पिछले हफ्ते में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होने की रफ्तार 25 फीसदी और बढ़ीस्वास्थ्य विभाग के अफसर कर रहे हैं पांच महीनों में सौ मौत होने का दावानिगम मई के तीन हफ्तों में ही जारी कर चुका है 2013 मृत्यु प्रमाण पत्र
बरेली। स्वास्थ्य विभाग के अफसर कोरोना से होने वाली मौतों का हिसाब नहीं रख पाए या फिर उन्होंने इन पर जानबूझकर पर्दा डाल दिया। नगर निगम से जारी हो रहे मृत्यु प्रमाण पत्रों की रफ्तार यह सवाल खड़ा कर रही है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि जनवरी से अब तक कोरोना से लगभग सौ मौतें ही हुईं हैं लेकिन नगर निगम मई के तीन हफ्तों में ही दो हजार से ज्यादा मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर चुका है। पिछले एक सप्ताह में यह रफ्तार करीब 25 फीसदी और तेज हुई है। चूंकि पिछले साल मई के पूरे महीने में यह संख्या सिर्फ 402 थी लिहाजा सवाल उठ रहा है कि पांच गुना से भी ज्यादा मौतें कोरोना से नहीं हुईं तो कैसे हुईं।स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी के सामने जिला प्रशासन की ओर से यह दावा किया जा चुका है कि कोरोना से बरेली में दूसरे जिलों की तुलना में कम मौतें हुई हैं लेकिन नगर निगम के आंकड़े कुछ और ही बता रहे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 18 मई तक नगर निगम से 1423 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए थे। यानी औसत एक दिन में 80 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होने का था लेकिन 14 मई के बाद यह रफ्तार और तेज होने लगी। 19 से 24 मई के बीच छह दिनों में 590 मृत्यु प्रमाण पत्र और जारी हो गए। यानी इस बीच हर दिन करीब सौ प्रमाण पत्र जारी हुए। नगर निगम में अब भी 50 से ज्यादा आवेदन लंबित हैं। इस हिसाब से यह आंकड़ा और भी ज्यादा दहलाने वाला हो जाता है। नगर निगम के लिपिक मुकेश खन्ना के मुताबिक 590 मृत्यु प्रमाण पत्रों में 361 पुरुष और 290 महिलाओं के हैं।
इन आंकड़ों में करें तलाश… कहां है बेनाम मौतों का कब्रिस्तान
स्वास्थ्य विभाग कोरोना से सौ लोगों की मौत की अवधि जनवरी से अब तक की बता रहा है, नगर निगम की ओर से जनवरी से मई तक जारी हुए मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या जोड़ी जाए तो यह अंतर कई गुना और बड़ा हो जाता है। इस अवधि में नगर निगम से कुल 5613 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए हैं जो पिछले साल के मुकाबले करीब तीन हजार ज्यादा है। अगर नगर निगम से जारी प्रमाण पत्रों के ही आधार पर शहर में मृत्यु दर का आकलन किया जाए तो इस साल अप्रैल में मृत्यु दर पिछले साल के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा और मई में करीब छह गुना तक पहुंच गई। बड़ा सवाल यह है कि अगर मृत्यु दर कोरोना की वजह से नहीं बढ़ी तो इतनी मौतों की वजह और क्या थी और स्वास्थ्य विभाग ने इन मौतों का कारण तलाश करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की।
मासूमियत : उठे सवाल तो निजी अस्पतालों को बता दिया जिम्मेदार
