गुरु-शिष्य विवाद को लेकर सुर्खियों में आए निरंजनी अखाड़े के पास अरबों की संपत्ति है। सैकड़ों बीघे भूमि, मठों और मंदिरों के साथ ही इस अखाड़े में देश-दुनिया से जुड़े भक्तों के जरिए दान और चढ़ावा भी खूब आता है। अकूत संपदा और वैभव वाले इस अखाड़े की अब तक अरबों की जमीनें बेची जा चुकी हैं। अखाड़े से निष्कासित स्वामी आनंद गिरि बोले, मैं वर्ष 2002 में महंत नरेंद्र गिरि का शिष्य बना और 2005 में मठ बाघंबरी गद्दी से जुड़ गया। जब से मठ से जुड़ा, तब से मठ और अखाड़े की जमीनों को बेचे जाने का विरोध करता आ रहा हूं। मौजूदा समय में भी इसी का नतीजा भुगतना पड़ रहा है।बृहस्पतिवार को ‘ से बातचीत में आनंद गिरि ने दावा किया कि अखाड़े की जमीन सिर्फ प्रयागराज में ही नहीं, हर जगह बेची गई हैं। प्रयागराज के मांडा में 2019 में करोड़ों रुपये की जमीन बेच दी गई, जिसे लेकर मठ के संतों में ही विवाद छिड़ गया था। इसी तरह रायबरेली में भी कई बीघे जमीन थी, जो बेच दी गई। करछना तहसील में भरारी के बगल महुआरी गांव में भी जमीन बेची गई। बाघंबरी गद्दी की सात बीघे से अधिक जमीन भी बेच दी गई। वहीं महाराष्ट्र के कोल्हापुर की ढाई सौ बीघे से अधिक अखाड़े की भूमि में से काफी जमीन बेच दी गई है। इन बेची गई जमीनों के पैसे का कोई हिसाब नहीं है, सवाल है कि आखिर ये करोड़ों रुपये कहां गए।
कहां-कहां निरंजनी की जमीन, मठ, मंदिर
प्रयागराज से लेकर हरिद्वार, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और नोएडा में निरंजनी अखाड़े की जमीन के अतिरिक्त मठ और मंदिर हैं। अलग-अलग जगहों की जमीन और आश्रमों के संचालन तथा देखरेख की जिम्मेदारी वहां नियुक्त महंतों, पीठाधीश्वरों के जिम्मे है। निरंजनी अखाड़े का मुख्यालय हरिद्वार में है। वहां मुख्य अखाड़े के अलावा शाखाएं भी हैं और अरबों रुपये की भूमि भी। मध्यप्रदेश के उज्जैन में निरंजनी अखाड़े की दो सौ बीघे से अधिक भूमि और मठ, मंदिर स्थित हैं। इसी तरह ओंकारेश्वर में सौ बीघा भूमि,मंदिर, मठ और धर्मशाला है। गुजरात के बड़ोदरा में धर्मशाला, आश्रम बना है। इसी जिले के करनाली में भी जमीन है। त्रयंबकेश्वर में भी अखाड़े की भूमि है। राजस्थान के माउंटआबू में भी मठ है।
गुरु-शिष्य विवाद को लेकर सुर्खियों में आए निरंजनी अखाड़े के पास अरबों की संपत्ति है। सैकड़ों बीघे भूमि, मठों और मंदिरों के साथ ही इस अखाड़े में देश-दुनिया से जुड़े भक्तों के जरिए दान और चढ़ावा भी खूब आता है। अकूत संपदा और वैभव वाले इस अखाड़े की अब तक अरबों की जमीनें बेची जा चुकी हैं। अखाड़े से निष्कासित स्वामी आनंद गिरि बोले, मैं वर्ष 2002 में महंत नरेंद्र गिरि का शिष्य बना और 2005 में मठ बाघंबरी गद्दी से जुड़ गया। जब से मठ से जुड़ा, तब से मठ और अखाड़े की जमीनों को बेचे जाने का विरोध करता आ रहा हूं। मौजूदा समय में भी इसी का नतीजा भुगतना पड़ रहा है।
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