हाइलाइट्सराम नगरी के हनुमानगढ़ी पीठ ने अपना दावा जताया वर्तमान में पूर्व डीजीपी कुणाल किशोर इस मंदिर के सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैंइससे पहले भी हो चुका है विवाद, कोर्ट तक पहुंचा था मामलामयंक श्रीवास्तव अयोध्या
पटना के महावीर मंदिर पर राम नगरी के हनुमानगढ़ी पीठ ने अपना दावा जताया है। हनुमानगढ़ी पीठ की ओर से इस संबंध में अयोध्या सिविल कोर्ट में वाद दायर कर दिया गया है। हनुमानगढ़ी के गद्दी नशीन प्रेमदास ने पटना के महावीर मंदिर को हनुमानगढ़ी की संपत्ति बताया है। अयोध्या सिविल कोर्ट में वाद दायर होने के बाद 300 वर्ष पुराने इस मंदिर को लेकर एक बार फिर से विवाद खड़ा हो गया है।
पटना का महावीर मंदिर पंच रामानंदीय अखाड़ा परंपरा से संबंधित मंदिर है। वर्तमान में गुजरात के पूर्व डीजीपी कुणाल किशोर इस मंदिर के सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। कुणाल किशोर इस मंदिर पर अपनी दावेदारी भी जता रहे हैं। रामानंदीय परंपरा के प्रसिद्ध मंदिर अयोध्या हनुमानगढ़ी पीठ ने इसे गलत बताया है। मामले को लेकर रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा हनुमानगढ़ी अयोध्या के पंचों की बड़ी बैठक आयोजित की गई। बैठक में सर्वसम्मति से महावीर मंदिर पटना पर आईपीएस कुणाल किशोर की दावेदारी को गलत बताया गया और मंदिर की व्यवस्था देखने के लिए महेंद्र दास को नया महंत नियुक्त किया गया। इसके साथ ही मंदिर में पूजा-पाठ करने के लिए सूर्यवंशी दास को पुजारी नियुक्त किया गया।
अयोध्या हनुमानगढ़ी के गद्दी नशीन महंत प्रेमदास ने कहा कि महावीर मंदिर सिद्ध पीठ हनुमान गढ़ी का है। पहले से वहां महंत और पुजारी इसकी देखरेख कर रहे हैं। रामानंदी संप्रदाय में व्यक्ति परिस्थितियों और समय बदलते रहते हैं, लेकिन रीति रिवाज परंपराएं अधिकार में परिवर्तन नहीं किया जाता। कुणाल किशोर अपने पद का गलत प्रयोग करते हुए स्वयं मंदिर के सचिव बन गए हैं, यह गलत है। उनके विरुद्ध सिविल न्यायालय में वाद दायर किया गया है। अयोध्या के सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में दायर वाद में हनुमानगढ़ी पीठ की ओर से कुणाल किशोर और उनके पुत्र सायण कुणाल व महावीर मंदिर न्यास समिति को विपक्षी बनाया गया है।
वर्ष 1935 में शुरू हुआ मंदिर विवाद
पटना के महावीर मंदिर की स्वामित्व को लेकर यह पहला विवाद नहीं है। वर्ष 1935 में रामानंदी एक परंपरा के संत साधु भगवान दास ने रामानंदी परंपरा इस मंदिर पर स्वामित्व का दावा जताया था। 13 साल चले मुकदमे में हाई कोर्ट ने वर्ष 1948 में मुकदमे की सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुनाया था। जिसमें अदालत ने कहा कि कि यह मंदिर ईस्ट इंडिया कंपनी के सहयोग से स्थापित किया गया था। ऐसे में यह निजी संपत्ति नहीं हो सकती।
1983 में कुणाल किशोर ने मंदिर की भूमि से हटवाया अतिक्रमण
बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर के आसपास अतिक्रमण कर लिया गया था। इसे हटाने के लिए तत्कालीन आईपीएस अधिकारी कुणाल किशोर ने कठोर निर्णय लेते हुए मंदिर की भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराया था। जिसके बाद मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए शिलान्यास किया गया था। वर्ष 1985 में मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य पूरा हुआ। इसके बाद वर्ष 1987 में 300 वर्ष पुराने इस मंदिर कि महंती परंपरा को समाप्त कर दिया गया।
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300 वर्ष पूर्व स्थापित हुआ था महावीर मंदिर
पटना जंक्शन के बाहर क्षेत्र महावीर मंदिर रामानंदी परंपरा के तेजस्वी संत बाल आनंद ने करीब 300 वर्ष पूर्व की थी। पंचरामानंदी परंपरा से संबंधित मंदिर को लेकर मुकदमा दायर होने के बाद पटना महावीर मंदिर को लेकर विवाद शुरू हो गया है। आपको बता दें कि इससे पूर्व में भी हनुमानगढ़ी पीठ की ओर से कुणाल किशोर की महावीर मंदिर पर दावेदारी को गलत बताया गया था। यह देश का पहला मंदिर है, जहां दलित समुदाय से संबंध रखने वाले सूर्यवंशी दास को मंदिर का महंत बनाया गया। महावीर मंदिर प्रकरण को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक शिकायत की जा चुकी है।
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