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UP Assembly chunav 2022: क्या यूपी में बीजेपी के खेवनहार साबित होंगे कल्याण सिंह?…जानें क्या हैं राजनीतिक मायने

लखनऊ
कल्याण सिंह के निधन के बाद यूपी सरकार ने उनकी स्मृति में जो फौरी ऐलान किए हैं, उनमें अयोध्या में राम मंदिर की तरफ जाने वाली सड़क का नाम उनके नाम पर रखने की बात है। इसके अलावा लखनऊ, प्रयागराज, बुलंदशहर और अलीगढ़ में एक-एक सड़क कल्याण सिंह के नाम पर जानी जाएगी। राजकीय मेडिकल कॉलेज, बुलंदशहर और सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान लखनऊ का नाम भी कल्याण सिंह के नाम पर करने का फैसला हुआ है।

कल्याण सिंह की स्मृति में एक यात्रा के आयोजन पर भी बीजेपी के बीच विमर्श चल रहा है। इसे ‘राम यात्रा’ जैसा नाम दिया जा सकता है। रात में कल्याण सिंह के निधन की खबर मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले दिन सबेरे के अपने तमाम पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में फेरबदल करते हुए उनके अंतिम दर्शन के लिए लखनऊ पहुंचे थे।

कल्याण सिंह के बेटे ने की योगी की तारीफ
गृह मंत्री अमित शाह कल्याण सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो उनके निधन की खबर मिलने के बाद लखनऊ के पीजीआई से तीसरे दिन हुए अंतिम संस्कार तक लगातार साथ-साथ रहे और सारी व्यवस्थाओं की खुद निगरानी की। कल्याण सिंह के सांसद बेटे राजवीर सिंह ने तो सोशल मीडिया के जरिए इसके लिए योगी आदित्यनाथ को शुक्रिया बोला।

राजवीर सिंह ने लिखा, ‘मुख्यमंत्री जी, आपने प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नहीं, बाबू जी के निधन के बाद 3 दिन उनके पार्थिव शरीर और दाह संस्कार तक साथ रहकर रामभक्त आदरणीय बाबूजी जी के बड़े बेटे का हक निभाया है। इसके लिए मैं, मेरा परिवार और क्षेत्र की जनता सदैव आपकी ऋणी रहेगी। ऐसे योगी के लिए मैं नतमस्तक हूं।’

सबके अपने-अपने दांव
इसमें कोई शक नहीं कि कल्याण सिंह यूपी की राजनीति में बड़े जनाधार वाले नेताओं में शुमार होते रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन में उनकी भूमिका ने उन्हें ‘हिंदू ह्दय सम्राट’ भी बनाया। यह अलग बात है कि दो दफे उन्होंने बीजेपी छोड़ी, अपनी अलग पार्टी बनाई, बीजेपी को खत्म करने की कसम खाई, समाजवादी पार्टी के साथ उनकी पार्टी सरकार में शामिल रही। आखिरकार उन्होंने बीजेपी में वापसी की। गवर्नर बने, बेटे राजवीर सिंह दो बार से बीजेपी से सांसद हैं और पौत्र योगी सरकार में मंत्री भी हैं।

राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा निधन
कल्याण सिंह का निधन ऐसे मौके पर हुआ, जब यूपी के चुनाव के महज छह महीने बचे हैं। इस वजह से हर एक कदम को राजनीतिक नजरिए से भी आंका जा रहा है। बीएसपी चीफ मायावती के कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके आवास पर पहुंचना राजनीतिक अचंभे के रूप में देखा गया, क्योंकि मायावती खुशी और गमी दोनों मौकों से अपने को दूर रखती हैं। ऐसे मौकों पर उनकी उपस्थिति बहुत कम देखी गई है।

उधर, मुलायम सिंह यादव परिवार से किसी के भी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए न आना भी एक चौंकाने वाला ही कदम रहा। बीजेपी के लिए भी कहा जा रहा कि वह कल्याण सिंह के जरिए उपजी सहानुभूति को अपने हक में भुनाने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहती।

बीजेपी के लिए कितने फायदेमंद?
जब कल्याण सिंह ने बीजेपी में वापसी की थी, तो उन्होंने कहा था कि जो दो बार हुआ, वह उनके जीवन की भूल थी। अब वह अंतिम सांस तक बीजेपी में रहेंगे और उनकी आखिरी इच्छा यही है जब उनके जीवन का अंत हो तो उनका शव भारतीय जनता पार्टी के ध्वज में लपेटा जाए। 2019 में राज्यपाल पद का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने लखनऊ के बीजेपी राज्य मुख्यालय पहुंच कर फिर से बीजेपी की सदस्यता ली और अंतिम सांस तक वह बीजेपी के रहे। बीजेपी कल्याण सिंह के जरिए कई फायदे देख रही है:

1 – सबसे बड़ा फायदा तो यह दिख रहा है कि चुनावी वर्ष में बीजेपी के अंदर ही योगी के मुकाबले पिछड़ा वर्ग नेतृत्व को आगे करने की जो मांग उठ रही थी, उसकी धार कुंद हो सकती है। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह के जरिए सीएम योगी को मिला ‘बाबू जी के बड़े बेटे का हक निभाया’ का ‘सर्टिफिकेट’ सीएम पद के दावेदार ओबीसी नेताओं को बैकफुट पर कर सकता है।

2 – यूपी के चुनाव में ओबीसी की निर्णायक भूमिका होती है। बीजेपी काफी समय से ओबीसी को गोलबंद करने की कोशिश में लगी हुई है। कल्याण सिंह के प्रति दिखाए गए सम्मान के जरिए ओबीसी को अपने पाले में करने की उसकी कोशिश अंजाम तक पहुंच सकती है। मुलायम सिंह यादव परिवार से किसी के श्रद्धांजलि अर्पित न करने के लिए जाने को इसी वजह से मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है।

3 – कल्याण सिंह की छवि एक प्रखर हिंदुवादी नेता की रही है। कल्याण सिंह से प्रभावित रहने वाला एक खास विचारधारा का वोटबैंक पहले से कहीं ज्यादा शिद्दत के साथ बीजेपी से जुड़ सकता है।