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उत्तर प्रदेश: चुनाव से छह महीने पहले होने वाला मंत्रिमंडल विस्तार चुनावी बिसात पर कितना है कारगर, ऐसे सधेगा जातिगत समीकरण

सार
लखनऊ विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख डॉ. मुकुल श्रीवास्तव कहते हैं, चुनाव की रणनीति बनाने वाले इस बात को बखूबी जानते हैं कि कौन सा काम कब करने पर कितना फायदा मिलेगा। इसलिए आमतौर पर देखा जाता है कि विकास कार्यों की गति चुनाव से कुछ महीने पहले अचानक तेज हो जाती है…

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
– फोटो : Amar Ujala (File Photo)

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उत्तर प्रदेश में आखिरकार बहुत लंबे वक्त से प्रतीक्षारत मंत्रिमंडल विस्तार की रूपरेखा तय हो गई। यह मंत्रिमंडल विस्तार रक्षाबंधन के बाद 24 या 27 अगस्त को किए जाने का अनुमान है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव से महज कुछ महीने पहले जातिगत समीकरणों को साधते हुए किए जाने वाले इस विस्तार से भारतीय जनता पार्टी को कितना नफा या नुकसान होने वाला है। भाजपा के संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में अति पिछड़े, दलित, जाट, गुर्जर और ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाने की तैयारी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए किसान आंदोलन के चलते एक बहुत बड़े वोट बैंक को साधने की जिम्मेदारी और चैलेंज बना हुआ है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम परिस्थितियों के बाद भी चुनाव से पहले होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का असर आने वाले चुनाव में जरूर पड़ता है।

दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत संगठन मंत्री सुनील बंसल की मुलाकात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से हुई। इस बैठक के दौरान तय हुआ था कि अगले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश का मंत्रिमंडल विस्तार किया जाएगा। अब बड़ा सवाल यही उठता है क्या चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार से आने वाले चुनाव में सत्ता पक्ष को हकीकत में जातिगत समीकरण साधने का कुछ फायदा होगा या नहीं।

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि चुनाव से कुछ महीने पहले जातिगत समीकरणों को साधने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का आने वाले चुनावों में असर पड़ता है। खासकर जब सहयोगी दलों से या दूसरी पार्टी से आए लोगों को मंत्री बनाया जाता है। जीडी शुक्ला इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताते हैं। वह कहते हैं सहयोगी दल अपने क्षेत्रों में और अपने प्रभाव वाली जातियों में इस बात को प्रचारित और प्रसारित करते हैं कि उन्हें मौका चुनाव से कुछ महीने पहले मिला है। चुनाव पश्चात जब सरकार दोबारा उनकी ही बनेगी तो उनको एक लंबे वक्त के लिए मौका मिलेगा। यह सब एक रणनीति के तहत किया जाता है और लोगों को सत्ता पक्ष के करीब लाकर ज्यादा से ज्यादा उनके पक्ष में मतदान कराने का एक तरीका होता है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख डॉ. मुकुल श्रीवास्तव कहते हैं, चुनाव की रणनीति बनाने वाले इस बात को बखूबी जानते हैं कि कौन सा काम कब करने पर कितना फायदा मिलेगा। इसलिए आमतौर पर देखा जाता है कि विकास कार्यों की गति चुनाव से कुछ महीने पहले अचानक तेज हो जाती है। चुनाव में जीत हो, यह उसकी रूपरेखा होती है। डॉ. मुकुल कहते हैं कि अभी भी जो वोट देने वाले सबसे ज्यादा लोग खासकर ग्रामीण इलाकों से हैं, उनकी स्मृति पर चुनाव से पहले किए गए तमाम बदलावों का खासा असर देखने को मिलता है।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व और उत्तर प्रदेश प्रभारी की टीम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार में ब्राह्मण, पिछड़े, दलित और जाट-गुर्जर समुदाय को शामिल करने की पूरी रूपरेखा बन चुकी है। सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन विधायकों के नामों की चर्चा आलाकमान के साथ हुई है। इसमें जाट समुदाय की डॉ. मंजू सिवाच, मेरठ से गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विधायक सोमेंद्र तोमर और दादरी के विधायक तेजपाल नागर का नाम भी शामिल है।

भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इनमें से किसी एक को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके अलावा कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का नाम भी शामिल है। सूत्रों का कहना है अति पिछड़ी जातियों के एक विशेष वर्ग का नेतृत्व करने वाले निषाद पार्टी के संजय निषाद को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। जबकि अपना दल से आशीष पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है।

भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संगठन में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए अरविंद शर्मा का नाम भी मंत्रिमंडल में नए चेहरे के तौर पर लिया जा रहा है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही ब्राह्मण चेहरे और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई का नाम भी चर्चा में है।

विस्तार

उत्तर प्रदेश में आखिरकार बहुत लंबे वक्त से प्रतीक्षारत मंत्रिमंडल विस्तार की रूपरेखा तय हो गई। यह मंत्रिमंडल विस्तार रक्षाबंधन के बाद 24 या 27 अगस्त को किए जाने का अनुमान है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चुनाव से महज कुछ महीने पहले जातिगत समीकरणों को साधते हुए किए जाने वाले इस विस्तार से भारतीय जनता पार्टी को कितना नफा या नुकसान होने वाला है। भाजपा के संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में अति पिछड़े, दलित, जाट, गुर्जर और ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगाने की तैयारी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए किसान आंदोलन के चलते एक बहुत बड़े वोट बैंक को साधने की जिम्मेदारी और चैलेंज बना हुआ है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम परिस्थितियों के बाद भी चुनाव से पहले होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का असर आने वाले चुनाव में जरूर पड़ता है।

दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत संगठन मंत्री सुनील बंसल की मुलाकात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से हुई। इस बैठक के दौरान तय हुआ था कि अगले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश का मंत्रिमंडल विस्तार किया जाएगा। अब बड़ा सवाल यही उठता है क्या चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार से आने वाले चुनाव में सत्ता पक्ष को हकीकत में जातिगत समीकरण साधने का कुछ फायदा होगा या नहीं।

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि चुनाव से कुछ महीने पहले जातिगत समीकरणों को साधने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का आने वाले चुनावों में असर पड़ता है। खासकर जब सहयोगी दलों से या दूसरी पार्टी से आए लोगों को मंत्री बनाया जाता है। जीडी शुक्ला इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताते हैं। वह कहते हैं सहयोगी दल अपने क्षेत्रों में और अपने प्रभाव वाली जातियों में इस बात को प्रचारित और प्रसारित करते हैं कि उन्हें मौका चुनाव से कुछ महीने पहले मिला है। चुनाव पश्चात जब सरकार दोबारा उनकी ही बनेगी तो उनको एक लंबे वक्त के लिए मौका मिलेगा। यह सब एक रणनीति के तहत किया जाता है और लोगों को सत्ता पक्ष के करीब लाकर ज्यादा से ज्यादा उनके पक्ष में मतदान कराने का एक तरीका होता है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन विभाग के प्रमुख डॉ. मुकुल श्रीवास्तव कहते हैं, चुनाव की रणनीति बनाने वाले इस बात को बखूबी जानते हैं कि कौन सा काम कब करने पर कितना फायदा मिलेगा। इसलिए आमतौर पर देखा जाता है कि विकास कार्यों की गति चुनाव से कुछ महीने पहले अचानक तेज हो जाती है। चुनाव में जीत हो, यह उसकी रूपरेखा होती है। डॉ. मुकुल कहते हैं कि अभी भी जो वोट देने वाले सबसे ज्यादा लोग खासकर ग्रामीण इलाकों से हैं, उनकी स्मृति पर चुनाव से पहले किए गए तमाम बदलावों का खासा असर देखने को मिलता है।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व और उत्तर प्रदेश प्रभारी की टीम से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार में ब्राह्मण, पिछड़े, दलित और जाट-गुर्जर समुदाय को शामिल करने की पूरी रूपरेखा बन चुकी है। सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है। यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन विधायकों के नामों की चर्चा आलाकमान के साथ हुई है। इसमें जाट समुदाय की डॉ. मंजू सिवाच, मेरठ से गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विधायक सोमेंद्र तोमर और दादरी के विधायक तेजपाल नागर का नाम भी शामिल है।

भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इनमें से किसी एक को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके अलावा कांग्रेस से भारतीय जनता पार्टी में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर शामिल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का नाम भी शामिल है। सूत्रों का कहना है अति पिछड़ी जातियों के एक विशेष वर्ग का नेतृत्व करने वाले निषाद पार्टी के संजय निषाद को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। जबकि अपना दल से आशीष पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है।

भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि संगठन में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए अरविंद शर्मा का नाम भी मंत्रिमंडल में नए चेहरे के तौर पर लिया जा रहा है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही ब्राह्मण चेहरे और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई का नाम भी चर्चा में है।