राकेश कुमार अग्रवाल , महोबा
आजादी के बाद से लगातार चार दशकों तक बुंदेलखंड में कांग्रेस (Congress) का एकाधिकार रहा है। बुंदेलखंड में कांग्रेस की पुख्ता जमीन को खिसकाने का काम बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने किया। देखते ही देखते बुंदेलखंड में बीएसपी ने कांग्रेस को बेदखल कर उसकी जगह ले ली थी, लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी की आंधी में सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया। बीजेपी ने सभी सीटें हथिया लीं और बीएसपी खाता भी नहीं खोल पाई थी।
बीएसपी ने बुंदेलखंड को हमेशा दी महत्ता
कांशीराम (Kanshiram) और मायावती (Mayawati) ने जिस गुपचुप अंदाज में जमीनी स्तर पर काम करते हुए पार्टी को खड़ा किया था। उसमें बुंदेलखंड का भी बड़ा योगदान रहा है। दलित बाहुल्य बुंदेलखंड में पार्टी ने मिशन मोड में काम करते हुए बड़ी संख्या में लोगों को बीएसपी से जोड़ा था। कांग्रेस से मोहभंग होने के कारण बड़ी संख्या में मुस्लिम नेताओं ने भी बीएसपी ज्वाइन की थी। देखते ही देखते 90 के दशक में बीएसपी का तेजी से ग्राफ बढ़ा।
बुंदेलखंड ने दिए कई दिग्गज बीएसपी नेता
नसीमुद्दीन सिद्दीकी (Nasimuddin Siddiqui), बाबू सिंह कुशवाहा (Babu Singh Kushwaha), विशम्भर प्रसाद निषाद (Vishambhar Prasad Nishad), गयाचरन दिनकर (Gaya Charan Dinkar), दद्दू प्रसाद (Daddu Prasad) ऐसे नेता थे, जो बीएसपी की सत्ता के समय मुख्यमंत्री मायावती के सबसे करीबियों में रहे, लेकिन बीएसपी में अनुशासन का ऐसा चाबुक चलता है कि जिसमें किसी की भी कुर्सी सलामत नहीं बचती। गयाचरन दिनकर को छोड़कर स्थापना के समय से जुड़े रहे सभी बड़े बीएसपी नेताओं की एक एक कर पार्टी से विदाई हो गई।
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नसीमुद्दीन सिद्दीकी कांग्रेस में चले गए। बाबू सिंह कुशवाहा घोटाले में फंस गए। विशम्भर प्रसाद निषाद ने बहुत पहले एसपी ज्वाइन कर ली थी। दद्दू प्रसाद ने अलग से अपना मोर्चा बना लिया। देखते ही देखते पार्टी का कैडर ही छिन्न-भिन्न हो गया। यही कारण है कि बड़ी ताकत के रूप में उभरी बीएसपी आज फिर से जमीन तलाशने की स्थिति में पहुंच गई है।
बीएसपी ने सबसे ज्यादा महत्व दिया था बुंदेलखंड को
आजादी के बाद प्रदेश में तमाम दलों की सरकारें बनीं लेकिन बुंदेलखंड से सबसे ज्यादा मंत्री बनाने का श्रेय बीएसपी सरकार को जाता है। दलित उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए विवादास्पद दलित उत्पीड़न अधिनियम भी बीएसपी लेकर आई थी। भीषण बिजली कटौती से जूझ रहे बुंदेलखंड के लोगों को सबसे ज्यादा और समयबद्ध ढंग से बिजली मिलने का क्रेडिट भी बीएसपी सरकार को जाता है।
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बुंदेलखंड में बीएसपी तरस रही बड़े चेहरे के लिए
2022 के चुनावों की बिसात बिछने लगी है, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बीएसपी की नैया पार्टी सुप्रीमो मायावती के सहारे किनारे लग पाएगी या नहीं। बुंदेलखंड में पार्टी नेतृत्वविहीन सी हो गई है। जिस तरह से पार्टी की सीटों की संख्या में गिरावट आई है, उससे बुंदेलखंड काफी हद तक पार्टी को संकट से उबार सकती है। पार्टी को इस बार चतुष्कोणीय मुकाबले में जीत की राह निकालनी होगी, जो कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र (Satish Chandra Mishra) के प्रबुद्ध सम्मेलन का कितना फायदा पार्टी को मिलेगा, इस पर भी सभी की निगाहें हैं। इस बार बीएसपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती केवल अस्तित्व बचाने की ही नहीं, बल्कि पार्टी को वापस खड़ा करने की भी है।
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