Authored by सुधाकर सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Sep 20, 2021, 4:57 PM
Dalit CM Punjab पंजाब में कांग्रेस ने 55 साल के इतिहास में नई इबारत लिखी है। यहां पहली बार चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के रूप में दलित सीएम बनाया गया है। क्या इस कार्ड के सहारे कांग्रेस की नजर मिशन यूपी पर भी है। आइए समझते हैं।
चंडीगढ़
चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का सीएम बनाकर कांग्रेस ने एक तीर से दो शिकार किया है। दरअसल पंजाब में 32 फीसदी दलित वोट हैं। वहीं यूपी में 21 फीसदी दलित वोट चुनाव में किसी की किस्मत बदलने में बहुत मायने रखता है। खास बात यह है कि दोनों राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में क्या पंजाब के सहारे कांग्रेस का यूपी में भी दलितों का दिल जीतने का प्लान है? एनबीटी ऑनलाइन ने वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस से सियासी संभावनाओं पर बातचीत की। आइए समझते हैं कांग्रेस के गेम प्लान के मायने।
1- दलित चन्नी को सीएम बनाकर तीन राज्यों के लिए संदेश
पंजाब की राजनीति के हिसाब से कांग्रेस के लिए ये जरूरी था, जहां बड़ी तादाद में दलित आबादी है। दलित समुदाय में जागरूकता बहुत तेज हो रही है। पंजाब में दलितों के मान-सम्मान को लेकर लोकगीत लिखे जा रहे हैं। दलित चेतना को लेकर तमाम आयोजन हो रहे हैं। पंजाब में दलित जागरूकता अभियान चल रहा है। बड़ी जोत के जाट सिख किसानों से हटकर राजनीति पंजाब के दलित सिखों की ओर दिखाई पड़ रही है। डेरों के महत्व पंजाब में काफी ज्यादा रहा है। डेरों से जुड़ी आबादी दलित सिखों की रही है। रविदासी, रामदासी, रामगढ़िया जैसे पंथ हैं। पंजाब पर निशाना कांग्रेस ने 32 फीसदी दलित आबादी को ध्यान में रखकर लगाया है। इसके साथ-साथ इसका असर हरियाणा पर भी पड़ता है। वहां दलितों की बड़ी आबादी है, जो जोतदार नहीं हैं यानी जिनके पास जमीनें नहीं हैं। लेकिन नौकरियों और अन्य पेशों से उन्होंने जीवन-यापन का जरिया ढूंढ लिया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटव बिरादरी है और वहां आप देखें तो काफी तादाद में डेरे मिलेंगे। यहां भी रामगढ़िया और रविदासी संप्रदाय फैल रहा है। वाराणसी में रविदास आश्रम पर जो भारी भीड़ इकट्ठा होती है, उसमें बड़ी तादाद में पश्चिम के, हरियाणा के और पंजाब के दलित आते हैं। ये तीनों राज्यों के लिए एक तरह का संदेश है। कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर एक साथ कई राज्यों में बढ़त लेने की कोशिश की है।
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2- पश्चिमी यूपी की जाटव बिरादरी पर असर पड़ सकता है
पश्चिमी यूपी में पंजाब के पंथों की तरह मानने वाले दलित हैं। वह मूलतः जाटव यानी चमार हैं। उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में जो दलित हैं वो अन्य पंथों को मानने वाले दलित हैं। सेंट्रल और ईस्ट यूपी में शायद इसका उस तरह असर ना हो लेकिन जाटव बिरादरी में इसका प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के प्रति एक सकारात्मक रुख जरूर आने की संभावना है। वोट कहां देते हैं वो तो कांग्रेस की मजबूती और प्रत्याशियों के ऊपर निर्भर करेगा। कांग्रेस इस दलित कार्ड को कितनी तेजी के साथ समुदाय के बीच में प्रचारित प्रसारित कर पाती है। अपने कितने दलित नेताओं को वह मोर्चे पर लगा सकती है। ये बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि उत्तर प्रदेश में देखें तो कुछ समय से कांग्रेस इस तरह का काम कर रही थी। जैसे हरियाणा के नौजवान दलित नेता प्रदीप नरवाल को प्रियंका गांधी की मदद के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का सह प्रभारी बनाया। चुनाव में लाभ तब मिलेगा जब आप समुदाय के बीच अपने इस स्टेप और संदेश को पहुंचा पाते हैं।
