सार
सीबीआई ने पीसीएस-2015 में हुई धांधली के मामले में पांच मई 2018 को एफआईआर दर्ज की थी। मुकदमा दर्ज करने से पहले सीबीआई को भर्ती में धांधली से जुड़े कई अहम सुराग मिले थे। जांच के दौरान कई कॉपियों में विशेष चिह्न लगे हुए मिले थे, जिससे अभ्यर्थियों की पहचान आसानी से की जा सकती थी।
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उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्ती परीक्षाओं की जांच कर रही सीबीआई ने साढ़े तीन साल में दो मुकदमे दर्ज किए और दोनों में ही परीक्षाओं में धांधली के लिए दोषी आयोग के अफसर एवं कर्मचारी अज्ञात हैं। सीबीआई ने तीन साल पहले पीसीएस-2015 के मामले में एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आयोग के अफसर एवं कर्मचारी अज्ञात थे और अब भी अज्ञात हैं। प्रतियोगियों को आशंका है कि अपर निजी सचिव (एपीएस)-2010 के मामले में दर्ज एफआईआर में भी आयोग के अज्ञात अफसर एवं कर्मचारी भी कहीं अज्ञात ही न रह जाएं।
सीबीआई ने पीसीएस-2015 में हुई धांधली के मामले में पांच मई 2018 को एफआईआर दर्ज की थी। मुकदमा दर्ज करने से पहले सीबीआई को भर्ती में धांधली से जुड़े कई अहम सुराग मिले थे। जांच के दौरान कई कॉपियों में विशेष चिह्न लगे हुए मिले थे, जिससे अभ्यर्थियों की पहचान आसानी से की जा सकती थी। मॉडरेशन की आड़ में अंकों से छेड़छाड़ के सुबूत मिले थे। कई अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाए और घटाए गए थे। अंतर इतना था कि पूरी मेरिट प्रभावित हो रही थी। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में इन सभी गड़बडिय़ों का जिक्र किया था। मामले में सीबीआई ने आयोग के अज्ञात अफसरों और बाहरी अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। हालांकि इस मुकदमे में अब तक कोई सीधी कार्रवाई नहीं की गई है।
तीन साल बाद सीबीआई ने चार अगस्त 2021 को एपीएस-2010 में हुई धांधली के मामले में मुकदमा दर्ज किया। इस बार सीबीआई ने पूर्व परीक्षा नियंत्रक एवं पीडब्ल्यूडी के विशेष सचिव प्रभुनाथ को नामजद किया, लेकिन इस एफआईआर में भी आयोग के कुछ अफसरों/कर्मचारियों को अज्ञात के रूप में शामिल किया गया। अज्ञात अफसरों/कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए सीबीआई ने आयोग को पत्र भेजकर दूसरी बार अभियोजन की स्वकृति मांगी है, लेकिन आयोग से अब तक स्वीकृति नहीं मिली है। सवाल उठ रहे हैं कि अभियोजन स्वीकृति के नाम पर कार्रवाई कब तक रुकी रहेगी और प्रतियोगियों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले अफसरों के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई हो सकेगी या नहीं।
आखिर कब पूरी होगी 599 परीक्षाओं की जांच
सीबीआई आयोग की उन परीक्षाओं की जांच कर रही है, जिनके परिणाम अप्रैल 2012 से मार्च 2017 के बीच जारी किए गए। इस दायरे में 599 परीक्षाएं आ रही हैं और इनमें तकरीबन 40 हजार चयनित अभ्यर्थी जुड़े हुए हैं। एपीएस भर्ती-2010 जांच के दायरे से बाहर थी, सो इसकी जांच के लिए सीबीआई को सरकार से विशेष अनुमति लेनी पड़ी थी। जांच शुरू हुई साढ़े तीन साल से अधिक वक्त बीत चुका है और अब तक दो मामलों में मुकदमें दर्ज हुए हैं। प्रतियोगी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर यह जांच कब तक चलेगी?
