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शुरू किया घड़े और सुराही का काम… बन गए आत्मनिर्भर… आज पूरा परिवार कर रहा ये कार्य

पंकज मिश्रा, हमीरपुरउत्तर प्रदेश के हमीरपुर में कोरोना संक्रमण के बीच यहां एक भूमिहीन परिवार ने दस हजार से अधिक मिट्टी के आधुनिक घड़े और सुराही बनाकर एक लाख रुपये की पूंजी कमाई है। कोरोना के जहां लगातार बड़ी तादाद में नये मामले मिल रहे है तो वहीं आम लोगों ने मिट्टी के घड़े, सुराही का पानी भी पीने लगे हैं। हमीरपुर नगर के रहुनियां धर्मशाला मुहाल स्थित कालपी रोड किनारे छेदीलाल प्रजापति अब आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुके हैं। पूरा देश कोरोना की मार से त्राहि-त्राहि कर रहा है और लॉकडाउन में सब कुछ बंद है तो ऐसे में यहां इस मिट्टी के कारीगर ने कुम्हारी कला के दम पर अपने छह लोगों के संयुक्त परिवार को खुशहाली भरा जीवन दिया है। देश में आर्थिक मंदी से हर कोई प्रभावित हो रहा है तो वहीं ये परिवार आर्थिक आय के नये आयाम हासिल करने में दिन रात पसीना बहा रहा है।पहले ये कुल्हड़ और अन्य मिट्टी के खिलौने बनाते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण में मिट्टी के घड़े और सुराही की डिमांड बढ़ी तो इसने अपने पूरे परिवार के साथ इस काम में जुट गया है। भीषण गर्मी के बावजूद ये अभी तक दस हजार मिट्टी के आधुनिक घड़े और सुराही बना चुका है। इससे इन्हें सीधे तौर पर एक लाख रुपये की आमदनी हुई है। अभी भी बीस हजार के करीब घड़े और सुराही के अलावा मिट्टी के गोलक और कुल्हड़ बिकने के लिए रखे हैं। छेदीलाल प्रजापति ने बताया कि मिट्टी के घड़ों और सुराही की डिमांड अधिक बढ़ी है।लोग अपने घरों में फ्रिज का पानी नहीं पी रहे हैं। कोरोना के खौफ के कारण हर रोज उनके बनाए मिट्टी के घड़े, सुराही खरीदने लोग आते हैं। बता दें कि सरकारी योजनाओं में इसे परिवार को सिर्फ पात्र गृहस्थी का राशन कार्ड बना है, जबकि उज्जवला गैस योजना और अन्य योजनाओं के लाभ से ये वंचित हैं और तो और प्रधानमंत्री गरीब आवास योजना का भी लाभ इसे आज तक नहीं मिली है। इसका कहना है कि सरकारी मदद से मकान बनवाना ठीक नहीं है। खुद की कमाई से रहने के लिए आशियाना बनवाने में मन को शांति मिलती है, इसीलिये आज तक किसी भी कार्य के लिये सरकारी ऋण नहीं लिया गया।तपती धूम में पूरा परिवार बनाता है घड़े और सुराहीकालपी रोड पर सड़क किनारे छेदीलाल प्रजापति ने मिट्टी के घड़े और बर्तन बनाकर अपने पूरे परिवार का भरण पोषण करते हैं। इसने आज तक किसी से न तो कोई कर्जा लिया और न ही सरकारी कोई मदद ली। इसके बावजूद चाक चलाकर वह आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है। इनके दो पुत्र मेहेरदीप व आजाद दीप है। दोनों पुत्रों की शादी भी हो चुकी है। पत्नी माया भी बहुओं के साथ मिलकर मिट्टी के आधुनिक घड़ों में रंग भरती है। छेदीलाल प्रजापति ने बताया कि व्यक्ति को कभी भी अपना हौसला नहीं छोड़ना चाहिए। बिना सरकारी मदद के भी व्यक्ति चाहे तो वह अपने बलबूते तरक्की कर सकता है।लोगों में टोटी लगे मिट्टी के घड़े और सुराही की मची धूमकोरोना वायरस को लेकर लोग फ्रिज और कूलर का पानी नहीं पी रहे है। ऐसे में यहां मिट्टी के आधुनिक घड़े और सुराही की डिमांड लगातार बढ़ रही है। छेदीलाल प्रजापति ने बताया कि अभी तक छह हजार से अधिक मिट्टी के घड़े और सुराही बिक चुके हैं। वहीं, टोटी लगे घड़े भी खूब बिक रहे हैं। मिट्टी का एक घड़े की कीमत 80 से लेकर 200 रुपये तक है। वहीं, सुराही की कीमत 70 रुपये से लेकर 180 रुपये तक है। टोटी लगे घड़े की कीमत भी अस्सी से 170 रुपये है। उन्होंने बताया कि मिट्टी के घड़ों में पहली बार टोटी लगाई गई है, जो आम लोगों को पसंद है।सवा दो सौ रुपये की पगार में प्रिंटिंग प्रेस में शुरू की थी नौकरीहमीरपुर नगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दुलीचन्द्र शास्त्री ने वर्ष 1977-78 में प्रिंटिंग मशीन लगाई थी। प्रिंटिंग मशीन में छेदीलाल प्रजापति और शिवाकांत बाजपेई ने बीस सालों तक नौकरी की थी। छेदीलाल प्रजापति ने बताया कि शुरू में सौ रुपये मिलते थे, फिर जब सरकारी चतुर्थ कर्मियों की पौने दो सौ रुपये पगार थी तब उन्हें यहां प्रिंटिंग मशीन में कम्पोजिंग के कार्य में सवा दो सौ रुपये की पगार मिलती थी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की प्रिंटिंग मशीन में शिवकांत बाजपेई समेत कई लोग काम करते थे। वर्ष 1999 में काम बंद हो जाने के बाद काफी अर्से तक घर बैठना पड़ा।