पर्यावरण संरक्षण की दिशा में 34 ट्रेनों को एचओजी युक्त कर चला रहा है पूर्वोत्तर रेलवे रेल मंत्रालय के तय समय 2023 से पहले ही पूर्वोत्तर रेलवे अपनी सभी ट्रेनों को कर लेगा विद्युतीकृत
जब प्रदूषण का जिक्र आता है तो हमारे सामने कुछ चित्र उभरने लगते हैं जैसे वाहनों से निकलता धुंआ या फिर ट्रेन के डीजल इंजन से निकलता हुआ। पर तेज यातायात व्यवस्था के बिना किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं। ऐसे में जो यातायात के साधन देश की तरक्की के लिए उपयोग हो रहे हैं वो पर्यावरण मित्रवत हों इसका ध्यान भी जरुरी है। इस दिशा में भारतीय रेल ने सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की है।
पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जन संपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि पर्यावरण हित में रेल मंत्रालय ने सभी बड़ी लाइनों (ब्रॉडगेज) को विद्युतीकृत करने का निर्णय लिया। अब मिशन मोड में कार्य करते हुए ‘भारतीय रेल’ दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेल बनने की ओर अग्रसर है।
उन्होंने बताया कि 2030 तक ‘ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक’ बनाने का लक्ष्य निर्धारित है। भारतीय रेल के इस महत्वाकांक्षी कदम को सफल बनाने के लिए कभी ‘छोटी लाइन’ (मीटर गेज) के नाम से प्रसिद्ध पूर्वोत्तर रेलवे का 2014-15 के पूर्व मात्र 24 किमी रेल खंड ही विद्युतीकृत हो पाया था। वहाँ वर्तमान में 2287 किमी रेल खंड को विद्युतीकृत कर लिया गया है जोकि पूर्वोत्तर रेलवे पर अवस्थित कुल बड़ी लाइन (रूट किमी) का 73 प्रतिशत है।
सभी प्रमुख रेल मार्गों पर दौड़ रही हैं इलेक्ट्रिक ट्रेनें
पंकज ने बताया कि विगत दो वित्तीय वर्षों, 2019-20 एवं 2020-21, में पूर्वोत्तर रेलवे विद्युतीकरण कार्य में संपूर्ण भारतीय रेल पर द्वितीय स्थान पर रही, जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख रेल मार्गों पर इलेक्ट्रिक ट्रेनें आज दौड़ रही हैं।
बताया कि पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए रेलवे हर स्तर पर प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में एक ‘हेड ऑन जेनरेशन’(एचओजी)व्यवस्था है। इसके अंतर्गत कोचों में बिजली की सप्लाई, ओवरहेड इक्विप्मेंट से इलेक्ट्रिक लोकमोटिव के माध्यम से की जा रही है। फलस्वरूप डीजल से चलने वाले पावर कार की उपयोगिता खत्म हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे से कुल 34 ट्रेनों को एचओजी युक्त कर चलाया जा रहा है। गत वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग रु 21 करोड़ के ईंधन की बचत हुई है।
यहां बता दें कि रेलवे बोर्ड ने भारतीय रेल की सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य दिसंबर 2023 तय किया हुआ है, जिसे पूर्वोत्तर रेलवे समय से प्राप्त कर लेगा।
‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत भारतीय रेल ने लगभग सभी ट्रेनों में बायो-टॉयलेट लगाए हैं। यही कारण है कि अब कोचों से गंदगी (मल-मूत्र) पटरियों पर नहीं गिरता। इस प्रयास से रेल की पटरियों पर प्रतिदिन गिरने वाले 2 लाख 74 हजार लीटर गंदगी को रोका जा सका है।
बायो-टॉयलेट से प्रयोग से पटरियों एवं उनकी फिटिंग के क्षरण पर लगभग रु 400 करोड़ की प्रतिवर्ष बचत
जहां इससे पर्यावरण सुरक्षित हुआ है वहीं इस गंदगी से पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण भी रुका है। पूर्वोत्तर रेलवे पर 3355 कोचों में बायो-टॉयलेट लगाया गया है। शेष 14 डबल डेकर कोच में से पांच कोचों में बायो-टॉयलेट लगा दिए गए हैं या कार्य प्रगति पर है। उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण रुकने से संपूर्ण भारतीय रेल पर लगभग रु 400 करोड़ की प्रतिवर्ष बचत हो रही है।स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत ही पूर्वोत्तर रेलवे वर्ष 2020-21 में रिकार्ड स्क्रैप निस्तारण कर संपूर्ण भारतीय रेल पर प्रथम स्थान पर रहा।
