शाहजहांपुर। नदियों में बहते शवों की चारों ओर से आती खबरों और तस्वीरों के बाद सरकार के कान खड़े हो गए। अब उन नदी घाटों पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। ताकि कोई शव प्रवाहित न करने पाए। दाह संस्कार कराने के लिए पुलिस और नगर निकायों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन जनपद की सीमा में गंगा के उत्तरी और दक्षिणी तट पर बसे तमाम गांवों में शवों का जल प्रवाह रोकना प्रशासन और पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।जनपद में बदायूं से प्रविष्ट होकर आगे फर्रुखाबाद की सीमा तक गंगा के लगभग 26 किमी बहाव के बीच दोनों तटों पर जिले के लगभग पांच दर्जन गांव बसे हुए हैं। इन गांवों के अधिकतर लोग परिवार में कोई मौत होने पर शवों का अंतिम संस्कार गंगा तट पर ही करते हैं और बहुधा दाह संस्कार के बाद अधजले शवों को नदी में बहा दिया जाता है।कहने को ढाईघाट शाहजहांपुर जिले के विकास खंड मिर्जापुर का हिस्सा है ,लेकिन घाट से तीन किमी आगे जहां अंतिम संस्कार होते हैं, वह क्षेत्र फर्रुखाबाद जनपद में आता है। चूंकि गंगा के दक्षिणी तट पर फर्रुखाबाद जिले की ओर बालू के टीले बने हुए हैं। इसलिए उधर के लोग शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए शाहजहांपुर जनपद के ढाईघाट पर पहुंचते हैं। चूंकि अब ढाईघाट पर पक्का पुल बन गया है, इसलिए बाहर से शवों को लाने में कोई कठिनाई भी नहीं होती।
ढाईघाट पर ज्यादा होते हैं शवों के अंतिम संस्कार
ढाईघाट को पुराणों में वर्णित श्रंगी ऋषि की तपोभूमि कहा जाता है। मान्यता है कि इसी घाट के गंगा तट पर उन्होंने लंबे समय तक प्रवास कर तपस्या की थी। इसीलिए घाट की पवित्रता को देखते हुए न सिर्फ जनपद बल्कि फर्रुखाबाद, हरदोई, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बरेली, एटा, इटावा, मैनपुरी आदि जिलों से भी रोजाना तमाम शव वहां अंतिम संस्कार को लाए जाते हैं। पुल बनने के बाद घाट पर शवों को लाने की संख्या भी बढ़ गई है। घाट पर बने पुल के पूर्व दिशा में गंगा के उत्तरी और दक्षिण दिशा में दोनों किनारों पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक शवदाह की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। तमाम लोग गंभीर बीमारी से ग्रस्त मृतकों के शव जलाने के बजाए गंगा में प्रवाहित कर देते हैं।
गंगा के तटवर्ती इन गांवों पर निगरानी की जरूरत
जनपद की सीमा में गंगा के 3892 वर्ग किमी कैचमेंट एरिया (जल ग्रहण क्षेत्र) में बसे मिर्जापुर क्षेत्र के पैलानी उत्तरी, आजादनगर, इस्लाम नगर, भरतपुर, कटैया नगला, पंखिया नगला, बढ़ई नगला, चौरा, बटा नगला, मौसी नगला और बांस खेड़ा तथा कलान ब्लॉक क्षेत्र में निबियापुर, गोला गंज , जहानाबाद, खमरिया, हेतम नगर, भैंसार, एतमादपुर, मुस्तफानगर, चरनोखा, रपरा, सैफरा, भगवानपुर आदि गांव बसे हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग परंपरागत रूप से शवों को गांवों की कब्रगाहों में ही दफना देते हैं ,लेकिन कई हिन्दू परिवारों के लोग शवों का दाह संस्कार नजदीकी गंगा तट पर ही करते हैं। इसलिए इन गांवों में भी जल प्रवाह की संभावित घटनाओं को रोकने के लिए सतत निगरानी की जरूरत है, जिसकी फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है।
अधिकारियों की बात
शाहजहांपुर। नदियों में बहते शवों की चारों ओर से आती खबरों और तस्वीरों के बाद सरकार के कान खड़े हो गए। अब उन नदी घाटों पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया। ताकि कोई शव प्रवाहित न करने पाए। दाह संस्कार कराने के लिए पुलिस और नगर निकायों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन जनपद की सीमा में गंगा के उत्तरी और दक्षिणी तट पर बसे तमाम गांवों में शवों का जल प्रवाह रोकना प्रशासन और पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
