इलाहाबाद हाईकोर्ट में 22जुलाई से स्टेट आफ द आर्ट हाई इंड सर्वर की शुरुआत की गई है। अत्याधुनिक और अधिक क्षमता का यह सर्वर प्रयागराज, लखनऊ दोनो जगह काम करेगा। नया सर्वर शुरू होने से हाईकोर्ट के आधुनिकीकरण और पेपर लेस कोर्ट बनाने में सिर्फ सहायता मिलेगी, बल्कि रिकार्ड के डिजिटाइजेशन में भी सहूलियत होगी। निबंधक शिष्टाचार आशीष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि इस सर्वर से आईसीटी इंफ्रास्ट्रक्चर बूस्ट करेगा। अधिक ई-कोर्ट, पेपरलेस कोर्टद् बनाई जा सकेंगी। डाक्यूमेंट्स मैनेजमेंट सिस्टम व नए सॉफ्टवेयर से सभी अदालतें जुड़ जाएंगी। इससे डिजिटाइज्ड स्कैन फाइलें सर्च, स्टोर करने में आसानी होगी। यह डाटा सेंटर के रूप में काम करेगा। इससे डाटा सुरक्षा व डाटा उपलब्धता तकनीक में वृद्धि होगी। आनलाइन सुविधाएं बढ़ेंगी।
कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड की संविधानिक व्यवस्था के खिलाफ – त्रिपाठी
वरिष्ठ अधिवक्ता संविधान के जानकार अमरनाथ त्रिपाठी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 215 में हाईकोर्ट को कोर्ट आफ रिकार्ड कहा गया है। जहां हाईकोर्ट की स्थापना के समय से सभी मूल दस्तावेज सुरक्षित रखें गए हैं। पेपरलेस कोर्ट की शुरुआत संविधान की मूल भावना के विपरीत है। त्रिपाठी का कहना है कि प्रदेश की 70 फीसदी आबादी को नई तकनीक की जानकारी नहीं है। पेपरलेस कोर्ट कार्यवाही में वादकारी के जानने के अधिकार असुरक्षित हैं। साफ्टवेयर हैक कर करप्ट किया जा सकता है, जिसकी जवाबदेही तय करना कठिन होगा। उनका कहना है कि इस व्यवस्था में तमाम खामियां हैं। फुल प्रूफ नहीं है। दुरुपयोग किए जाने की प्रबल संभावना है। मूल रिकार्ड की हार्ड कापी वकील के पास रहने और कोर्ट रिकॉर्ड करप्ट होने की दशा में रिकॉर्ड में छेड़छाड़ की संभावना अधिक हो सकती है।
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