अकेले सौर ऊर्जा से रेलवे को मिल रहे एक करोड़
पूर्वोत्तर रेलवे ने ऊर्जा संरक्षण और जल संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। ऊर्जा संरक्षण की दिशा में पूर्वोत्तर रेलवे के कार्यालय भवनों एवं स्टेशनों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाए गए हैं। इनसे लगभग 25 लाख यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। फलस्वरूप लगभग रु एक करोड़ की बचत हुई है। जल संरक्षण की दिशा में ऐसे सभी भवन जहां छत का क्षेत्रफल 200 वर्ग मीटर से ज्यादा है वहां ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ लगाए जा रहे हैं। रेलवे के ज्यादातर भवनों में यह व्यवस्था पहले ही क्रियाशील है।
तीनों मंडलों में रेलपथ के किनारे तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी बढ़ा रहीं शोभा
पूर्वोत्तर रेलवे हर वर्ष वृक्षरोपण का कार्यक्रम योजनाबद्ध तरीके से करता है। वर्ष 2020-21 में कुल नौ लाख पौधे लगाए गए हैं। इस वर्ष भी 8 लाख पौधों को लगाए जाने का लक्ष्य निर्धारित है, जिसका शुभारंभ 5 जून यानि आज पर्यावरण दिवस से हुआ है। इस क्रम में रेलवे के कार्यालयों एवं कॉलोनियों से बड़ी संख्या में पौधरोपण किया गया है। रेलवे के सरकारी आवासों में रहने वाले रेलकर्मी स्वयं अपने आवासों में पौधरोपण को लेकर उत्सुक रहते हैं। नवप्रयोग के तौर पर पौधे के साथ उसे लगाने वाले अधिकारी/कर्मचारी की नेम प्लेट भी अब लगाई जाने लगी है। पूर्वोत्तर रेलवे के तीनों मंडलों में रेलपथ के किनारे खाली पड़ी भूमि पर तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी विकसित की गई हैं।
जब प्रदूषण का जिक्र आता है तो हमारे सामने कुछ चित्र उभरने लगते हैं जैसे वाहनों से निकलता धुंआ या फिर ट्रेन के डीजल इंजन से निकलता हुआ। पर तेज यातायात व्यवस्था के बिना किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं। ऐसे में जो यातायात के साधन देश की तरक्की के लिए उपयोग हो रहे हैं वो पर्यावरण मित्रवत हों इसका ध्यान भी जरुरी है। इस दिशा में भारतीय रेल ने सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की है।
पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जन संपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि पर्यावरण हित में रेल मंत्रालय ने सभी बड़ी लाइनों (ब्रॉडगेज) को विद्युतीकृत करने का निर्णय लिया। अब मिशन मोड में कार्य करते हुए ‘भारतीय रेल’ दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेल बनने की ओर अग्रसर है।
उन्होंने बताया कि 2030 तक ‘ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक’ बनाने का लक्ष्य निर्धारित है। भारतीय रेल के इस महत्वाकांक्षी कदम को सफल बनाने के लिए कभी ‘छोटी लाइन’ (मीटर गेज) के नाम से प्रसिद्ध पूर्वोत्तर रेलवे का 2014-15 के पूर्व मात्र 24 किमी रेल खंड ही विद्युतीकृत हो पाया था। वहाँ वर्तमान में 2287 किमी रेल खंड को विद्युतीकृत कर लिया गया है जोकि पूर्वोत्तर रेलवे पर अवस्थित कुल बड़ी लाइन (रूट किमी) का 73 प्रतिशत है।
सभी प्रमुख रेल मार्गों पर दौड़ रही हैं इलेक्ट्रिक ट्रेनें
पंकज ने बताया कि विगत दो वित्तीय वर्षों, 2019-20 एवं 2020-21, में पूर्वोत्तर रेलवे विद्युतीकरण कार्य में संपूर्ण भारतीय रेल पर द्वितीय स्थान पर रही, जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख रेल मार्गों पर इलेक्ट्रिक ट्रेनें आज दौड़ रही हैं।
