विशाल वर्मा, जालौन
उत्तर प्रदेश के जालौन में एक ऐसा मंदिर मौजूद है, जहां पर मूर्ति के रूप में माता के दंत की पूजा होती है और इस बात का प्रमाण दुर्गा सप्तशती में भी मिलता है, इसलिए इस मंदिर को रक्तदंतिका के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के मौके पर दूर-दराज से श्रद्धालु मंदिर की सीढ़ियों पर अपना मत्था टेकने आते हैं।
जालौन के मुख्यालय से 50 किमी दूर रक्तदंतिका माता मंदिर में नवरात्र में देशभर से श्रद्धालु आते हैं। माता के मंदिर को शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। रक्तदंतिका माता के मंदिर से जुड़ी कई कथाओं का उल्लेख दुर्गा सप्तशती में मिलता है। इस मंदिर को सिद्ध पीठ माना जाता है।
रक्तदंतिका मंदिर की विशेषता
रक्तदंतिका मंदिर की विशेषता यह है कि देवी मंदिर में दो शिलाएं रखी हुई हैं। इन शिलाओं में हमेशा रक्त बहता रहता है। कथाओं के अनुसार सती के दांत यहां पर गिरे थे। बताया जाता है कि अगर शिलाओं को पानी से धो दिया जाए तो कुछ देर बाद फिर से दंत से रक्तस्राव होना शुरू हो जाता है। यहां पर साधु महात्मा आकर पहले घोर साधनाएं करते थे और बलि प्रथा भी प्रचलित थी। समय के साथ इस पर अब पाबंदी लगा दी गई है।
कई राज्यों से दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु
स्फटिक के पहाड़ पर देवी रक्तदंतिका विराजमान हैं। यह मंदिर सदियों पुराना है। पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था, लेकिन अब इस पर रोक लगा दी गई। नवरात्रि में माता के मंदिर में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान सहित अन्य राज्यों से भक्तों की भीड़ माता के दर्शनों को आती है। नवरात्रि में माता के मंदिर पर एक दर्जन से अधिक पं. दुर्गा पाठ करते हैं।
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