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वृंदावन: लो आ गई ठंड…आज से बदला ठाकुर श्रीबांकेबिहारी का खानपान, जानिए क्या होगा खास

शरद पूर्णिमा के साथ ही ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के खानपान और रहन सहन में भी बदलाव आ गया। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा से सर्दी का आगमन भी हो जाता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ठाकुरजी की सेवा में भी बदलाव हो गया है। गुरुवार को पड़वा से जन-जन के आराध्य ठाकुर श्रीबांके बिहारीजी महाराज के मंदिर में सर्दियों का आगमन होते ही भोग सेवा में मौसम के अनुरूप सेवाक्रम में परिवर्तन हो गया। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रह्लाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि ठाकुरजी को अब हल्की रेशमी पोशाकों के स्थान वेलवेट, सनील, ऊनी कपड़े की पोशाकें धारण कराई गई है। ठाकुरजी को सर्दी न लगे, इसके लिए रजत जड़ित शयन शैया पर पशमीने की चादर, शेमल की रुई वाली रजाई, तकिये बिछाए जाते हैं और चांदी की सिगड़ी में अग्नि सुलगाकर गर्भगृह को गर्म रखा जाता है।

प्रात:काल गरमागरम मेवायुक्त मोहनभोग (हलुआ), पकोड़ी और केसर युक्त दूध का भोग रखा। दोपहर के राजभोग में तप्त कढ़ी, रसीली, सूखी दाल, गीली, सूखी सब्जी, नमकीन, मीठा रायता, नमकीन, मीठे, सादा चावल, मुठिया का लड्डू, पंचमेवायुक्त केसरिया विशेष दूधभात, खीर, मिस्सी, सादा फुलकियां, बेसनी पराठा, पापड़, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि अर्पित किए जाते हैं।

चार बार होती है इत्र से मालिश

सर्दियों में चार बार सुबह, दोपहर, शाम और रात को हिना, केसर, कस्तूरी के इत्र से ठाकुरजी की मालिश की जाती है। प्रतिवर्ष भाईदूज से दर्शन एवं आरती के समय में भी शीतकालीन परिवर्तन हो जाता है।

सुबह 9 बजे से 1 बजे तक तथा संध्याकाल में 4:30 से 8:30 बजे तक ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के दर्शन सुलभ होते हैं।  श्रीबिहारीजी की सेवा के लिए कश्मीरी केसर, कन्नौजिया इत्र, कर्नाटकी चंदन और काबुली मेवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं।

शयन भोग सेवा

शयनभोग सेवा में ठाकुरजी को पूड़ी, कचौड़ी, बेडई, पकोड़ी, समोसा, दो प्रकार की रसीली एवं दो तरह की सूखी सब्जियां, मीठा दही, चटपटा रायता, पापड़, चटनी, सोंठ, मेवा वाला अदोटा और हलुआ तथा पिस्ता-केसर वाला दूधभात आदि दिव्य पदार्थों का भोग धराते हैं।

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