बारिश के साथ ही दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में कटरूआ की बहार आ गई है। सॉल के पेड़ के नीचे प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे कटरूआ निकलने शुरू हो गए हैं। वन्य जीवों के अलावा इंसानों को भी यह काफी पसंद है। वन्य क्षेत्रों में इन्हें बीनने के लिए लोगों की घुसपैठ बढ़ जाती है, जिसके चलते वन्यजीवों और मानव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इस घुसपैठ को रोकने को लेकर वन विभाग काफी चिंतित है।बरसात शुरू होते ही दुधवा टाइगर रिजर्व बफरजोन के मैलानी, भीरा, पलिया सहित दुधवा नेशनल पार्क के किशनपुर सेंक्चुरी और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के गोला रेंज में सॉल के जंगल में कटरूआ निकलने लगता है। इसे हिरन, पाढ़ा, चीतल, भालू, बंदर, लंगूर आदि वन्यजीव बड़े चाव से खाते हैं। इससे उन्हें भरपूर प्रोटीन मिलता है, लेकिन इंसान भी कटरूआ बहुत पसंद करता है। जैसे ही इसका सीजन शुरू होता है जंगल के आसपास बसे ग्रामीण वन क्षेत्र में घुसपैठ करके कटरूआ बीनने में जुट जाते हैं। यह कटरूआ बाजार में ऊंची कीमत पर बिकता है। इसके चलते गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डालने से गुरेज नहीं करते हैं।
600 से लेकर 800 रुपये प्रति किलो बिक रहा कटरूआ
तराई के जंगल में बरसात के मौसम में निकलने वाला कटरूआ इस समय बांकेगंज, गोला, मैलानी सहित आसपास की बाजारों में आने लगा है। भरपूर प्रोटीन से युक्त यह विशेष प्रकार का जंगली फल 600 से लेकर 800 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है। महंगा होने के बाद भी लोग इसे बड़े शौक से खरीद रहे हैं। काले या सफेद रंग के गोल कंचे के आकार का यह कटरूआ बेहद पौष्टिक होता है। जंगल के आसपास बसे लोगों के लिए कटरूआ दो महीने रोजी-रोटी का जरिया बना रहता है। हालांकि जंगल में घुसकर कटरूआ बीनना प्रतिबंधित है। बावजूद इसके लोग कटरूआ बीनने के लिए जंगल में जाते हैं। इस पर अंकुश लगाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती होती है।
बारिश के साथ ही दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में कटरूआ की बहार आ गई है। सॉल के पेड़ के नीचे प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे कटरूआ निकलने शुरू हो गए हैं। वन्य जीवों के अलावा इंसानों को भी यह काफी पसंद है। वन्य क्षेत्रों में इन्हें बीनने के लिए लोगों की घुसपैठ बढ़ जाती है, जिसके चलते वन्यजीवों और मानव संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इस घुसपैठ को रोकने को लेकर वन विभाग काफी चिंतित है।
बरसात शुरू होते ही दुधवा टाइगर रिजर्व बफरजोन के मैलानी, भीरा, पलिया सहित दुधवा नेशनल पार्क के किशनपुर सेंक्चुरी और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के गोला रेंज में सॉल के जंगल में कटरूआ निकलने लगता है। इसे हिरन, पाढ़ा, चीतल, भालू, बंदर, लंगूर आदि वन्यजीव बड़े चाव से खाते हैं। इससे उन्हें भरपूर प्रोटीन मिलता है, लेकिन इंसान भी कटरूआ बहुत पसंद करता है। जैसे ही इसका सीजन शुरू होता है जंगल के आसपास बसे ग्रामीण वन क्षेत्र में घुसपैठ करके कटरूआ बीनने में जुट जाते हैं। यह कटरूआ बाजार में ऊंची कीमत पर बिकता है। इसके चलते गांव के लोग अपनी जान जोखिम में डालने से गुरेज नहीं करते हैं।
तराई के जंगल में बरसात के मौसम में निकलने वाला कटरूआ इस समय बांकेगंज, गोला, मैलानी सहित आसपास की बाजारों में आने लगा है। भरपूर प्रोटीन से युक्त यह विशेष प्रकार का जंगली फल 600 से लेकर 800 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है। महंगा होने के बाद भी लोग इसे बड़े शौक से खरीद रहे हैं। काले या सफेद रंग के गोल कंचे के आकार का यह कटरूआ बेहद पौष्टिक होता है। जंगल के आसपास बसे लोगों के लिए कटरूआ दो महीने रोजी-रोटी का जरिया बना रहता है। हालांकि जंगल में घुसकर कटरूआ बीनना प्रतिबंधित है। बावजूद इसके लोग कटरूआ बीनने के लिए जंगल में जाते हैं। इस पर अंकुश लगाना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती होती है।
जंगल में घुसपैठ रोकने के लिए लगातार मानसून पेट्रोलिंग की जा रही है। ग्रामीणों को आगाह किया जाता है कि वे कटरूआ बीनने के लिए जंगल में न जाएं। इससे उन्हें बाघ, तेंदुआ आदि हिंसक जानवरों से जान का खतरा हो सकता है। हिदायत के बाद भी यदि अवैध रूप से जंगल में कोई जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। – डॉ. अनिल कुमार पटेल, उपनिदेशक, दुधवा टाइगर रिजर्व, बफरजोन
More Stories
Rishikesh में “अमृत कल्प” आयुर्वेद महोत्सव में 1500 चिकित्सकों ने मिलकर बनाया विश्व कीर्तिमान, जानें इस ऐतिहासिक आयोजन के बारे में
Jhansi पुलिस और एसओजी की जबरदस्त कार्रवाई: अपहृत नर्सिंग छात्रा नोएडा से सकुशल बरामद
Mainpuri में युवती की हत्या: करहल उपचुनाव के कारण सियासी घमासान, सपा और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप