वाराणसी में गंगा में शैवाल की समस्या को दूर करने के लिए जर्मनी की बायोरेमेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। शैवाल की समस्या को देखते हुए पहली बार नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा ने गंगाजल में इसके ट्रायल को मंजूरी दी है। वाराणसी और गाजीपुर में दो जगहों पर बायोरेमेडिएशन तकनीक का ट्रायल चल रहा है। वाराणसी में दो दिनों के ट्रायल से नदी विशेषज्ञ बेहद उत्साहित हैं। मिर्जापुर से लेकर बलिया तक गंगा में होने वाली शैवाल की समस्या को दूर करने में यह तकनीक बेहद कारगर साबित हो सकती है। गंगा में आने वाले समय में शैवाल की समस्या से निजात दिलाने के लिए जर्मन तकनीक कारगर होगी।
जैव चिकित्सा पद्धति से गंगा में शैवालों का इलाज किया जाएगा। नमामि गंगे के तकनीकी परियोजना अधिकारी नीरज गहलावत ने बताया कि गंगा में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। वाराणसी में फास्ट ट्रायल के लिए दशाश्वमेध घाट को चुना गया था और दो दिनों तक हुए केमिकल छिड़काव के बाद गंगाजल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।शैवाल तेजी से समाप्त हो गए। वहीं गाजीपुर में पक्का पुल के पास डेढ़ किलोमीटर गंगा का क्षेत्र ट्रायल के लिए चुना गया है। इसमें 27 मई से 27 जून तक बायोरेमेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल करके आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। गंगा में बायोरेमेडिएशन तकनीक का लंबे समय तक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए गाजीपुर को चुना गया है। वाराणसी की रिपोर्ट को एनएमसीजी को सौंपी जाएगी और उसके आधार पर ही तकनीक के इस्तेमाल का निर्णय लिया जाएगा।
दशाश्वमेध घाट पर गंगा में साढ़े सात किलोग्राम बायोरेमीडिएशन का छिड़काव किया गया।
इससे गंगा का पानी तेजी से साफ हो रहा है। इसकी मात्रा एक हजार लीटर पानी में ढाई किलोग्राम लगती है। तकनीकी अधिकारी ने बताया कि 2019 के कुंभ में प्रयागराज में कई सारे कुंड व नालों का पानी शोधित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अभी तक इसका कोई भी नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है। गंगा स्नान से किसी व्यक्ति को भी स्वास्थ्य सबंधी समस्या नहीं होगी।
नमामि गंगे के प्रवक्ता ने बताया कि गंगा निर्मलीकरण के लिए जितने भी एसटीपी बने हैं सभी की निगरानी दिल्ली से ऑनलाइन हो रही है। वर्तमान में 50 एमएलडी शोधन क्षमता का एसटीपी रमना का ट्रायल हो रहा है। नगवां नाला से करीब 17 एमएलडी मलजल एसटीपी तक जा रहा है। इसी प्रकार 10 एमएलडी शोधन क्षमता के एसटीपी रामनगर का भी ट्रायल किया जा रहा है। असि नदी से रोजाना सात करोड़ लीटर सीवेज ट्रीटमेंट के लिए रमना एसटीपी भेजा जा रहा है।
वाराणसी में गंगा में शैवाल की समस्या को दूर करने के लिए जर्मनी की बायोरेमेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। शैवाल की समस्या को देखते हुए पहली बार नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा ने गंगाजल में इसके ट्रायल को मंजूरी दी है। वाराणसी और गाजीपुर में दो जगहों पर बायोरेमेडिएशन तकनीक का ट्रायल चल रहा है। वाराणसी में दो दिनों के ट्रायल से नदी विशेषज्ञ बेहद उत्साहित हैं। मिर्जापुर से लेकर बलिया तक गंगा में होने वाली शैवाल की समस्या को दूर करने में यह तकनीक बेहद कारगर साबित हो सकती है।
गंगा में आने वाले समय में शैवाल की समस्या से निजात दिलाने के लिए जर्मन तकनीक कारगर होगी। जैव चिकित्सा पद्धति से गंगा में शैवालों का इलाज किया जाएगा। नमामि गंगे के तकनीकी परियोजना अधिकारी नीरज गहलावत ने बताया कि गंगा में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। वाराणसी में फास्ट ट्रायल के लिए दशाश्वमेध घाट को चुना गया था और दो दिनों तक हुए केमिकल छिड़काव के बाद गंगाजल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
शैवाल तेजी से समाप्त हो गए। वहीं गाजीपुर में पक्का पुल के पास डेढ़ किलोमीटर गंगा का क्षेत्र ट्रायल के लिए चुना गया है। इसमें 27 मई से 27 जून तक बायोरेमेडिएशन तकनीक का इस्तेमाल करके आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। गंगा में बायोरेमेडिएशन तकनीक का लंबे समय तक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए गाजीपुर को चुना गया है। वाराणसी की रिपोर्ट को एनएमसीजी को सौंपी जाएगी और उसके आधार पर ही तकनीक के इस्तेमाल का निर्णय लिया जाएगा।
दशाश्वमेध घाट पर गंगा में साढ़े सात किलोग्राम बायोरेमीडिएशन का छिड़काव किया गया। इससे गंगा का पानी तेजी से साफ हो रहा है। इसकी मात्रा एक हजार लीटर पानी में ढाई किलोग्राम लगती है। तकनीकी अधिकारी ने बताया कि 2019 के कुंभ में प्रयागराज में कई सारे कुंड व नालों का पानी शोधित करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अभी तक इसका कोई भी नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है। गंगा स्नान से किसी व्यक्ति को भी स्वास्थ्य सबंधी समस्या नहीं होगी।
नमामि गंगे के प्रवक्ता ने बताया कि गंगा निर्मलीकरण के लिए जितने भी एसटीपी बने हैं सभी की निगरानी दिल्ली से ऑनलाइन हो रही है। वर्तमान में 50 एमएलडी शोधन क्षमता का एसटीपी रमना का ट्रायल हो रहा है। नगवां नाला से करीब 17 एमएलडी मलजल एसटीपी तक जा रहा है। इसी प्रकार 10 एमएलडी शोधन क्षमता के एसटीपी रामनगर का भी ट्रायल किया जा रहा है। असि नदी से रोजाना सात करोड़ लीटर सीवेज ट्रीटमेंट के लिए रमना एसटीपी भेजा जा रहा है।
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