इस बात पर भी ताज्जुब किया जा सकता है कि जब कोरोना से लगातार मौतें हो रही थीं तब स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को निजी कोविड अस्पतालों में हो रही मौतों की जानकारी लेने का भी ख्याल नहीं आया। पिछले दिनों सीएमओ ने शासन के डेथ ऑडिट का हवाला देते हुए निजी कोविड अस्पतालों को कोरोना संक्रमितों की मौतें छिपाने का जिम्मेदार बताया था और उनसे इस बारे में फौरन जानकारी देने को कहा था। हालांकि इसके बावजूद कोई खास नतीजा नहीं निकला। बता दें कि अस्पतालों को पहले से निर्देश थे कि पोर्टल पर कोरोना संक्रमितों की मौतों के बारे में फौरन अपडेट किया जाए। सवाल उठता है कि अगर अस्पताल मौतों की संख्या अपडेट नहीं कर रहे थे तो स्वास्थ्य विभाग इस पर फौरन एक्शन में क्यों नहीं आया। खासतौर पर तब स्वास्थ्य विभाग में एक वरिष्ठ अफसर की तैनाती ही इसी काम के लिए की गई थी।
अस्पताल अब भी छिपा रहे मौत के आंकड़े
हाल में शासन ने जन्म और मृत्यु का ऑडिट कराया था। इसमें यह बात सामने आई थी कि मौतों के आंकड़ों को छिपाने का खेल किया गया है। सिविल रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर मौतों की वजह भी छिपाई गई और असली संख्या भी नहीं बताई गई। इस पर सीएमओ ने ऐसे अस्पतालों को नोटिस भी भेजा था। इधर, फिर स्वास्थ्य विभाग के पास मौतों के आंकड़े घट गए हैं, लेकिन नगर निगम में मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए लाइन लगी हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या फिर अस्पताल मौतों के आंकड़े छिपा रहे हैं।
सामान्य मरीजों की जान चली गई, गंभीर बच गए
स्वास्थ्य विभाग के ही आंकड़ों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सबसे ज्यादा करीब 50 फीसदी मौतें तीन सौ बेड के सरकारी कोविड अस्पताल में हुईं जबकि जिले में कुल मिलाकर करीब 20 कोविड अस्पताल हैं। दिलचस्प यह है कि तीन सौ बेड कोविड अस्पताल में सिर्फ उन्हीं मरीजों को भर्ती किया जा रहा था जिनका ऑक्सीजन स्तर 85 से ऊपर था। ऐसे गंभीर मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा जा रहा था जिनका ऑक्सीजन स्तर इससे कम था। स्वास्थ्य विभाग का रिकॉर्ड बताता है कि गंभीर मरीजों को भर्ती करने वाले निजी कोविड अस्पतालों में सरकारी अस्पताल के मुकाबले काफी कम मौतें हुईं।
नगर निगम में 21 दिन में ही करना होता है आवेदन
मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नगर निगम में किसी भी मृत्यु के बाद 21 दिन के अंदर ही आवेदन करना होता है। इस समयावधि के बाद आवेदन करने पर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया बदल जाती है। चूंकि नगर निगम ने हाल में जो प्रमाण पत्र जारी किए हैं, उनमें ऐसा कोई आवेदन नहीं है लिहाजा यह भी साफ है कि जो मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए हैं, वे ज्यादा पुरानी मौतों के नहीं हैं।
स्वास्थ्य विभाग के अफसर कर रहे हैं पांच महीनों में सौ मौत होने का दावा
निगम मई के तीन हफ्तों में ही जारी कर चुका है 2013 मृत्यु प्रमाण पत्र
बरेली। स्वास्थ्य विभाग के अफसर कोरोना से होने वाली मौतों का हिसाब नहीं रख पाए या फिर उन्होंने इन पर जानबूझकर पर्दा डाल दिया। नगर निगम से जारी हो रहे मृत्यु प्रमाण पत्रों की रफ्तार यह सवाल खड़ा कर रही है। स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि जनवरी से अब तक कोरोना से लगभग सौ मौतें ही हुईं हैं लेकिन नगर निगम मई के तीन हफ्तों में ही दो हजार से ज्यादा मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर चुका है। पिछले एक सप्ताह में यह रफ्तार करीब 25 फीसदी और तेज हुई है। चूंकि पिछले साल मई के पूरे महीने में यह संख्या सिर्फ 402 थी लिहाजा सवाल उठ रहा है कि पांच गुना से भी ज्यादा मौतें कोरोना से नहीं हुईं तो कैसे हुईं।