कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुकदमों की भौतिक सुनवाई बंद कर दी है। मुकदमे सिर्फ वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुने जा रहे हैं। मगर प्रदेश सरकार के अधिवक्ताओं के पास वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई में शामिल होने और सरकार का पक्ष रखने के लिए संसाधन नहीं हैं। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह 22 अप्रैल तक सरकारी वकीलों को वर्चुअल सुनवाई के लिए संसाधन मुहैया कराए। एक जमानत प्रार्थनापत्र पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई चल रही थी। उस दौरान कुछ अपर शासकीय अधिवक्ता सरकार का पक्ष रखने के लिए भौतिक रूप से न्यायालय कक्ष में उपस्थित थे। उनको वहां देखकर जब न्यायमूर्ति ने पूछा तो कि मुकदमों की सुनवाई जब सिर्फ वर्चुअल हो रही है तो वह लोग यहां क्या कर रहे हैं। इस पर वकीलों ने बताया कि वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई में शामिल होने के लिए उनको कोई संसाधन मुहैया नहीं कराया गया है।
इस पर कोर्ट का कहना था कि एक बार जब मुख्य न्यायाधीश ने यह तय कर दिया कि सुनवाई सिर्फ वर्चुअल होगी तो कोई वजह नहीं कि सरकारी वकील भौतिक रूप से अदालत में उपस्थित हों। हाईकोर्ट की कोविड मामलों की कमेटी के समक्ष उपस्थित अपर महाधिवक्ता ने आश्ववासन दिया था कि सरकारी वकीलों को वर्चुअल सुनवाई के लिए सभी संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। मगर लगता है इस आश्वासन के बाद कोई कार्यवाही नहीं की गई और जमीनी हकीकत बिल्कुल भिन्न है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए सरकारी वकीलों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने महाधिवक्ता को स्वयं इस मामले को देखने और 22 अप्रैल तक सरकारी वकीलों को वर्चुअल सुनवाई के लिए सभी संसाधन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
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