ख़बर सुविभिन्न विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों द्वारा संचालित स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने कहा है कि 13 मार्च 20 के शासनादेश के तहत इन शिक्षकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके संतोषजनक सेवाएं देते रहने तक जारी रहेंगी। कोर्ट ने 30 जून 2020 के बाद इन अध्यापकों को सेवा समाप्त मानते हुए वेतन भुगतान रोकने के आदेश को मनमाना और असांविधानिक करार दिया है। डॉ. मनोहर लाल और 36 अन्य तथा कई और याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने दिया है।
याचीगण की नियुक्ति विभिन्न कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ाने के लिए संविदा के आधार पर हुई थी। शुरुआत में एक-एक वर्ष के लिए नियुक्ति की गई, जिसे 2015 तक हर वर्ष बढ़ाया जाता रहा। 2015 में याचीगण की नियुक्ति पांच वर्ष की संविदा पर 30 जून 20 तक के लिए की गई।
कांट्रैक्ट लेटर में कहा गया कि पांच वर्ष की सेवा की शर्त का मामला सरकार के पास है और यह सरकार के निर्णय पर निर्भर करेगा। इस बीच प्रदेश सरकार ने 13 मार्च 20 को शासनादेश जारी कर कहा कि स्ववित्त पोषित पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे अध्यापकों की सेवाएं पाठ्यक्रम के जारी रहने तक या उनके द्वारा संतोषजनक सेवाएं देने तक जारी रहेंगी। इस शासनादेश के आधार पर विश्वविद्यालयों को अपने नियमों व परिनियमों में परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया।
मगर विश्वविद्यालय ने 30 जून 20 के बाद याचीगण का कांट्रैक्ट समाप्त होने के आधार पर वेतन भुगतान रोक दिया और नए सिरे से कांट्रैक्ट करने के लिए कहा। इसे याचिका में चुनौती दी गई। कहा गया कि विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने 13 मार्च के शासनादेश को कार कर लिया है मगर कुलपति ने इसे मंजूरी नहीं दी है।
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