नोएडा
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में सुपरटेक के एमरॉल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के तहत दोनों टावर के फ्लैट्स को अवैध मानते हुए तोड़ने का आदेश दे दिया है। साथ यह भी कहा है कि बिल्डर बायर्स का 12 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वापस करे। फ्लैट खरीदने के लिए जमापूंजी लगाने वाले कुछ बायर्स परेशान हैं। वहीं कानूनी लड़ाई में जीत के बाद कई बायर्स का विश्वास है कि बिल्डरों को सबक मिलेगा।
कई बायर्स का कहना है कि वे अपनी गलती नहीं समझ पा रहे हैं। नोएडा अथॉरिटी के अप्रूव्ड लेआउट और प्रॉजेक्ट में यह सोच कर फ्लैट लिया कि खुद का घर हो जाएगा। किसी ने लोन तो किसी ने जिंदगी भर की जमा पूंजी बिल्डर को सौंप दी। फिर उसकी किश्त भरते रहे। कानूनी लड़ाई लड़ने वाले आरडब्ल्यूए के पूर्व अध्यक्ष यू.वी.एस. तेवतिया ने कहा कि ग्रीन एरिया में बन रहे टॉवर के खिलाफ कई बार विरोध जताया। लेकिन निर्माण जारी रहा। उसके बाद कोर्ट का सहारा लिया। खुशी है कि कोर्ट का निर्णय जनहित में आया है।
सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट के अध्यक्ष राजेश राणा ने कहा कि इस निर्णय से बिल्डरों की मनमानी पर रोक लगेगी। टावर गिरने से सोसायटी के लोगों को खुली जगह मिलेगी। इस निर्माण से सोसायटी में फायर टेंडर आने में दिक्कत होती थी। वहीं आरडब्ल्यू के पूर्व अध्यक्ष आर पी टंडन ने कहा कि सोसायटी में इन दोनों टावर के निर्माण के बाद से ही नोएडा प्राधिकरण में शिकायत देनी शुरू की। लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसको लेकर प्राधिकरण कार्यालय पर विरोध भी किया गया।
नियम ताक पर रख बदले नक्शे, बढ़ती गई टावर की ऊंचाई… समझिए सुपरटेक और नोएडा अथॉरिटी का काला खेल
नोएडा एस्टेट फ्लैट ऑनर्स मेन असोसिएशन के अध्यक्ष अन्नू खान ने कहा कि यह फैसला उन बिल्डरों के लिए सबक है, जो यह समझते हैं कि प्राधिकरण और कानून सब उनकी जेब में है। एमराल्ड कोर्ट असोसिएशन के सदस्य बधाई के पात्र हैं। नेफोवा के अध्यक्ष अभिषेक सिंह ने फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि इससे बिल्डर के खिलाफ याचिका दायर करने वाले लोगों का मनोबल भी बढ़ा है। इसके साथ ही अन्य दोषी बिल्डरों और अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
9 साल तक चली कानूनी लड़ाई-
दिसंबर 2012: रेजिडेंट्स वेलफेयर असोसिएशन (RWA) ने सुपरटेक के ट्विन टावर को यूपी अपार्टमेंट ऐक्ट का उल्लंघन बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का रूख किया। 11 अप्रैल, 2014: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों टावरों को गिराए जाने का आदेश देते हुए बिल्डरों को आदेश दिया कि खरीददारों को रिफंड कर दिया जाए। कोर्ट ने अवैध निर्माण की इजाजत देने के लिए नोएडा अथॉरिटी को भी फटकार लगाई। 28 अप्रैल, 2014: सुपरटेक की तरफ से हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। अक्टूबर, 2016: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त एनबीसीसी ने कहा कि बिल्डिंग रेग्युलेशन्स का पालन नहीं किया गया। बायर्स को रिफंड की शुरुआत कर दी गई।30 जुलाई, 2018: प्रभावित बायर्स की लिस्ट को फाइनल किया गया। 5 अगस्त, 2021: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा। 31 अगस्त, 2021: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 3 महीनों के अंदर ही दोनों टावरों को गिराए जाने का आदेश दिया।प्रॉजेक्ट में फंसे हैं 252 बायर्स
दोनों टावर में फंसे फ्लैट बायर्स की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट में सुपरटेक बिल्डर की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक एपेक्स और सियान टावर में कुल 915 फ्लैट और 21 दुकानें हैं। शुरू में 633 लोगों ने बुकिंग करवाई थी। 248 बायर्स का पैसा वापस दिया जा चुका है। 133 बायर्स सुपरटेक के दूसरे प्रॉजेक्ट में सेटल हो गए हैं। 252 बायर्स अभी बचे हैं।
फाइल फोटो
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