मथुरायूपी के मथुरा में 2 जून 2016 का वो मनहूस दिन आज भी जब लोग याद करते हैं, तो रूह कांप उठती है। दहशत के करीब 12 घंटों ने कृष्ण नगरी मथुरा के दामन पर बदनुमा दाग लगा दिया। गोलियां की तड़तड़ाहट से भले ही जवाहर बाग गूंज रहा था, लेकिन इस कांड ने तत्कालीन अखिलेश सरकार की जड़ों को हिलाकर रख दिया था। उत्तर प्रदेश के मथुरा के जवाहर बाग कांड को आज पांच वर्ष पूरे हो चुके हैं।जवाहर बाग कांड के वो खौफनाक 12 घंटे में दो पुलिस अधिकारियों सहित 24 लोगों की जान गई थी। मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव के जिंदा या मुर्दा होने का आज तक कोई सबूत नहीं मिला। प्रशासन से रामवृक्ष यादव के परिजनों ने जिंदा या मुर्दा होने के सबूत भी मांगे थे। खूब हुई राजनीतिमथुरा को भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कही जाती है, लेकिन 2 जून 2016 को ऐसा खौफनाक मंजर दिखाई दिया, जो पूरे उत्तर प्रदेश में उस समय चर्चा का विषय बना रहा। मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री इस घटना पर कड़ी नजर बनाए हुए थे।
उस समय सत्ता में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और केंद्र में बीजेपी की सरकार थी। जवाहर बाग मुद्दे को लेकर जमकर राजनीति हुई। सत्ता पक्ष के मंत्री का भी आया था नामप्रदेश की सत्ता पक्ष के एक मंत्री का नाम उस मामले में खूब उछला। रामवृक्ष यादव कहा गया, इसके कोई पुख्ता सबूत आज तक नहीं मिले हैं। हालंकि, पुलिस ने दावा किया कि राम वृक्ष यादव को मुठभेड़ में मार गिराया गया। पुलिस के इस दावे के बाद भी तमाम तरह की चर्चाएं रामवृक्ष यादव के जीवित और मृत होने को लेकर चलती रही हैं।पार्क में प्रवेश करते ही पुलिस पर की थी फायरिंग270 एकड़ में फैले पार्क को उपद्रवियों से खाली कराने के लिए पुलिस ने बड़े स्तर पर एक ऑपरेशन शुरू किया था। पुलिस ने जवाहर बाग कॉलोनी के पीछे से पार्क की दीवार को तोड़कर प्रवेश किया तो रामवृक्ष यादव के गुर्गों ने पुलिस पर ताबड़तोड़ फायर कर दिए। फायरिंग होते देख पुलिस फोर्स में भगदड़ मच गई और पुलिस पार्टी को लीड कर रहे पूर्व थाना प्रभारी फरह संतोष यादव और पूर्व एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को गोली लगी। …वो 12 घंटेगोली लगने के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था। आनन-फानन में दोनों अधिकारियों को हॉस्पिटल ले जाया गया था। उपचार के दौरान दोनों अधिकारियों ने दम तोड़ दिया था। जवाहर बाग पार्क को खाली कराने के लिए तकरीबन 12 घंटे पुलिस द्वारा ऑपरेशन चलाया गया। इन 12 घंटों में वह खौफनाक मंजर देखने को मिले, जिसे आज भी मथुरावासी अगर सोचते हैं तो रूह कांप जाती है।
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