प्रतियोगियों का दावा, ज्यादातर परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी
प्रतियोगियों का दावा है कि सीबीआई जिन परीक्षाओं की जांच कर रही हैं, उनमें से ज्यादातर परीक्षाओं में गड़बडिय़ां हुईं हैं। प्रतियोगियों ने सीबीआई को तमाम अभिलेखीय साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं। अब तक दस हजार अभ्यर्थियों के बयान लिए जा चुके हैं। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने मांग की है कि आयोग अभियोजन स्वीकृति शीघ्र प्रदान करे और सीबीआई भी अन्य परीक्षाओं में प्राथमिक जांच के साथ कम से कम एफआईआर जरूर दर्ज करे, ताकि प्रतियोगियों का विश्वास बना रहे।
विस्तार
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्ती परीक्षाओं की जांच कर रही सीबीआई ने साढ़े तीन साल में दो मुकदमे दर्ज किए और दोनों में ही परीक्षाओं में धांधली के लिए दोषी आयोग के अफसर एवं कर्मचारी अज्ञात हैं। सीबीआई ने तीन साल पहले पीसीएस-2015 के मामले में एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आयोग के अफसर एवं कर्मचारी अज्ञात थे और अब भी अज्ञात हैं। प्रतियोगियों को आशंका है कि अपर निजी सचिव (एपीएस)-2010 के मामले में दर्ज एफआईआर में भी आयोग के अज्ञात अफसर एवं कर्मचारी भी कहीं अज्ञात ही न रह जाएं।
सीबीआई ने पीसीएस-2015 में हुई धांधली के मामले में पांच मई 2018 को एफआईआर दर्ज की थी। मुकदमा दर्ज करने से पहले सीबीआई को भर्ती में धांधली से जुड़े कई अहम सुराग मिले थे। जांच के दौरान कई कॉपियों में विशेष चिह्न लगे हुए मिले थे, जिससे अभ्यर्थियों की पहचान आसानी से की जा सकती थी। मॉडरेशन की आड़ में अंकों से छेड़छाड़ के सुबूत मिले थे। कई अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाए और घटाए गए थे। अंतर इतना था कि पूरी मेरिट प्रभावित हो रही थी। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में इन सभी गड़बडिय़ों का जिक्र किया था। मामले में सीबीआई ने आयोग के अज्ञात अफसरों और बाहरी अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। हालांकि इस मुकदमे में अब तक कोई सीधी कार्रवाई नहीं की गई है।
सीबीअाई
तीन साल बाद सीबीआई ने चार अगस्त 2021 को एपीएस-2010 में हुई धांधली के मामले में मुकदमा दर्ज किया। इस बार सीबीआई ने पूर्व परीक्षा नियंत्रक एवं पीडब्ल्यूडी के विशेष सचिव प्रभुनाथ को नामजद किया, लेकिन इस एफआईआर में भी आयोग के कुछ अफसरों/कर्मचारियों को अज्ञात के रूप में शामिल किया गया। अज्ञात अफसरों/कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए सीबीआई ने आयोग को पत्र भेजकर दूसरी बार अभियोजन की स्वकृति मांगी है, लेकिन आयोग से अब तक स्वीकृति नहीं मिली है। सवाल उठ रहे हैं कि अभियोजन स्वीकृति के नाम पर कार्रवाई कब तक रुकी रहेगी और प्रतियोगियों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले अफसरों के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई हो सकेगी या नहीं।
आखिर कब पूरी होगी 599 परीक्षाओं की जांच
सीबीआई आयोग की उन परीक्षाओं की जांच कर रही है, जिनके परिणाम अप्रैल 2012 से मार्च 2017 के बीच जारी किए गए। इस दायरे में 599 परीक्षाएं आ रही हैं और इनमें तकरीबन 40 हजार चयनित अभ्यर्थी जुड़े हुए हैं। एपीएस भर्ती-2010 जांच के दायरे से बाहर थी, सो इसकी जांच के लिए सीबीआई को सरकार से विशेष अनुमति लेनी पड़ी थी। जांच शुरू हुई साढ़े तीन साल से अधिक वक्त बीत चुका है और अब तक दो मामलों में मुकदमें दर्ज हुए हैं। प्रतियोगी सवाल उठा रहे हैं कि आखिर यह जांच कब तक चलेगी?
प्रतियोगियों का दावा, ज्यादातर परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी
प्रतियोगियों का दावा है कि सीबीआई जिन परीक्षाओं की जांच कर रही हैं, उनमें से ज्यादातर परीक्षाओं में गड़बडिय़ां हुईं हैं। प्रतियोगियों ने सीबीआई को तमाम अभिलेखीय साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं। अब तक दस हजार अभ्यर्थियों के बयान लिए जा चुके हैं। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने मांग की है कि आयोग अभियोजन स्वीकृति शीघ्र प्रदान करे और सीबीआई भी अन्य परीक्षाओं में प्राथमिक जांच के साथ कम से कम एफआईआर जरूर दर्ज करे, ताकि प्रतियोगियों का विश्वास बना रहे।
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