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3- पंजाब में बसपा-अकाली दल का चुनावी अलायंस, उसकी काट
1996 में अकाली दल और बसपा ने एक समझौता किया था और पंजाब में लोकसभा की 90 फीसदी सीटें जीती थीं। उस समय कॉम्बिनेशन बन गया था कि जाट सिख अकालियों के साथ हैं और बसपा की वजह से दलित भी साथ आ गए थे। उसके बाद के चुनावों में कांग्रेस ने दलित वोटों में काफी सेंध लगाई। आम आदमी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित वोटों का कुछ शेयर हासिल किया। अकाली दल मूल रूप से जाट सिखों की पार्टी थी। जाट सिखों में भी चूंकि किसान हैं और किसान आंदोलन के दौरान अकालियों की भूमिका को लेकर उनमें नाराजगी है। ऐसे में बसपा और अकाली दल के गठबंधन की वजह से जो सियासी संजीवनी मिल रही थी, उस पर ये बहुत बड़ी चोट है।
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4- पंजाब में उतना सीधा भी नहीं है दलित वोटों का गणित
पंजाब में मालवा इलाके में 69 सीटें हैं। ये इलाका दलित बहुल है। हालांकि पंजाब की आबादी में दलित वोटों का गणित उतना सीधा भी नहीं है। 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की 2.77 करोड़ आबादी में से 88.60 लाख यानी 31.9 प्रतिशत दलित आबादी है। इनमें से 53.9 लाख (19.4%) दलित सिख हैं। वहीं हिंदू दलित समुदाय की आबादी 34.42 लाख यानी 12.4 प्रतिशत है। वहीं बौद्ध दलितों की तादाद 27 हजार 390 है। पंजाब में कुल सिख आबादी 1.60 करोड़ (57.69%) है। वहीं कुल हिंदू आबादी 1.06 करोड़ यानी 38.49% है। पंजाब का दलित समाज अलग-अलग पंथों में बंटा हुआ है। इसमें 26.33 प्रतिशत मजहबी सिख, 8.66 प्रतिशत बाल्मीकि/भंगी, 10.17 प्रतिशत अदधर्मी सिख और 20.78 प्रतिशत रामदसिया/रविदासी सिख हैं। कई पंथों में बिखरे दलित समाज का चुनाव में एकमुश्त वोट देने का पैटर्न नहीं रहा है। लेकिन कांग्रेस ने कहीं न कहीं दलित कार्ड के जरिए समीकरण बदलने का प्रयास किया है।
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यूपी में सुरक्षित सीटों पर दलित कार्ड भुनाने की कोशिश
यूपी की बात करें तो यहां करीब 21 फीसदी दलित वोटर हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने राज्य की 89 सुरक्षित सीटों में से 62 सीटें जीतते हुए सरकार बना ली थी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कुल 87 सुरक्षित सीटें थीं। इनमें से 85 एससी (अनुसूचित जाति) और 2 एसटी (अनुसूचित जनजाति) के लिए आरक्षित थीं। कांग्रेस यूपी की चुनावी रैलियों में भी दलित सीएम कार्ड को भुनाने की कोशिश जरूर करेगी।
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मायावती ने बताया कांग्रेस का चुनावी हथकंडा
जाहिर है मायावती के लिए अब एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। चन्नी के शपथग्रहण के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बीएसपी सुप्रीमो ने इसे कांग्रेस की चुनावी चाल करार देने में देर नहीं लगाई। माया ने कहा, ‘ये लगता है कि ये केवल इनका चुनावी हथकंडा है इसके सिवाय कुछ नहीं है। मीडिया रिपोर्ट से मुझे पता चला है कि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव इनके नेतृत्व में नहीं बल्कि गैर दलित के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। कांग्रेस पार्टी का अभी दलितों पर पूरा भरोसा नहीं बना है। चन्नी को थोड़े वक्त के लिए कांग्रेस ने सीएम बनाया है। दलित समुदाय कांग्रेस और बीजेपी के बहकावे में नहीं आएगा। समाज के लोगों को अपने पैर पर खड़ा करने की बजाए अपने स्वार्थ की खातिर कांग्रेस ने यह कदम उठाया है।’
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