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‘सात’ से सियासी चक्रव्यूह का सातवां द्वार भेदने की तैयारी, जातीय असंतुलन दूर करने पर ध्यान

विधानसभा चुनाव से करीब पांच माह पूर्व योगी सरकार के बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार में एक कैबिनेट मंत्री सहित सात नए चेहरों को शामिल कर भाजपा ने सात से 2022 के चुनावी समीकरण साधने और सियासी चक्रव्यूह का सातवां द्वार तोड़ने की कोशिश की है। सात में छह चेहरों का गैर यादव पिछड़ी और गैर जाटव अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से चयन भाजपा के समग्र हिंदुत्व के समीकरण के संदेश को मजबूती दे रहा है। शोषित व वंचित वर्गों को सत्ता में भागीदारी देने का बड़ा सियासी संदेश भी है।

विस्तार के जरिए कोरोना काल में वर्तमान मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से उत्पन्न क्षेत्रीय व जातीय असंतुलन को दूर करने के साथ पश्चिम व पूर्वांचल के बीच भी संतुलन साधा गया है। यही नहीं, इसके जरिए पार्टी के कोर वोट के साथ नए वर्गों को भी साथ लाने का संदेश है। जिन लोगों को शपथ दिलाई गई है उनमें जितिन प्रसाद के रूप में एक अगड़ा (ब्राह्मण), तीन पिछड़े, दो अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति का चेहरा है। संजीव कुमार गोंड के रूप में अनुसूचित जनजाति के किसी चेहरे को पहली बार मंत्रिमंडल में शामिल करके न सिर्फ प्रदेश में जहां-तहां बसे वनवासी और आदिवासी जातियों को भाजपा के साथ लाने, बल्कि मिर्जापुर, सोनभद्र के साथ चित्रकूट के कुछ हिस्सों में इनके कारण मतदान पर पड़ने वाले प्रभाव का ध्यान देते हुए सियासी समीकरणों को साधने की कोशिश की गई है। विस्तार में पश्चिम से चार व पूरब से तीन चेहरों को लेकर क्षेत्रीय संतुलन बनाने पर भी ध्यान दिया गया है।

कुर्मी वोट भाजपा का परंपरागत मतदाता माना जाता है। बीते दिनों संतोष गंगवार की केंद्रीय मंत्रिमंडल से विदाई के बाद बरेली के बहेड़ी से ही भाजपा विधायक छत्रपाल गंगवार को मंत्रिमंडल में लेकर भाजपा ने कुर्मियों की नाराजगी का खतरा दूर करने के साथ इनके सम्मान का ध्यान रखने का संदेश दिया है। प्रदेश की अनसूचित जाति की आबादी में करीब 3 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली खटिक व सोनकर बिरादरी को भी इस विस्तार में जगह देकर गैर जाटव मतदाताओं की भाजपा के साथ लामबंदी मजबूत की गई है। बलरामपुर से विधायक पल्टूराम और मेरठ की हस्तिनापुर से विधायक दिनेश खटिक के रूप में इन्हें दो स्थान देकर भाजपा ने अपने परंपरागत कोर वोट को संतुष्ट ही नहीं किया, बल्कि यह  संदेश भी दिया है कि उसे अपने कोर वोट का  पूरा ख्याल है। डॉ. संगीता के रूप में न सिर्फ पूर्व के मंत्रिमंडल में शामिल कमल रानी वरुण की मौत से कम हुए महिला प्रतिनिधित्व को संतुलित किया गया है, बल्कि पूर्वी यूपी में वोटों के लिहाज से प्रभावी बिंद जाति को भी साधने का काम करके पिछड़ों में 10 प्रतिशत की भागादारी वाली निषाद व मल्लाह जैसी बिरादरियों के समूह को और मजबूती से साथ रखने की कोशिश की है।