –
26 जनवरी की परेड हिंसा के बाद किसान आंदोलन एकदम फीका पड़ गया था। इसी दौरान एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े। राकेश टिकैत के ये आंसू हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों में दोबारा दमखम भर गए। राकेश टिकैत की बॉर्डर पर पहुंचने की अपील के बाद रातों-रात ही किसान अपने घरों से कूच कर गए। देखते ही देखते किसान आंदोलन फिर से जोर पकड़ गया और लाखों की संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच गए। वहीं आंदोलन की मजबूत को देखते हुए महापंचायतों का भी दौर शुरू हुआ।
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर एक तरफ किसान धरने पर डटे रहे। वहीं, पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन में जान फूंकने की कोशिशों में लगातार महापंचायतों को दौर जारी रहा। एक तरफ इन महापंचायतों को किसानों के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा था, तो वहीं दूसरी ओर इन्हें पश्चिमी यूपी की बदलती राजनीति के रूप में भी देखा जाने लगा।
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किसान महापंचायतों की शुरूआत राकेश टिकैत के गृह जनपद मुजफ्फरनगर से हुई। 30 जनवरी को हुई पहली महापंचायत में किसानों की भारी भीड़ उमड़ी। इस महापंचायत ने यह साफ कर दिया कि पश्चिमी यूपी में किसान संगठनों की कितनी मजबूत पकड़ है। इसका एक और नजारा 1 फरवरी को बिजनौर में हुई महापंचायत में भी देखने को मिला।
राजनीतिक दलों पर भारी पड़े किसान संगठन
बिजनौर में हुई महापंचायत में ऐसा पहली बार हुआ कि जब जनप्रतिनिधि और राजनीतिक दलों के नेता जमीन पर बैठे रहे और किसान संगठनों के नेता मंच से खूब दहाड़े। इस महापंचायत में नेताओं की राजनीति चमकाने की कोशिशों पर पानी फिर गया। सपा व कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों को इससे करारा झटका लगा। पंचायत में वक्ताओं ने राकेश टिकैत के आंसुओं को देश की आंखें खोलने वाला बताया।
मुजफ्फरनगर की महापंचायत ने खींचा देश का ध्यान
गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को दिशा देने और यूपी में सत्ता परिवर्तन को लेकर राकेश टिकैत के गृह जनपद मुजफ्फरनगर में 5 सितंबर को महापंचायत का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में लाखों की संख्या में किसान देश के कोने-कोने से पहुंचे। पंजाब व हरियाणा के किसानों की संख्या ज्यादा दिखी। युवाओं और महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
मुजफ्फरनगर में इस महापंचायत के मंच से राकेश टिकैत ने अल्लाहु अकबर और हर-हर महादेव के नारे भी लगवाए, जिसके बाद उन्हें आड़े हाथों ले लिया गया। राकेश टिकैत ने कहा था कि यूपी की योगी सरकार सांप्रदायिक दंगा कराने वाली सरकार है। भाजपा तोड़ने का काम करती है और हम जोड़ने का काम करते हैं। इसी धरती से अल्लाहु अकबर और हर-हर महादेव के नारे लगते रहे हैं और लगते रहेंगे। इसी के साथ टिकैत ने वहां मौजूद लोगों से नारे भी लगवाए।
आंदोलन की जीत के बाद अब घर जाएंगे राकेश टिकैत
राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर की महापंचायत में कहा था कि अब जब तक मांग पूरी नहीं होगी, जब तक यह आंदोलन सफल नहीं होगा, तब तक घर वापस नहीं लौटूंगा। दरअसल, किसान आंदोलन की शुरुआत में राकेश टिकैत ने प्रण किया था कि ‘जब तक कानून वापसी नहीं, तब तक घर वापसी नहीं।’ इसके बाद से राकेश टिकैत अपने गृह जनपद मुजफ्फरनगर की सीमाओं से जरूर गुजरे, उन्होंने आसपास के जिलों में भी बैठकें कीं लेकिन वह अपने घर नहीं गए। महापंचायत में हिस्सा लेने के बाद वापस गाजीपुर बॉर्डर लौट गए।
राकेश टिकैत ने महापंचायत के मंच से कहा था कि संयुक्त मोर्चा दिल्ली बॉर्डर से तब तक नहीं उठेगा, जब तक जीत नहीं मिल जाएगी। इसके अलावा उन्होंने यह भी दोहराया कि मैं अपने घर नहीं जाऊंगा, किसानों की जीत होने के बाद ही घर आऊंगा। अब सरकार ने कृषि कानूनों की वापसी का एलान कर दिया है, ऐसे में कहा जा रहा है कि राकेश टिकैत आंदोलन शुरू होने के महीनों बाद अब जल्दी ही अपने घर की दहलीज पर कदम रखेंगे।
सरकार ने शुक्रवार को तीनों कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया है। जिसको लेकर किसान नेताओं और राजनीतिक दलों ने खुशी जताई है। किसान भी इसे हक की जीत बता रहे हैं। किसान नेता इस फैसले को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं की जीत बता रहे हैं। किसान आंदोलन की इस जीत में राकेश टिकैत के आंसुओं का और लगातार चल रही महापंचायतों का सबसे बड़ा योगदान रहा। इन महापंचायतों में न सिर्फ किसानों का सैलाब उमड़ा, बल्कि बदलते सियासी समीकरणों की ओर भी ध्यान खींचा। आगे पढ़ें, आखिर कैसे आंदोलन को जीत के जश्न तक लेकर पहुंचे टिकैत के आंसू और किसान महापंचायतें: –
26 जनवरी की परेड हिंसा के बाद किसान आंदोलन एकदम फीका पड़ गया था। इसी दौरान एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए किसान नेता राकेश टिकैत रो पड़े। राकेश टिकैत के ये आंसू हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसानों में दोबारा दमखम भर गए। राकेश टिकैत की बॉर्डर पर पहुंचने की अपील के बाद रातों-रात ही किसान अपने घरों से कूच कर गए। देखते ही देखते किसान आंदोलन फिर से जोर पकड़ गया और लाखों की संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच गए। वहीं आंदोलन की मजबूत को देखते हुए महापंचायतों का भी दौर शुरू हुआ।
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर एक तरफ किसान धरने पर डटे रहे। वहीं, पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन में जान फूंकने की कोशिशों में लगातार महापंचायतों को दौर जारी रहा। एक तरफ इन महापंचायतों को किसानों के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा था, तो वहीं दूसरी ओर इन्हें पश्चिमी यूपी की बदलती राजनीति के रूप में भी देखा जाने लगा।
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