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी के सामने जिला प्रशासन की ओर से यह दावा किया जा चुका है कि कोरोना से बरेली में दूसरे जिलों की तुलना में कम मौतें हुई हैं लेकिन नगर निगम के आंकड़े कुछ और ही बता रहे हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 18 मई तक नगर निगम से 1423 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए थे। यानी औसत एक दिन में 80 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होने का था लेकिन 14 मई के बाद यह रफ्तार और तेज होने लगी। 19 से 24 मई के बीच छह दिनों में 590 मृत्यु प्रमाण पत्र और जारी हो गए। यानी इस बीच हर दिन करीब सौ प्रमाण पत्र जारी हुए। नगर निगम में अब भी 50 से ज्यादा आवेदन लंबित हैं। इस हिसाब से यह आंकड़ा और भी ज्यादा दहलाने वाला हो जाता है। नगर निगम के लिपिक मुकेश खन्ना के मुताबिक 590 मृत्यु प्रमाण पत्रों में 361 पुरुष और 290 महिलाओं के हैं।
इन आंकड़ों में करें तलाश… कहां है बेनाम मौतों का कब्रिस्तान
स्वास्थ्य विभाग कोरोना से सौ लोगों की मौत की अवधि जनवरी से अब तक की बता रहा है, नगर निगम की ओर से जनवरी से मई तक जारी हुए मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या जोड़ी जाए तो यह अंतर कई गुना और बड़ा हो जाता है। इस अवधि में नगर निगम से कुल 5613 मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुए हैं जो पिछले साल के मुकाबले करीब तीन हजार ज्यादा है। अगर नगर निगम से जारी प्रमाण पत्रों के ही आधार पर शहर में मृत्यु दर का आकलन किया जाए तो इस साल अप्रैल में मृत्यु दर पिछले साल के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा और मई में करीब छह गुना तक पहुंच गई। बड़ा सवाल यह है कि अगर मृत्यु दर कोरोना की वजह से नहीं बढ़ी तो इतनी मौतों की वजह और क्या थी और स्वास्थ्य विभाग ने इन मौतों का कारण तलाश करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की।
मासूमियत : उठे सवाल तो निजी अस्पतालों को बता दिया जिम्मेदार
इस बात पर भी ताज्जुब किया जा सकता है कि जब कोरोना से लगातार मौतें हो रही थीं तब स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को निजी कोविड अस्पतालों में हो रही मौतों की जानकारी लेने का भी ख्याल नहीं आया। पिछले दिनों सीएमओ ने शासन के डेथ ऑडिट का हवाला देते हुए निजी कोविड अस्पतालों को कोरोना संक्रमितों की मौतें छिपाने का जिम्मेदार बताया था और उनसे इस बारे में फौरन जानकारी देने को कहा था। हालांकि इसके बावजूद कोई खास नतीजा नहीं निकला। बता दें कि अस्पतालों को पहले से निर्देश थे कि पोर्टल पर कोरोना संक्रमितों की मौतों के बारे में फौरन अपडेट किया जाए। सवाल उठता है कि अगर अस्पताल मौतों की संख्या अपडेट नहीं कर रहे थे तो स्वास्थ्य विभाग इस पर फौरन एक्शन में क्यों नहीं आया। खासतौर पर तब स्वास्थ्य विभाग में एक वरिष्ठ अफसर की तैनाती ही इसी काम के लिए की गई थी।
अस्पताल अब भी छिपा रहे मौत के आंकड़े
हाल में शासन ने जन्म और मृत्यु का ऑडिट कराया था। इसमें यह बात सामने आई थी कि मौतों के आंकड़ों को छिपाने का खेल किया गया है। सिविल रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर मौतों की वजह भी छिपाई गई और असली संख्या भी नहीं बताई गई। इस पर सीएमओ ने ऐसे अस्पतालों को नोटिस भी भेजा था। इधर, फिर स्वास्थ्य विभाग के पास मौतों के आंकड़े घट गए हैं, लेकिन नगर निगम में मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए लाइन लगी हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या फिर अस्पताल मौतों के आंकड़े छिपा रहे हैं।
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