हाइलाइट्सनोएडा के सेक्टर-93ए के एमरॉल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के ट्विन टावर को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया हैइसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में प्रकरण की जांच और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिया हैनोएडा अथॉरिटी की सीईओ रितु माहेश्वरी ने दो एसीईओ की अगुवाई में कमिटी बनाकर जांच शुरू करवा दीनोएडा
नोएडा के सेक्टर-93ए के एमरॉल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के ट्विन टावर को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है। इसके बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में प्रकरण की जांच और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिया है। इधर, नोएडा अथॉरिटी की सीईओ रितु माहेश्वरी ने दो एसीईओ की अगुवाई में कमिटी बनाकर जांच शुरू करवा दी।
कमिटी ने प्लानिंग और कार्मिक विभाग से दस्तावेज तलब कर पड़ताल शुरू कर दी है। जांच कमिटी अपनी रिपोर्ट में यह बताएगी कि प्राथमिक जांच में जो फर्जीवाड़ा पाया गया है उसमें बिल्डर पर क्या कार्रवाई हो सकती है। इसके साथ ही नोएडा अथॉरिटी के कौन-कौन से अधिकारी इस फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार माने जा सकते हैं। कमिटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई व विभागीय जांच का फैसला लिया जाएगा। 2009-12 के बीच हुए इस फर्जीवाड़े में 7 अधिकारी रेडार पर हैं।
दोनों एसीईओ को पूरे प्रकरण पर जांच का जिम्मा दिया गया है। कोर्ट के आदेश में दिए गए हर एक विंदु पर कार्रवाई होगी। कमिटी अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में यह बताएगी कि जो फर्जीवाड़ा हुआ है उसके लिए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार कौन अधिकारी या कर्मचारी हैं। जांच को प्राथमिकता पर करवाया जा रहा है।
रितु माहेश्वरी, सीईओ, नोएडा अथॉरिटी
सूत्रों की माने तो कमिटी की प्राथमिक जांच रिपोर्ट 5-6 दिनों में आ जाएगी। अब तक यह बात तकरीबन सामने आ चुकी है कि प्रॉजेक्ट में जो भी नियमों का उल्लंघन हुआ है वह 2009 से 2012 के बीच में हुआ है। इस दौरान नोएडा अथॉरिटी का चार्ज 3 अध्यक्ष और 9 सीईओ के पास में रहा। इसके साथ ही चीफ आर्किटेक्ट व टाउन प्लानर एक ही रहा। प्लानिंग विभाग में चार मैनेजर रहे।
सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के नक्शे में बदलाव प्लानिंग विभाग के मैनेजर की रिपोर्ट पर हुआ। अलग-अलग अधिकारियों ने इस बदलाव का प्रस्ताव तैयार करने से लेकर मंजूरी दी। कमिटी की जांच 26 नवंबर 2009 को पास हुए टावर नंबर-17 के नक्शे और टावर नंबर-16 और 17 को ग्राउंड फ्लोर और 24 मंजिल निर्माण की मंजूरी तक पहुंच गई है।
यहीं पर कई सवाल खड़े हुए हैं। इसके बाद 2 मार्च 2012 को टावर नंबर-16 और 17 का एफआर बढ़ाने की मंजूरी और दोनों टावर का नक्शा ग्राउंड फ्लोर के साथ 40 मंजिल किया जाना जांच के दायरे में है। इस तरह से यह लगभग स्पष्ट हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो टावर नंबर-16 और 17 को अवैध करार देकर तोड़ने का आदेश दिया है उनको खड़ा कराने के लिए नोएडा अथॉरिटी में 2009 से 2012 के बीच में नियम कानून ताक पर रखे गए। इसमें 7 अधिकारियों की भूमिका अब तक संदिग्ध है। देखना यह होगा कि जांच कमिटी की रिपोर्ट में कितने अधिकारियों के नाम सामने आते हैं।
सीईओ के नीचे स्तर के अधिकारी ही कार्रवाई के जद में
प्रकरण की जांच में कई बिंदु सामने आने हैं, लेकिन अब तक यह बातें सामने आ गई हैं कि जिन नक्शों में बदलाव हुआ या मंजूरी दी गई उनके दस्तावेज पर साइन तत्कालीन सीईओ व अध्यक्ष के नीचे के अधिकारियों के हैं। यह तथ्य जांच में अहम होंगे। लेकिन यह साइन किसकी संस्तुति से हुए यह सवाल बना हुआ है। तत्कालीन एक अधिकारी ने बताया कि नक्शा पास होने या बड़े बदलाव की जानकारी सीईओ स्तर तक होती है, लेकिन अधिकारी हैं कि अपनी कलम कहीं फंसाना नहीं चाहते। इसको लेकर अथॉरिटी में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
ऐसे तय हो सकती है फर्जीवाड़े में जिम्मेदारी
– बिल्डर के दिए गए आवेदन को किस अधिकारी ने सही माना और आगे बढ़ाया।
-आवेदन किस अधिकारी के पास पहुंचा। उस समय ग्रुप हाउसिंग का प्रभारी कौन था जिसने प्लानिंग विभाग में भेजा।
– प्लानिंग विभाग का चीफ आर्किटेक्ट और टाउन प्लानर (सीएपी) जिसने आवेदन पर अथॉरिटी से मंजूरी दी।
– आवेदन की मंजूरी से पहले प्लानिंग विभाग के वह जिम्मेदार मैनेजर जो मौके पर गए और निरीक्षण रिपोर्ट दी।
-आरडब्ल्यूए की तरफ से नक्शा और संसोधन को लेकर लगाई गई आरटीआई का जवाब क्यों नहीं दिया गया। इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
नोएडा ट्विन टावर (फाइल फोटो)
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