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जिंदगी के लिए जीविका से तौबा, घर वापसी में लुट रहे प्रवासी मजदूर

prayagraj news : प्रदेश और देश के दूसरे राज्यों से प्रयागराज लौट रहे लोग।
– फोटो : prayagraj

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जिंदगी और जीविका के दो पाटों के बीच प्रवासी मजदूर एक बार फिर पिसने लगे हैं। वजह है कोरोना संक्त्रस्मण की दूसरी लहर तेज होने के साथ ही कई प्रदेशों में लॉकडाउन हो जाना। लॉकडाउन होने से मुंबई, दिल्ली, पंजाब से बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर काम धंधा छिनने के बाद घर लौट रहे हैं। मुसीबत के मारे इन प्रवासी मजदूरों की पीड़ा भी असहनीय है। सैकड़ों मील के सफर में एक तरफ जहां मनमाने किराए से उनकी जेबें खाली हो रही हैं, वहीं पैदल यात्रा करने से पैरों में छाले पड़ जा रहे हैं।
मंगलवार को सिविल लाइंस रोडवेज बस स्टेशन पर सैकड़ों प्रवासी मजदूर दिन भर बसों से उतरते रहे। कोई मुंबई से आ रहा है तो कोई नागपुर से।  जौनपुर के बदलापुर निवासी चंद्रपाल अपने भाई शिवपाल के साथ मुंबई से दोपहर बाद यहां पहुंचा। सामान से भरा बैग खींचते बस स्टेशन के बाहर आते वक्त हाल पूछते ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।चंद्रपाल ने बताया कि वह वहां चाट-पकौड़े की दुकान लगाता है और उसका भाई टिफिन पहुंचाने का काम करता है, लेकिन इस बार महामारी के विकट रूप ने जीविका से नाता तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। घर से बार-बार फोन आ रहा था कि काम छोड़कर वापस आ जाएं। ऐसे में घर आना ही उचित समझा, लेकिन इस दूरी को तय करने में चार हजार रुपये से अधिक लग गए। कई जगह वाहन बदलने में मुंह मांगी रकम अदा करनी पड़ी। पैदल भी सफर तय करना पड़ा। इससे पैरों में छाले पड़ गए हैं। 
इसी तरह नागपुर के भटोरी में डैम निर्माण में लगे बिहार के सीवान जिला स्थित बलही गांव के अखिलेश गौड़, उनके साथी प्रभाकर यादव और समस्तीपुर जिले के बुलखकी गांव निवासी नोखेलाल भी काम छोड़क़र इस विपदा की घड़ी में घर वापसी कर रहे हैं। नोखेलाल और अखिलेश ने बताया कि रास्ते भर उनकी जेब ढीली होती रही है। 50 किमी यात्रा का किराया पांच सौ रुपये लिया गया। किसी तरह यहां तक आ सके हैं। आगे सीवान तक का सफर तय करने के लिए वह पैदल ही निकल पड़े। पांच दिन बाद ठोकरें खाते हुए मुंबई से पहुंचे प्रयागराजप्रयागराज-वाराणसी मार्ग पर झूंसी गंगा पुल पर मिले प्रवासी मजदूर बटुकेश्वर ने बताया कि वह कोरोना महामारी के कारण मुंबई से काम धंधा बंद होने के बाद वह अपने गांव मिर्जापुर के तिलहरा के लिए लौट रहे हैं। मुंबई से निकले उन्हें पांच दिन हो गए हैं। कोरोना के कारण कुछ खाने को भी नहीं मिल रहा था। मुंबई से आने की बात सुनकर लोग दूरी बना ले रहे हैं। कई जगह रास्ते में जांच भी हो चुकी है। जेब में पैसे नहीं रह गए हैं। अभी आगे पैदल ही चलना है। इनके अलावा मुंबई से ही अपने घर आ रहे मुरली धुरिया ने बताया कि उसका भी काम ठप हो गया और पिछली बार जैसे हालात होते देख वह भी घर लौट रहा है।