बताया कि पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए रेलवे हर स्तर पर प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में एक ‘हेड ऑन जेनरेशन’(एचओजी)व्यवस्था है। इसके अंतर्गत कोचों में बिजली की सप्लाई, ओवरहेड इक्विप्मेंट से इलेक्ट्रिक लोकमोटिव के माध्यम से की जा रही है। फलस्वरूप डीजल से चलने वाले पावर कार की उपयोगिता खत्म हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे से कुल 34 ट्रेनों को एचओजी युक्त कर चलाया जा रहा है। गत वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग रु 21 करोड़ के ईंधन की बचत हुई है।
यहां बता दें कि रेलवे बोर्ड ने भारतीय रेल की सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य दिसंबर 2023 तय किया हुआ है, जिसे पूर्वोत्तर रेलवे समय से प्राप्त कर लेगा।
‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत भारतीय रेल ने लगभग सभी ट्रेनों में बायो-टॉयलेट लगाए हैं। यही कारण है कि अब कोचों से गंदगी (मल-मूत्र) पटरियों पर नहीं गिरता। इस प्रयास से रेल की पटरियों पर प्रतिदिन गिरने वाले 2 लाख 74 हजार लीटर गंदगी को रोका जा सका है।
बायो-टॉयलेट से प्रयोग से पटरियों एवं उनकी फिटिंग के क्षरण पर लगभग रु 400 करोड़ की प्रतिवर्ष बचत
जहां इससे पर्यावरण सुरक्षित हुआ है वहीं इस गंदगी से पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण भी रुका है। पूर्वोत्तर रेलवे पर 3355 कोचों में बायो-टॉयलेट लगाया गया है। शेष 14 डबल डेकर कोच में से पांच कोचों में बायो-टॉयलेट लगा दिए गए हैं या कार्य प्रगति पर है।
उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक, पटरियों एवं उनकी फिटिंग का क्षरण रुकने से संपूर्ण भारतीय रेल पर लगभग रु 400 करोड़ की प्रतिवर्ष बचत हो रही है।
स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत ही पूर्वोत्तर रेलवे वर्ष 2020-21 में रिकार्ड स्क्रैप निस्तारण कर संपूर्ण भारतीय रेल पर प्रथम स्थान पर रहा।
अकेले सौर ऊर्जा से रेलवे को मिल रहे एक करोड़
पूर्वोत्तर रेलवे ने ऊर्जा संरक्षण और जल संरक्षण की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। ऊर्जा संरक्षण की दिशा में पूर्वोत्तर रेलवे के कार्यालय भवनों एवं स्टेशनों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगाए गए हैं। इनसे लगभग 25 लाख यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। फलस्वरूप लगभग रु एक करोड़ की बचत हुई है।
जल संरक्षण की दिशा में ऐसे सभी भवन जहां छत का क्षेत्रफल 200 वर्ग मीटर से ज्यादा है वहां ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ लगाए जा रहे हैं। रेलवे के ज्यादातर भवनों में यह व्यवस्था पहले ही क्रियाशील है।
तीनों मंडलों में रेलपथ के किनारे तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी बढ़ा रहीं शोभा
पूर्वोत्तर रेलवे हर वर्ष वृक्षरोपण का कार्यक्रम योजनाबद्ध तरीके से करता है। वर्ष 2020-21 में कुल नौ लाख पौधे लगाए गए हैं। इस वर्ष भी 8 लाख पौधों को लगाए जाने का लक्ष्य निर्धारित है, जिसका शुभारंभ 5 जून यानि आज पर्यावरण दिवस से हुआ है। इस क्रम में रेलवे के कार्यालयों एवं कॉलोनियों से बड़ी संख्या में पौधरोपण किया गया है। रेलवे के सरकारी आवासों में रहने वाले रेलकर्मी स्वयं अपने आवासों में पौधरोपण को लेकर उत्सुक रहते हैं। नवप्रयोग के तौर पर पौधे के साथ उसे लगाने वाले अधिकारी/कर्मचारी की नेम प्लेट भी अब लगाई जाने लगी है। पूर्वोत्तर रेलवे के तीनों मंडलों में रेलपथ के किनारे खाली पड़ी भूमि पर तीन-तीन ग्रीन नर्सरियाँ भी विकसित की गई हैं।
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