जनपद में बदायूं से प्रविष्ट होकर आगे फर्रुखाबाद की सीमा तक गंगा के लगभग 26 किमी बहाव के बीच दोनों तटों पर जिले के लगभग पांच दर्जन गांव बसे हुए हैं। इन गांवों के अधिकतर लोग परिवार में कोई मौत होने पर शवों का अंतिम संस्कार गंगा तट पर ही करते हैं और बहुधा दाह संस्कार के बाद अधजले शवों को नदी में बहा दिया जाता है।
कहने को ढाईघाट शाहजहांपुर जिले के विकास खंड मिर्जापुर का हिस्सा है ,लेकिन घाट से तीन किमी आगे जहां अंतिम संस्कार होते हैं, वह क्षेत्र फर्रुखाबाद जनपद में आता है। चूंकि गंगा के दक्षिणी तट पर फर्रुखाबाद जिले की ओर बालू के टीले बने हुए हैं। इसलिए उधर के लोग शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए शाहजहांपुर जनपद के ढाईघाट पर पहुंचते हैं। चूंकि अब ढाईघाट पर पक्का पुल बन गया है, इसलिए बाहर से शवों को लाने में कोई कठिनाई भी नहीं होती।
ढाईघाट पर ज्यादा होते हैं शवों के अंतिम संस्कार
ढाईघाट को पुराणों में वर्णित श्रंगी ऋषि की तपोभूमि कहा जाता है। मान्यता है कि इसी घाट के गंगा तट पर उन्होंने लंबे समय तक प्रवास कर तपस्या की थी। इसीलिए घाट की पवित्रता को देखते हुए न सिर्फ जनपद बल्कि फर्रुखाबाद, हरदोई, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, बरेली, एटा, इटावा, मैनपुरी आदि जिलों से भी रोजाना तमाम शव वहां अंतिम संस्कार को लाए जाते हैं। पुल बनने के बाद घाट पर शवों को लाने की संख्या भी बढ़ गई है। घाट पर बने पुल के पूर्व दिशा में गंगा के उत्तरी और दक्षिण दिशा में दोनों किनारों पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक शवदाह की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। तमाम लोग गंभीर बीमारी से ग्रस्त मृतकों के शव जलाने के बजाए गंगा में प्रवाहित कर देते हैं।
गंगा के तटवर्ती इन गांवों पर निगरानी की जरूरत
जनपद की सीमा में गंगा के 3892 वर्ग किमी कैचमेंट एरिया (जल ग्रहण क्षेत्र) में बसे मिर्जापुर क्षेत्र के पैलानी उत्तरी, आजादनगर, इस्लाम नगर, भरतपुर, कटैया नगला, पंखिया नगला, बढ़ई नगला, चौरा, बटा नगला, मौसी नगला और बांस खेड़ा तथा कलान ब्लॉक क्षेत्र में निबियापुर, गोला गंज , जहानाबाद, खमरिया, हेतम नगर, भैंसार, एतमादपुर, मुस्तफानगर, चरनोखा, रपरा, सैफरा, भगवानपुर आदि गांव बसे हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग परंपरागत रूप से शवों को गांवों की कब्रगाहों में ही दफना देते हैं ,लेकिन कई हिन्दू परिवारों के लोग शवों का दाह संस्कार नजदीकी गंगा तट पर ही करते हैं। इसलिए इन गांवों में भी जल प्रवाह की संभावित घटनाओं को रोकने के लिए सतत निगरानी की जरूरत है, जिसकी फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है।
अधिकारियों की बात
ढाईघाट पर शवों को दफनाने अथवा जल प्रवाह की प्रथा रोकने के लिए थाने की चीता मोबाइल टीम को निगरानी पर लगाया गया है। यदि गंगा में घाट के पास कोई शव पड़ा है तो उसे दिखवाया जाएगा और उसके अंतिम संस्कार का समुचित प्रबंध किया जाएगा। – अच्छे लाल पाल, कार्यवाहक थाना अध्यक्ष, शमशाबाद (फर्रुखाबाद)
मैंने शनिवार को स्वयं ढाईघाट का निरीक्षण किया लेकिन वहां कोई शव नदी में फंसा होने की जानकारी नहीं मिली। इसके बावजूद यदि किसी गरीब बेसहारा को परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार को लकड़ी खरीदने की दिक्कत सामने आई तो सरकार से प्रदत्त सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। अब तक गंगा में बाहर से कोई शव बहकर आने की जानकारी नहीं मिली है। – रमेश बाबू, एसडीएम, कलान
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