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मोहम्मदी से भागे अंग्रेज तो क्रांतिकारियों ने रास्ते में कर दी उनकी हत्या

1857 की क्रांति की चिंगारी शाहजहांपुर होते हुए खीरी जनपद में पहुंची थी। आज इसका जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि चार जून को ही क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अफसरों को यहां से भागने पर मजबूर किया और पांच जून को बरवर से सीतापुर के रास्ते में उनकी हत्या कर दी थी। स्वाधीनता संग्राम में खीरी जनपद विषय पर शोध करने वाले 75 वर्षीय डॉ. रामपाल सिंह बताते हैं कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वक्त वर्तमान जनपद का समस्त भू भाग अवध के नवाबी शासन के तहत जनपद मल्लापुर, मोहम्मदी व खैरीगढ़ से लेकर खुटार तक रुहेलखंड संभाग में शामिल था। इस क्षेत्र में क्रांतिकारियों ने जब शाहजहांपुर पर अपना अधिकार जमा लिया तो अंग्रेज किला छोड़कर भाग गए। यह खबर सुनते ही मोहम्मदी के किले में रहने वाले अंग्रेज अधिकारियों ने अपनी बीवियों और बच्चों को मितौली के राजा लोने सिंह के पास भेज दिया। मोहम्मदी जिले के किले में रहने वाले अंग्रेज अफसरों को लगा कि उनके पत्नी व बच्चे सुरक्षित हैं तो उन्होने एक लाख 10 हजार रुपयों का खजाना भी मोहम्मदी से मितौली भिजवाया। लेकिन 1 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने उसे रास्ते में ही लूट लिया, जिसके बाद भयभीत अंग्रेज आज ही के दिन 4 जून को मोहम्मदी से भाग कर सीतापुर की ओर रवाना हुए। पहली रात उन्होने बरबर में गुजारी। 5 जून की सुबह जब वह बरबर से सीतापुर की ओर चले तो क्रांतिकारियों ने औरंगाबाद के पास सभी अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।मारे गए इन अंग्रेजों के नाम औरंगाबाद से ढाई किलोमीटर दूर बने स्मृति स्तंभ पर अंकित हैं। बाद में डर के मारे कई अंग्रेजों ने राजा लोने सिंह के यहां शरण ली और उन्होंने सभी को कचियानी भेज दिया। यहां उनका भांजा रहता था। लेकिन बाद में राजा लोने सिंह ने सभी अंग्रेजों को बेड़ियों में जकड़कर सेना की टुकड़ी के साथ नंगे पैर ही लखनऊ भेजकर कैसरबाग में संरक्षित कर दिया। डॉक्टर रामपाल सिंह बताते हैं कि 17 अक्टूबर 1858 को शाहजहांपुर से ब्रिगेडियर कॉलिन सेना लेकर मोहम्मदी की ओर बढ़ा और पसगवां पहुंचा। संघर्ष के बाद 8 नवंबर 1858 को मितौली पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया।

1857 की क्रांति की चिंगारी शाहजहांपुर होते हुए खीरी जनपद में पहुंची थी। आज इसका जिक्र इसलिए भी जरूरी है कि चार जून को ही क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अफसरों को यहां से भागने पर मजबूर किया और पांच जून को बरवर से सीतापुर के रास्ते में उनकी हत्या कर दी थी।

स्वाधीनता संग्राम में खीरी जनपद विषय पर शोध करने वाले 75 वर्षीय डॉ. रामपाल सिंह बताते हैं कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वक्त वर्तमान जनपद का समस्त भू भाग अवध के नवाबी शासन के तहत जनपद मल्लापुर, मोहम्मदी व खैरीगढ़ से लेकर खुटार तक रुहेलखंड संभाग में शामिल था। इस क्षेत्र में क्रांतिकारियों ने जब शाहजहांपुर पर अपना अधिकार जमा लिया तो अंग्रेज किला छोड़कर भाग गए। यह खबर सुनते ही मोहम्मदी के किले में रहने वाले अंग्रेज अधिकारियों ने अपनी बीवियों और बच्चों को मितौली के राजा लोने सिंह के पास भेज दिया। मोहम्मदी जिले के किले में रहने वाले अंग्रेज अफसरों को लगा कि उनके पत्नी व बच्चे सुरक्षित हैं तो उन्होने एक लाख 10 हजार रुपयों का खजाना भी मोहम्मदी से मितौली भिजवाया। लेकिन 1 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने उसे रास्ते में ही लूट लिया, जिसके बाद भयभीत अंग्रेज आज ही के दिन 4 जून को मोहम्मदी से भाग कर सीतापुर की ओर रवाना हुए। पहली रात उन्होने बरबर में गुजारी। 5 जून की सुबह जब वह बरबर से सीतापुर की ओर चले तो क्रांतिकारियों ने औरंगाबाद के पास सभी अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।

मारे गए इन अंग्रेजों के नाम औरंगाबाद से ढाई किलोमीटर दूर बने स्मृति स्तंभ पर अंकित हैं। बाद में डर के मारे कई अंग्रेजों ने राजा लोने सिंह के यहां शरण ली और उन्होंने सभी को कचियानी भेज दिया। यहां उनका भांजा रहता था। लेकिन बाद में राजा लोने सिंह ने सभी अंग्रेजों को बेड़ियों में जकड़कर सेना की टुकड़ी के साथ नंगे पैर ही लखनऊ भेजकर कैसरबाग में संरक्षित कर दिया। डॉक्टर रामपाल सिंह बताते हैं कि 17 अक्टूबर 1858 को शाहजहांपुर से ब्रिगेडियर कॉलिन सेना लेकर मोहम्मदी की ओर बढ़ा और पसगवां पहुंचा। संघर्ष के बाद 8 नवंबर 1858 को मितौली पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया।