पंकज मिश्रा, हमीरपुर
उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड इलाके में आने वाले हमीरपुर जिले की राजनीति में कुर्सी के लिए नेता कब पाला बदल दे, इसकी कोई भी गारंटी नहीं है। सियासी खेल में नेता पाला बदलने में बदनाम हैं ही लेकिन सत्ता की चमक और धमक में संत भी पलक झपकते ही पाला बदल देते हैं। ऐसा ही एक अनोखा मामला यहां साल 1971 के चुनाव में सामने आया था, जिसमें क्षेत्र के महान संत स्वामी ब्रम्हानंद महाराज ने दोबारा सांसद बनने के लिए जनसंघ पार्टी छोड़कर कांग्रेस में एन्ट्री ले ली थी।
हमीरपुर जिले के राठ क्षेत्र के बरहरा गांव के रहने वाले शिवदयाल का जन्म 4 दिसम्बर 1894 में हुआ था। इनके पिता किसान थे। ये 23 साल की उम्र में ही संत बन गए थे। बाद में स्वामी ब्रम्हानंद महाराज के नाम से ये विख्यात हुए। ब्रह्मानंद अंग्रेजों के खिलाफ सड़क पर आ गए थे और महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा गणेश विद्यार्थी के भी सम्पर्क में रहे। स्वाधीनता आन्दोलन में स्वामी ब्रम्हानंद कई बार जेल भी गए थे। इनके करीबी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह राजपूत ने बताया कि स्वामी जी ने जीवन पर्यन्त पैसे को कभी हाथ नहीं लगाया था, इसीलिए क्षेत्र के सभी लोग इन्हें मानते थे।
पहली बार अटल बिहारी बाजपेई ने संत पर लगाया था दांव
पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी ने साल 1967 में जनसंघ पार्टी की स्थापना की थी। स्वामी ब्रम्हानंद महाराज की ईमानदारी से वह इतने प्रभावित हुए कि स्वामी जी को अपनी पार्टी में शामिल कर साल 1967 के आम चुनाव में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दे दिया। चुनावी महासमर में पहली बार आए स्वामी जी ने कांग्रेस के दिग्गज मन्नूलाल द्विवेदी को पराजित कर जीत का परचम फहराया था। उन्हें 138130 वोट मिले थे जबकि मन्नूलाल को 79257 वोट मिले थे।
मन्नूलाल द्विवेदी ने साल 1952 से लेकर 1962 तक लगातार जीत दर्ज की थी लेकिन संत के प्रभाव के कारण उन्हें चुनाव में हार मिली थी।
पाला बदलने की भनक लगते ही संत से मिलने आए थे अटल
स्वामी ब्रम्हानंद महाराज ने सांसद बनने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में तमाम कार्य कराए। इसी बीच उनकी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से सम्पर्क होने से जनसंघ पार्टी के नेता भी सकते में आ गए थे। ऐसे में जनसंघ के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेई पहली बार स्वामी जी के जन्मदिन पर 4 दिसम्बर 1969 को राठ आए थे। स्वामी जी को बधाई देने के साथ ही अटल बिहारी ने ब्रम्हानंद डिग्री कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन कर सभा में बड़ी बात भी कही थी। उन्होंने कहा था कि राजनीति बड़ी रपटीली होती है। कब कौन फिसल जाए पता ही नहीं चलता। बाद में स्वामी जी ने इन्दिरा के प्रभाव में आकर जनसंघ पार्टी छोड़ दी थी।
संसदीय क्षेत्र के आम चुनाव में स्वामी जी नहीं लगा सके हैट्रिक
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह ने बताया कि स्वामी जी 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट से दोबारा सांसद भी बने थे। उन्हें 52 फीसदी मत मिले थे जबकि बीकेडी के प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह को 31.3 फीसदी मत मिले सके। स्वामी जी ने हैट्रिक लगाने के लिए 1977 के आम चुनाव में फिर कांग्रेस के टिकट से किस्मत आजमाया लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। उन्हें सिर्फ 27.5 फीसदी मत मिले जबकि बीकेडी प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह ने 54.1 फीसदी वोट हासिल किया था। हार से नाराज स्वामी जी ने फिर कभी चुनाव लड़ने का ऐलान करने के साथ ही राजनीति ही छोड़ दी थी।
कई दशकों से राजनीति में चल रहा है पाला बदलने का खेल
संसदीय क्षेत्र में गंगाचरण राजपूत ने दोबारा सांसद बनने के लिए जनता दल छोड़ भाजपा में एन्ट्री ली थी। 1996 में वह भाजपा के टिकट से सांसद बने थे। राजनारायण बुधौलिया भी सपा के टिकट से वर्ष 2004 में सांसद बने थे। बाद में ये भी दूसरे दल में चले गए थे। वर्ष 1999 में अशोक सिंह चंदेल बीएसपी से सांसद बने थे। ये भी पार्टी में लम्बे समय तक नहीं टिक सके। कई दलों में शामिल होने के बाद अब यह उम्रकैद की सजा काट रहे है। प्रीतम सिंह, पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री बादशाह सिंह, पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी, पूर्व मंत्री शिवचरण व युवराज सिंह भी सियासी खेल में पाला बदल चुके है।
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