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जिंदगी और जीविका के दो पाटों के बीच प्रवासी मजदूर एक बार फिर पिसने लगे हैं। वजह है कोरोना संक्त्रस्मण की दूसरी लहर तेज होने के साथ ही कई प्रदेशों में लॉकडाउन हो जाना। लॉकडाउन होने से मुंबई, दिल्ली, पंजाब से बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर काम धंधा छिनने के बाद घर लौट रहे हैं। मुसीबत के मारे इन प्रवासी मजदूरों की पीड़ा भी असहनीय है। सैकड़ों मील के सफर में एक तरफ जहां मनमाने किराए से उनकी जेबें खाली हो रही हैं, वहीं पैदल यात्रा करने से पैरों में छाले पड़ जा रहे हैं।

prayagraj news : प्रदेश के दूसरे शहरों और देश के दूसरे राज्यों से प्रयागराज लौट रहे लोग।
– फोटो : prayagraj

मंगलवार को सिविल लाइंस रोडवेज बस स्टेशन पर सैकड़ों प्रवासी मजदूर दिन भर बसों से उतरते रहे। कोई मुंबई से आ रहा है तो कोई नागपुर से।  जौनपुर के बदलापुर निवासी चंद्रपाल अपने भाई शिवपाल के साथ मुंबई से दोपहर बाद यहां पहुंचा। सामान से भरा बैग खींचते बस स्टेशन के बाहर आते वक्त हाल पूछते ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।चंद्रपाल ने बताया कि वह वहां चाट-पकौड़े की दुकान लगाता है और उसका भाई टिफिन पहुंचाने का काम करता है, लेकिन इस बार महामारी के विकट रूप ने जीविका से नाता तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। घर से बार-बार फोन आ रहा था कि काम छोड़कर वापस आ जाएं। ऐसे में घर आना ही उचित समझा, लेकिन इस दूरी को तय करने में चार हजार रुपये से अधिक लग गए। कई जगह वाहन बदलने में मुंह मांगी रकम अदा करनी पड़ी। पैदल भी सफर तय करना पड़ा। इससे पैरों में छाले पड़ गए हैं। 

prayagraj news : प्रदेश और देश के दूसरे राज्यों से प्रयागराज लौट रहे लोग।
– फोटो : prayagraj

इसी तरह नागपुर के भटोरी में डैम निर्माण में लगे बिहार के सीवान जिला स्थित बलही गांव के अखिलेश गौड़, उनके साथी प्रभाकर यादव और समस्तीपुर जिले के बुलखकी गांव निवासी नोखेलाल भी काम छोड़क़र इस विपदा की घड़ी में घर वापसी कर रहे हैं। नोखेलाल और अखिलेश ने बताया कि रास्ते भर उनकी जेब ढीली होती रही है। 50 किमी यात्रा का किराया पांच सौ रुपये लिया गया। किसी तरह यहां तक आ सके हैं। आगे सीवान तक का सफर तय करने के लिए वह पैदल ही निकल पड़े। पांच दिन बाद ठोकरें खाते हुए मुंबई से पहुंचे प्रयागराजप्रयागराज-वाराणसी मार्ग पर झूंसी गंगा पुल पर मिले प्रवासी मजदूर बटुकेश्वर ने बताया कि वह कोरोना महामारी के कारण मुंबई से काम धंधा बंद होने के बाद वह अपने गांव मिर्जापुर के तिलहरा के लिए लौट रहे हैं। मुंबई से निकले उन्हें पांच दिन हो गए हैं। कोरोना के कारण कुछ खाने को भी नहीं मिल रहा था। मुंबई से आने की बात सुनकर लोग दूरी बना ले रहे हैं। कई जगह रास्ते में जांच भी हो चुकी है। जेब में पैसे नहीं रह गए हैं। अभी आगे पैदल ही चलना है। इनके अलावा मुंबई से ही अपने घर आ रहे मुरली धुरिया ने बताया कि उसका भी काम ठप हो गया और पिछली बार जैसे हालात होते देख वह भी घर लौट रहा है।